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यह कहानी एक गांव की है जहां कुछ मजदूर पत्थर के खंभों को तराशने का काम कर रहे थे।
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एक संत ने पहले मजदूर से पूछा, "यहां क्या बन रहा है?" और उसे थकावट भरा उत्तर मिला कि वह बस पत्थर काट रहा है और मेहनत में जान निकल रही है।
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दूसरे मजदूर ने कहा कि उसे सिर्फ अपने काम से मतलब है और वह केवल 100 रुपए कमाने के लिए पत्थर तराश रहा है, मंदिर बने या कुछ और, इससे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।
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तीसरे मजदूर ने संत से कहा कि वह एक भव्य मंदिर बना रहा है जो गांव के लिए विशेष होगा। उसकी नजर में यह काम सिर्फ पत्थर तराशने का नहीं, बल्कि भविष्य को आकार देने का है।
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तीसरे मजदूर ने अपनी खुशी व्यक्त की कि वह इस मंदिर के निर्माण में भाग ले रहा है और यह सोचकर उसे खुशी होती है कि एक दिन यहां पूजा और कीर्तन होगा।
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संत ने इस मजदूर की सराहना की और उसे बताया कि असली आनंद वही पाता है जो अपने काम में मस्ती और उद्देश्य ढूंढ लेता है।
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कहानी से यह सीख मिलती है कि किसी भी काम को केवल जिम्मेदारी के रूप में न देखें,
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बल्कि उसमें उद्देश्य और आनंद खोजें।
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आपका नजरिया आपके काम को सरल और सुखद बना सकता है, जिससे जीवन का असली रहस्य समझ में आता है।
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