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सम्राट अकबर एक लंबी शिकार यात्रा के बाद लौटते समय नमाज़ अदा कर रहे थे जब एक युवती ने उन्हें धक्का दिया और उनकी एकाग्रता भंग हुई।
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अकबर का क्रोध भड़क उठा, लेकिन युवती ने बताया कि वह अपने प्रेमी से मिलने की उत्सुकता में इतनी लीन थी कि उसे सम्राट का ध्यान ही नहीं रहा।
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युवती ने अकबर से सवाल किया कि अगर वह ईश्वर से एकाग्र होकर प्रार्थना कर रहे थे, तो उन्हें एक साधारण धक्का कैसे महसूस हुआ।
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इस विचार ने अकबर को अपनी अपूर्ण सच्ची भक्ति और एकाग्रता का एहसास कराया,
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जिससे उन्हें समझ में आया कि सच्ची भक्ति में बाहरी विघ्नों का कोई महत्व नहीं होता।
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कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि सच्ची भक्ति और एकाग्रता का अर्थ है अपने लक्ष्य या ईश्वर के प्रति इतना लीन हो जाना कि बाहरी दुनिया की सभी बाधाएँ तुच्छ लगें।
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जब हम पूरी लगन और ध्यान से किसी कार्य में जुटते हैं, तभी हम सफलता और शांति प्राप्त कर सकते हैं।
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बाहरी दिखावे, कर्मकांड और औपचारिकताओं से अधिक महत्वपूर्ण है मन की पूर्ण समर्पण।
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इस दृष्टांत से यह भी सिखाया गया है कि ईश्वर की उपासना में सांसारिक विघ्न व्यर्थ होते हैं और सच्चे समर्पण के बिना भक्ति अधूरी रहती है।
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