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गुप्ता परिवार दिल्ली में रहता था, जहां प्यार और सम्मान की कमी हो गई थी। परिवार में माता-पिता और दो बच्चे, रोहन और रीमा शामिल थे।
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रोहन और रीमा बड़े स्कूल में पढ़ते थे और अपने माता-पिता से दूरी महसूस करने लगे थे, क्योंकि माता-पिता भी अपने कामों में व्यस्त रहते थे।
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गर्मी की छुट्टियों में, माता-पिता ने बच्चों को दादी के गाँव ले जाने का निर्णय लिया, जहां बच्चों को कोई खास दिलचस्पी नहीं थी।
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गाँव पहुंचने पर, बच्चों को शांत वातावरण और हरियाली ने आकर्षित किया। दादी ने उनका स्वागत किया और अपने जीवन के अनुभव साझा किए।
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दादी ने बताया कि परिवार का असली खजाना रिश्ते और एक-दूसरे के साथ बिताए समय में होता है, जो कठिनाइयों को दूर करने में मदद करता है।
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धीरे-धीरे, रोहन और रीमा को समझ में आया कि परिवार के साथ समय बिताना कितना महत्वपूर्ण है, और वे दादी और माता-पिता के साथ समय बिताने लगे।
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छुट्टियाँ खत्म होते-होते, बच्चों को गाँव छोड़ने का मन नहीं था और उन्होंने शहर लौटने के बाद भी परिवार के साथ समय बिताने की आदत बनाए रखी।
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कहानी का संदेश है कि परिवार का असली खजाना पैसे या भौतिक वस्तुएं नहीं,
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बल्कि प्यार, साथ और समर्थन होता है। परिवार के साथ बिताया समय हमें सच्ची खुशी और मजबूत जड़ें देता है।
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