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एक तीतर जिसका नाम तीतू था, बरगद के पेड़ की कोटर में कई सालों से रह रहा था और जंगल में बेर-जामुन खाकर संतोषी जीवन जी रहा था।
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तीतू का पुराना दोस्त चकोर उसे खेतों में मिलने वाले अनाज के बारे में बताता है, जिससे प्रेरित होकर तीतू खेतों में जाकर अनाज का स्वाद लेने लगता है और घर की सुध भूल जाता है।
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इस बीच, एक चालबाज खरगोश जिसका नाम खरमस्त था, तीतू के खाली कोटर में आकर बस जाता है।
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जब तीतू वापस आता है, तो वह खरमस्त को अपने घर से बाहर निकालने की कोशिश करता है, लेकिन खरमस्त उसे चुनौती देता है कि अब यह उसका घर है।
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तीतू और खरमस्त न्याय के लिए जंगल के जानवरों से सलाह लेते हैं, लेकिन कोई भी उनकी मदद नहीं करता।
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अंततः लोमड़ी चाची की सलाह पर वे एक पंडित के पास जाते हैं, और एक धूर्त बिल्ली बुआ को पंच बनाते हैं।
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बिल्ली बुआ, जो एक संत के रूप में प्रस्तुत होती है, दोनों को अपने पास बुलाती है और मौका देखकर उन्हें खा जाती है।
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इस कहानी से यह सीख मिलती है कि आपसी झगड़ों में अक्सर तीसरे का फायदा होता है, इसलिए समझदारी और प्रेम से रहना चाहिए।
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जंगल में यह कहानी एक सबक बन जाती है कि झगड़े को आपस में सुलझाना चाहिए, नहीं तो कोई धूर्त इसका फायदा उठा सकता है।
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