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यह कहानी नवनीत और उसके दादा जी की है, जिसमें दादा जी एक बैल की कहानी सुनाते हैं जो मेहनती होने के बावजूद अपनी मूर्खता के कारण सही निर्णय नहीं ले पाता।
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कहानी का संदर्भ नवनीत के स्कूल से जुड़ा है, जहां उसके मास्टर जी ने मोटू राम को 'बैल' कहा, जिससे नवनीत को इस शब्द का अर्थ समझने की जिज्ञासा होती है।
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दादा जी ने बताया कि पुराने समय में मनुष्य खेती के लिए बैलों की मदद लेते थे, जहां बैलों को मेहनत करने के बाद फसल का हिस्सा चुनने की आज़ादी थी।
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जब फसल का बंटवारा हुआ, तो बैलों ने बिना सोचे-समझे पुआल का बड़ा ढेर चुना, जो उनके लिए बेकार था, जबकि मनुष्यों को धान मिला।
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इस कहानी से यह समझ आता है कि मेहनत के साथ-साथ समझदारी का होना भी अत्यंत आवश्यक है, अन्यथा मेहनत का कोई लाभ नहीं होता।
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बैलों की मूर्खता का उदाहरण देते हुए दादा जी ने बताया कि बिना सोचे-समझे काम करने वालों को 'बैल' कहा जाता है।
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नवनीत समझ जाता है कि मास्टर जी ने मोटू राम को 'बैल' इसलिए कहा क्योंकि वह बिना सोचे-समझे काम करता है।
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कहानी का मूल संदेश यह है कि मेहनत के साथ सही निर्णय और समझदारी का मेल ही सच्ची सफलता की कुंजी है।
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यह कथा हमें प्रेरित करती है कि हमें अपनी बुद्धिमानी का सही उपयोग करना चाहिए और बिना सोचे-समझे काम करने से बचना चाहिए।
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