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भाई कन्हैया जी गुरु गोविंद सिंह जी की सेना में एक सेवक थे, जो युद्ध के दौरान सभी सैनिकों को, चाहे वे मित्र हों या दुश्मन, पानी पिलाते थे।
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उनकी इस सेवा से कुछ सैनिक नाराज़ हो गए और गुरु गोविंद सिंह जी से शिकायत की, क्योंकि वे दुश्मन सैनिकों को भी पानी पिलाते थे।
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भाई कन्हैया जी ने गुरु जी को बताया कि वे सभी में गुरु का ही रूप देखते हैं और बिना भेदभाव के सेवा करते हैं।
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गुरु गोविंद सिंह जी ने उनकी इस भावना की सराहना की और कहा कि असली दुश्मन जुल्म है, न कि कोई इंसान।
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गुरु जी ने भाई कन्हैया जी को आशीर्वाद दिया और उन्हें पानी के साथ-साथ घायलों की मरहम-पट्टी करने का भी आदेश दिया।
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भाई कन्हैया जी की निस्वार्थ सेवा ने सैनिकों का गुस्सा प्यार में बदल दिया और उन्हें सच्ची सेवा के महत्व को समझाया।
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इस कहानी से यह सीख मिलती है कि सच्ची सेवा वही है जो बिना भेदभाव के की जाती है, और हमें हर इंसान को समान रूप से मानना चाहिए।
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गुरु गोविंद सिंह जी ने यह भी सिखाया कि हमारी लड़ाई जुल्म और अत्याचार से होनी चाहिए, न कि किसी इंसान से।
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कहानी हमें प्रेरित करती है कि हमें हमेशा प्यार और समानता की भावना से सेवा करनी चाहिए, क्योंकि सच्चाई और प्यार ही हमें बेहतर इंसान बनाते हैं।
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