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यह कहानी एक मेंढक परिवार की है, जिसमें पापा मेंढक का घमंड उन्हें मुसीबत में डाल देता है।
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कहानी में मेंढक परिवार के चार बच्चे - चीं-चीं, किक्की, बब्बल और पप्पू तालाब के किनारे खेलते हुए एक बड़े बैल को देखकर डर जाते हैं।
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बच्चे पापा मेंढक के पास जाकर बताते हैं कि उन्होंने एक बहुत बड़ा जीव देखा है, जो उनसे काफी बड़ा था।
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पापा मेंढक को विश्वास नहीं होता कि कोई उनसे बड़ा हो सकता है, और वे अपनी छाती फुलाने लगते हैं ताकि वे बैल से बड़े दिख सकें।
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बार-बार कोशिश करने के बाद भी जब बच्चे कहते हैं कि वे अभी भी बैल से छोटे हैं, पापा मेंढक का घमंड बढ़ता जाता है।
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मम्मी मेंढक उन्हें चेतावनी देती हैं कि उन्हें बैल से प्रतिस्पर्धा करने की जरूरत नहीं है, लेकिन पापा मेंढक नहीं मानते।
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आखिरकार, पापा मेंढक अपनी सारी ताकत लगाकर छाती फुलाते हैं और फट जाते हैं, जिससे बच्चे डर जाते हैं।
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मम्मी मेंढक बच्चों को समझाती हैं कि घमंड और ईर्ष्या नुकसानदायक होती है, और अपनी सीमाओं को स्वीकार करना ही सच्ची जीत है।
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कहानी का नैतिक संदेश यह है कि हमें अपनी सीमाओं को समझना चाहिए और दूसरों से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए।
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