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यह कहानी दो दोस्तों, सोहन और मोहन की है, जो एक छोटे से गाँव में रहते थे और उनकी दोस्ती बेहद गहरी थी।
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गाँव में अकाल पड़ने के कारण भोजन की कमी हो गई, और सोहन के पास केवल एक आखिरी रोटी बची थी।
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सोहन ने अपनी भूख से पहले अपने दोस्त मोहन की भूख मिटाने का निर्णय लिया और अपनी आखिरी रोटी मोहन को देने के लिए उसकी झोपड़ी की ओर भागा।
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मोहन ने सोहन की उदारता को देखकर उसे रोटी खाने के लिए कहा, लेकिन सोहन ने ज़िद की कि अगर मोहन नहीं खाएगा, तो वह भी नहीं खाएगा।
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एक बूढ़े व्यक्ति ने उनकी बहस सुनी और उनकी दोस्ती की प्रशंसा की, यह समझाते हुए कि सच्ची दोस्ती में मुश्किल समय में एक-दूसरे की मदद करना शामिल है।
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बूढ़े व्यक्ति ने अपने झोले से दो और रोटियाँ निकालकर उन्हें दीं, जिससे तीनों ने मिलकर रोटियाँ खाईं।
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इस घटना के बाद, सोहन और मोहन ने अपनी दोस्ती को कभी न टूटने देने का प्रण लिया।
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कहानी यह सिखाती है कि सच्ची दोस्ती में हम अपने दोस्त की ज़रूरतों को अपनी ज़रूरतों से ज़्यादा महत्व देते हैं और ईमानदारी व निस्वार्थ भाव से की गई मदद ही सच्ची खुशहाली लाती है।
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रोटी का एक छोटा-सा टुकड़ा भले ही भूख मिटा दे, लेकिन सच्ची दोस्ती जीवन को खुशहाल बना देती है।
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