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एक शहर में एक अमीर लेकिन कंजूस सेठ रहता था, जो खुद पर भी खर्च करने से बचता था और दूसरों को भी चाय-पानी के लिए नहीं पूछता था।
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सेठ के पास एक चतुर नौकर था, जो सेठ की अच्छाई को पहचानता था, भले ही उसकी कंजूसी से परेशान था।
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एक दिन सेठ के दोस्तों ने उसकी कंजूसी पर सवाल उठाए और नौकर को चुनौती दी कि वह सेठ की ओर से उन्हें दावत पर बुलाए।
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नौकर ने समझदारी से काम लिया और दोस्तों को खीर पर बुलाने का वादा किया, जिससे सेठ को मजबूरी में दावत की तैयारी करनी पड़ी।
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सेठ की कंजूसी के बावजूद, नौकर ने कम खर्च में स्वादिष्ट खीर तैयार करवाई, जिससे दोस्तों को आश्चर्य हुआ।
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दावत के दिन, सेठ के दोस्तों ने खीर देखकर हैरानी जताई और नौकर की चतुराई की तारीफ की।
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इस कहानी से यह सीख मिलती है कि केवल धनवान होना काफी नहीं, बल्कि उदार भी बनना चाहिए। असली आनंद दूसरों के साथ बांटने में है।
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यह भी प्रमाणित हुआ कि इज्जत केवल पैसे से नहीं, बल्कि अच्छे व्यवहार से बनती है, और जो असंभव लगता है, सही तरकीब से संभव बनाया जा सकता है।
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जो चीज असंभव लगती है, सही तरकीब से उसे संभव बनाया जा सकता है – "टेढ़ी खीर" वाली कहावत इसी से बनी होगी!
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