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एक घमंडी और अहंकारी राजा का राज्य था, जो अपनी राजसी सुख-सुविधाओं में मग्न रहता था और अपने दरबारियों को मूर्ख समझता था।
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राजा के दरबार में एक विद्वान पंडित थे, जिन्हें राजा सम्मान तो देता था, लेकिन कभी बराबरी का दर्जा नहीं देता था।
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राजा ने अपने ज्ञान का प्रदर्शन करने के लिए एक विशेष सभा का आयोजन किया, जिसमें पंडित जी का भाषण सुनाया गया।
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भाषण के बाद, एक मामूली माली ने कहा कि वह भाषण नहीं समझ सका, जिससे राजा ने उसका अपमान किया।
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माली ने शांत स्वर में कहा कि हर व्यक्ति का काम महत्वपूर्ण है, और वह अपने काम से दरबार की सेवा करता है।
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माली के शब्दों ने राजा को सोचने पर मजबूर कर दिया कि हर किसी का योगदान महत्वपूर्ण होता है।
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राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने घमंड का त्याग कर सभी को सम्मान देने का प्रण किया।
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कहानी का संदेश है कि अहंकार का पतन निश्चित है
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और हर व्यक्ति के काम का महत्व होता है।
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