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"साधु की बुद्धिमानी" कहानी में एक चतुर साधु राजा प्रताप सिंह से मिलकर अपने आप को उनका भाई बताते हैं, जो राजा को चौंका देता है।
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साधु अपनी जर्जर हालत की पहेली बुनते हैं, जिसमें उनका पुराना महल उनके बूढ़े शरीर का प्रतीक है, और 32 नौकर उनके दाँतों के लिए है।
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राजा प्रताप सिंह साधु की पहेली को समझ जाते हैं और उनकी बुद्धिमानी से प्रभावित होकर उन्हें 10 सोने के सिक्के देते हैं।
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मंत्रियों को साधु की बातों पर संदेह होता है, लेकिन राजा समझाते हैं कि भाग्य के दो पहलू होते हैं: राजा और रंक, इसलिए साधु को उन्होंने भाई माना।
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राजा बताते हैं कि साधु का पुराना महल उनके शरीर का और 32 नौकरों का मतलब उनके दाँतों से था, जो बुढ़ापे में गिर गए।
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राजा के अनुसार, साधु ने 10 सिक्कों को कम इसलिए कहा क्योंकि वो राजा की कंजूसी का एहसास दिलाना चाहते थे।
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साधु की चतुराई से प्रभावित होकर राजा ने उन्हें अपने दरबार में सलाहकार नियुक्त करने का निर्णय लिया।
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कहानी से यह सीख मिलती है कि किसी की बुद्धिमानी का अंदाजा उसके कपड़ों या रूप से नहीं लगाया जा सकता, असली धन बुद्धि होती है।
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राजा साधु की बुद्धिमानी से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें अपने दरबार में स्वागत कर सलाहकार बना लिया।
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यह कहानी बच्चों को समझदारी और बुद्धिमानी की महत्ता का संदेश देती है।
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