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राजा शिवि अपनी दया और परोपकार के लिए प्रसिद्ध थे और उनके राज्य में किसी को भी दुखी नहीं रहने दिया जाता था।
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इंद्र और अग्निदेव ने राजा शिवि की दया की परीक्षा लेने का निश्चय किया
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और बाज और कबूतर का रूप धारण कर राजा के दरबार में पहुंचे।
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घबराया हुआ कबूतर राजा की गोद में छिप गया और अपनी जान की भीख मांगी, जबकि बाज ने उसे अपना शिकार बताया।
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राजा शिवि ने अपने वचन का पालन करते हुए कबूतर की रक्षा के लिए अपने शरीर से मांस काटकर देने का निर्णय लिया।
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तराजू पर कबूतर के बराबर मांस रखने के बावजूद, पलड़ा नहीं हिला, तब राजा ने खुद को तराजू पर बैठा दिया।
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इंद्र और अग्निदेव ने अपनी असली पहचान प्रकट की और राजा शिवि की दया को सराहा, उनके घाव भी ठीक कर दिए।
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इंद्र ने राजा की दया को अमर बताते हुए कहा कि उनका नाम महाभारत में गूंजेगा।
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इस कहानी से यह सीख मिलती है कि सच्ची दया में अपनी जान की बाजी भी लगाई जा सकती है और भगवान हमेशा ऐसे लोगों के साथ होते हैं।
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