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जंगल में एक पीपल के पेड़ पर रहने वाले कौए को अपनी किस्मत और रंग से संतोष नहीं था। उसे लगता था कि अन्य पक्षी उससे अधिक सुंदर और खुश हैं।
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कौआ सफेद बगुले को देखकर सोचता था कि काश उसका रंग भी सफेद होता। वह नीलकंठ को देखकर भी उदास हो जाता कि उसका रंग ऐसा क्यों नहीं है।
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बगुले से दोस्ती होने पर कौए ने अपनी मन की बात बताई, लेकिन बगुले ने बताया कि वह भी कभी नीलकंठ को देखकर अपने रंग से असंतुष्ट था।
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नीलकंठ से बातचीत में कौए ने जाना कि नीलकंठ भी मोर को देखकर अपनी सुंदरता को लेकर असंतुष्ट था।
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चिड़ियाघर में मोर से मिलने पर कौए ने पाया कि मोर अपनी सुंदरता के कारण पिंजरे में कैद है और सबसे दुखी है।
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मोर ने कौए से कहा कि वह उसकी तरह आजाद रहना चाहता है, क्योंकि पिंजरे में कोई कौआ कैद नहीं होता।
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इस अनुभव के बाद कौए को अपनी किस्मत और रूप से संतोष हो गया और उसने जैसे है वैसे खुश रहना सीखा।
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कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने रंग, रूप और भाग्य को लेकर शिकायत नहीं करनी चाहिए
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और संतोष में खुशी ढूंढनी चाहिए।
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