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यह कहानी एक अभिमानी राजा वीरेंद्र और उसके सोने के घोड़े की है, जो अहंकार के कारण पतन की ओर ले जाता है।
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सूर्यपुर राज्य के राजा वीरेंद्र को अपने धन और वैभव पर बहुत घमंड था और उन्होंने एक सोने का घोड़ा प्राप्त करने की इच्छा जताई।
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राजा की इच्छा पूरी करने के लिए ऋषि शांतमुनि ने एक शर्त के साथ वरदान दिया कि घोड़ा दिखावे के लिए इस्तेमाल होने पर अपनी शक्ति खो देगा।
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राजा वीरेंद्र ने पड़ोसी राज्य के राजा धर्मपाल के उत्सव में अपने घोड़े 'स्वर्णराज' का प्रदर्शन करने की कोशिश की, जिससे घोड़ा साधारण बन गया।
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इस घटना से राजा वीरेंद्र का अहंकार टूट गया और उन्होंने ऋषि से माफी मांगी।
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कहानी का मुख्य संदेश यह है कि अहंकार का फल हमेशा पतन होता है और सच्ची महानता विनम्रता और अच्छे कामों में होती है।
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राजा वीरेंद्र ने अपने राज्य में स्कूल और अस्पताल बनवाए और अपनी प्रजा की भलाई के लिए काम करना शुरू किया।
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इस पौराणिक कथा से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन का सच्चा धन अच्छे कर्म और एक अच्छा चरित्र है।
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कहानी बच्चों के लिए एक प्रेरक नैतिक संदेश देती है कि दिखावा नहीं, बल्कि गुण ही मायने रखते हैं।
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यह कहानी विभिन्न नैतिक कहानियों का हिस्सा है, जो बच्चों को जीवन की महत्वपूर्ण शिक्षाएं प्रदान करती हैं।
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