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यह कहानी महाराजा वीरेन्द्र की है, जिनके पास अपार धन-दौलत होने के बावजूद वे दुखी और असंतुष्ट थे। उन्हें यह समझ नहीं आता था कि उनके पास सब कुछ होते हुए भी वे खुश क्यों नहीं हैं।
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महाराजा की मानसिक बीमारी को ठीक करने के लिए राज्य के सभी चिकित्सकों ने प्रयास किया, लेकिन कोई सफल नहीं हुआ। तब एक बुद्धिमान वैद्य, दीनदयाल ने सलाह दी कि राजा को सबसे खुश व्यक्ति की कमीज़ पहननी चाहिए।
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राजा ने अपने सैनिकों को राज्य में सबसे खुश व्यक्ति की तलाश में भेजा, लेकिन उन्हें पता चला कि हर कोई किसी न किसी दुख से ग्रस्त है, चाहे वह अमीर हो या गरीब।
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सैनिकों ने कई लोगों से मुलाकात की: एक धनी सेठ, जो अपनी संपत्ति खोने के डर से दुखी था; एक विद्वान पंडित, जो और अधिक ज्ञान की लालसा में असंतुष्ट था, और अन्य लोग जो विभिन्न कारणों से दुखी थे।
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अंततः सैनिकों को एक मस्त मौला भिखारी मिला, जो अत्यंत प्रसन्न था और किसी भी प्रकार की लालसा से मुक्त था। लेकिन उसके पास कोई कमीज़ नहीं थी।
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इस घटना से महाराजा वीरेन्द्र ने समझा कि सच्ची खुशी बाहरी वस्तुओं या धन में नहीं, बल्कि संतोष में है। उन्होंने महसूस किया कि ज्यादा पाने की लालसा ही असली दुख का कारण है।
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राजा ने अपने भ्रम को छोड़कर दूसरों की भलाई में लग गए और अपनी दौलत का उपयोग दूसरों की खुशी के लिए करना शुरू कर दिया। इससे उन्हें सच्ची शांति और खुशी का अनुभव हुआ।
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कहानी की शिक्षा यह है कि संतोष ही सच्ची खुशी की कुंजी है। हमें जो मिला है,
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उसी में खुश रहना सीखना चाहिए, क्योंकि दौलत और वस्तुएं हमें सच्ची खुशी नहीं दे सकतीं।
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