रेल के डिब्बों में ये अलग अलग धारियां क्यों होती है? रेलगाड़ी हमारी जिंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारत में पहली रेल गाड़ी 16 अप्रैल 1853 को बोरी बंदर (बॉम्बे), से ठाणे तक तैंतीस, चौंतीस किलोमीटर चली थी और 1951 को इसे राष्ट्रीयकृत किया गया था । यह सब जानते हैं कि भारतीय रेल, विश्व की चौथी सब से बड़ी रेल्वे मानी जाती है जो हर साल 8.4 बिलियन पैसेंजर्स तथा 1212.3 मिलियन टन माल परिवहन ढोता है। ऐसे में हमारी सुविधा के लिए भारतीय रेल्वेज़ ने रेलवे ट्रैक्स, स्टेशन्स और रेल गाड़ियों में कई तरह के सिंबल्स यानी प्रतीक चिह्न बनाए है, जो रेल्वे वर्कर्स, लोको पायलट्स, रेल्वे कर्मचारियों को उनकी सुरक्षा उपाय, डेंजर जोन, कई प्रकार के आसान पहचान, संकेत, नियम, विनियम समझाने के लिए बनाए जाते हैं। By Lotpot 04 May 2022 in Interesting Facts New Update रेलगाड़ी हमारी जिंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारत में पहली रेल गाड़ी 16 अप्रैल 1853 को बोरी बंदर (बॉम्बे), से ठाणे तक तैंतीस, चौंतीस किलोमीटर चली थी और 1951 को इसे राष्ट्रीयकृत किया गया था । यह सब जानते हैं कि भारतीय रेल, विश्व की चौथी सब से बड़ी रेल्वे मानी जाती है जो हर साल 8.4 बिलियन पैसेंजर्स तथा 1212.3 मिलियन टन माल परिवहन ढोता है। ऐसे में हमारी सुविधा के लिए भारतीय रेल्वेज़ ने रेलवे ट्रैक्स, स्टेशन्स और रेल गाड़ियों में कई तरह के सिंबल्स यानी प्रतीक चिह्न बनाए है, जो रेल्वे वर्कर्स, लोको पायलट्स, रेल्वे कर्मचारियों को उनकी सुरक्षा उपाय, डेंजर जोन, कई प्रकार के आसान पहचान, संकेत, नियम, विनियम समझाने के लिए बनाए जाते हैं। इसी तरह के प्रतीक चिन्ह है रेलगाड़ी के डिब्बों में खिड़की दरवाजे के आसपास बनी अलग अलग रंग की धारियां जिसमें कुछ पीली सफेद होती है, कुछ लाल नीले रंग की होती है तो कुछ हरे रंग की धारियां होती है। भारतीय रेल गाड़ियों में कई तरह के डिब्बे होते है जिसमें से एक है आईसीएफ कोच। जब भी हम ब्लू आईसीएफ कोच में यात्रा करते हैं तो हम देखते हैं कि उनमें से कुछ डिब्बों में पीली सफेद धारियां अंकित होती है। ये पीली सफेद धारियां सेकंड क्लास, अन रिजर्वड या जेनरल डिब्बों के खिड़की, दरवाज़े के अंतिम छोर के ऊपर बने होते है। जब भी कोई ट्रेन रेलवे-स्टेशन पर आती है तो यात्रियों को रिज़र्वड डिब्बे या ऐसी डिब्बे पहचानने में समस्या नहीं होती लेकिन अन- रिजर्वड या जनरल डिब्बों को पहचानने में भ्रम होता है इसलिए ये सफेद पीली धारियां बनी होती है। इसके अलावा जो लाल और नीली मोटी धारियां किसी डब्बे में दिखती हैं वो यह संकेत देता है कि इस डिब्बे में दिवयांग यात्री या फिर बीमार यात्री सफर कर रहे हैं। ट्रेन में सफर करते हुए अगर अचानक कोई बीमार पड़ जाए तो वो भी इस कोच में आकर सफर के दौरान आराम कर सकता है। आपको जब ट्रेन के ग्रे रंग वाले डिब्बे में हरे रंग की धारी दिखे तो समझ लीजिए कि ये कोच सिर्फ स्त्रियों के लिए है, हालांकि ये ज्यादातर मुंबई के वेस्टर्न रेल्वे के ऑटो क्लोसिंग डोर ईएमयू में देखा जाता है। लाल रंग की धारियों वाले रेल के डिब्बे ये इंगित करते हैं कि ये फर्स्ट क्लास कोच हैं, अक्सर ऐसा मुंबई के वेस्टर्न रेल्वे में ही दिखाई देता है। इस तरह से इन अलग अलग रंग की धारियों से यात्री आसानी से पहचान जाते है कि आपको किस कोच में सवारी करना है। सुलेना मजुमदार अरोरा You May Also like Read the Next Article