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बिहार के युवा जमींदार सर गणेश दत्त सिंह को पहले शिक्षा का महत्त्व नहीं समझ आता था
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और उन्हें लगता था कि धन-संपत्ति से जीवन आसान हो जाएगा।
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एक कानूनी काम के दौरान पटना कोर्ट में समय लगने से उन्हें शिक्षा की कमी का अहसास हुआ, जिससे उनका दृष्टिकोण बदल गया।
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इस घटना के बाद, उन्होंने अपने गाँव लौटकर पूरी निष्ठा और मेहनत से पढ़ाई शुरू की और धीरे-धीरे पढ़ना-लिखना सीख लिया।
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उनकी सच्ची लगन और मेहनत ने उन्हें समाज में एक सम्मानित स्थान दिलाया और ब्रिटिश सरकार ने उन्हें "सर" की उपाधि से सम्मानित किया।
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सन 1926 में, वे बिहार प्रांत में स्वायत्त शासन के मंत्री बने और अपनी आय का उपयोग धर्मशालाओं, अन्नालयों और निर्धन छात्रों की सहायता में किया।
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उनका मानना था कि शिक्षा ही समाज की उन्नति का आधार है और यह उनके जीवन का उद्देश्य बन गया।
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आज भी बिहार में सर गणेश दत्त सिंह का नाम आदर से लिया जाता है और लोग उनके योगदान और निष्ठा से प्रेरणा लेते हैं।
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उनका जीवन यह सिखाता है कि सच्ची लगन और मेहनत से जीवन में सब कुछ हासिल किया जा सकता है।
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