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कहानी एक गांव के चंचल लड़के मधु की है, जो बिना सोचे-समझे काम करने की आदत के कारण कई बार मुश्किल में पड़ जाता है।
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मधु की मां उसे हमेशा समझाती थी कि किसी भी काम को करने से पहले सोच-समझ लेना चाहिए, लेकिन मधु जल्दबाजी में फैसले लेता रहता था।
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एक दिन गांव में मेला लगा, जहां मधु ने जल्दबाजी में अपने सारे पैसे एक गुब्बारे पर खर्च कर दिए, जो जल्द ही फट गया।
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इस घटना से मधु को न केवल पैसों का नुकसान हुआ, बल्कि उसे पछतावा भी हुआ कि उसने सोच-समझकर फैसला नहीं लिया।
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गांव के बुजुर्ग रामलाल चाचा ने उसे समझाया कि जल्दबाजी में लिए गए फैसले अक्सर नुकसान पहुंचाते हैं और हर निर्णय सोच-समझकर लेना चाहिए।
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रामलाल चाचा के उदाहरण से प्रेरित होकर मधु ने अपनी गलती को समझा और भविष्य में सोच-समझकर फैसले लेने का संकल्प लिया।
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इस घटना के बाद, मधु ने जब भी कोई बड़ा फैसला लेना होता, तो अपने माता-पिता या गांव के बुजुर्गों से सलाह लेना शुरू कर दिया।
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कहानी से यह सीख मिलती है कि जोश से नहीं, होश से काम करना चाहिए
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पैसों और समय की कीमत समझनी चाहिए।
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