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एक साधु ने एकांत में झोपड़ी बनाकर, जंगली फल-फूलों से अपना गुजारा करते हुए भगवद भजन में लीन रहना शुरू किया।
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एक दिन, तीन राजपुरुष शिकार करते हुए उसकी झोपड़ी के पास पहुंचे और साधु से पानी मांगा।
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साधु ने तीनों राजपुरुषों को पानी पिलाने के बाद उनसे उनके परिचय पूछे और उनकी प्रतिभा का मूल्यांकन किया।
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पहले राजपुरुष ने खुद को राज्य का महामंत्री बताया, जिसे साधु ने तीसरे स्तर की प्रतिभा के रूप में पहचाना।
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दूसरे राजपुरुष, देवदत्त, जो राजा को नदी में डूबने से बचा चुके थे, को साधु ने दूसरे स्तर की प्रतिभा के रूप में पहचाना।
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तीसरे राजपुरुष, प्रधान सेनापति विनायक, जिन्होंने राज्य में सुव्यवस्था बनाई, को साधु ने पहले स्तर की प्रतिभा के रूप में पहचाना।
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साधु ने स्पष्ट किया कि पहले स्तर की प्रतिभा वह होती है जो अच्छे कामों से जानी जाती है, न कि नाम या पदनाम से।
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इस कहानी से यह सीख मिलती है कि व्यक्ति की असली पहचान उसके अच्छे कार्यों से बनती है,
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न कि उसके नाम या पद से।
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