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चंपकवन में हर साल की तरह इस वर्ष भी 'संपन्न मेला' आयोजित किया गया, जिसमें सभी जानवर और पक्षी मिलते, विचार साझा करते और एकता बढ़ाते।
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मेले में राजा शेरसिंह की घोषणा के अनुसार कोई भी किसी दूसरे का भोजन नहीं खाता, और सब मिलकर महाराजा की दावत का आनंद लेते हैं।
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सभा के दौरान कोयल ने अपने मीठे गाने से सबका दिल जीत लिया, लेकिन मादा कौआ का मजाक उड़ाया, जिससे कौआ को अपमानित महसूस हुआ।
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मादा कौआ ने मंच पर आकर बताया कि कोयल अपने अंडे कौओं के घोंसलों में रखती है, जिससे कोयल को अपनी गलती का अहसास हुआ।
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कोयल ने मादा कौआ से माफी मांगी और उसके त्याग का महत्व समझा, यह जानकर कि कौआ उसके अंडों का पालन करती है।
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वनराज ने निर्णय किया कि कोयल का पछतावा तभी पूरा होगा जब वह कौए की दोस्ती को सच्चे दिल से निभाएगी।
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कहानी से यह सीख मिलती है कि हमें एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए और एकता की भावना को बनाए रखना चाहिए।
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यह कहानी त्याग, माफी और दोस्ती के महत्व को उजागर करती है, जो समाज में सामंजस्य बनाए रखने के लिए जरूरी हैं।
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