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यह कहानी सुभाषचंद्र बोस के छात्र जीवन की है, जब वे सिर्फ 16 वर्ष के थे और बंगाल के एक कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे।
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एक कड़ाके की ठंड वाली सुबह, सुभाषचंद्र बोस विवेकानंद की पुस्तक पढ़ने में मग्न थे, जबकि कॉलेज के अंग्रेज प्रिंसिपल, मि ओटन, उनके पास खड़े थे।
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प्रिंसिपल को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि सुभाषचंद्र बोस सामान्य सूती कपड़ों में ठंड से प्रभावित नहीं हो रहे थे, जबकि वे खुद गरम कपड़ों के बावजूद ठंड महसूस कर रहे थे।
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प्रिंसिपल ने सुभाष से पूछा कि उन्हें ठंड क्यों नहीं लग रही। सुभाष ने अपनी हथेली उनके चेहरे पर घुमाते हुए उत्तर दिया कि जैसे चेहरा हमेशा खुला रहता है और ठंड सहन करने की आदत हो जाती है, वैसे ही वे भी साधारण कपड़ों में रहने के आदी हो गए हैं।
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यह घटना सुभाषचंद्र बोस की सहनशीलता और दृढ़ संकल्प को दर्शाती है, जो आगे चलकर "नेताजी" के नाम से प्रसिद्ध हुए।
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"जय हिंद" का नारा भी सुभाषचंद्र बोस ने ही देश को दिया, जो आज भी देशभक्ति का प्रतीक है।
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सुभाषचंद्र बोस ने आईसी.एस. की डिग्री लेने के बावजूद देश सेवा को प्राथमिकता दी और आजाद हिंद फौज का गठन किया।
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उनकी जीवन गाथा हमें यह सिखाती है कि आदतें और मानसिक दृढ़ता हमें कठिन परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम बनाती हैं।
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"हम सबका चेहरा हमेशा खुला रहता है। इसे सब कुछ सहने की आदत हो गई है। इसी कारण इसे ठंड नहीं लगती।"
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