साइकिल मरम्मत की दुकान से करोड़ो के मालिक कैसे बने लक्ष्मणराव काशीनाथ किर्लोस्कर

 लक्ष्मणराव काशीनाथ किर्लोस्कर: कम्पनी खड़ी करने वाले भारत के प्रसिध्द इंडस्ट्री, 'किर्लोस्कर ग्रुप' के बारे में विश्व में कौन नहीं जानता है। लेकिन इस इंडस्ट्री को सफलता की ऊंचाई तक पंहुचाने में किर्लोस्कर समूह के संस्थापक लक्ष्मणराव काशीनाथ किर्लोस्कर को किन किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था

By Lotpot
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How Laxmanrao Kashinath Kirloskar became owner of crores from cycle repair shop

लक्ष्मणराव काशीनाथ किर्लोस्कर: कम्पनी खड़ी करने वाले भारत के प्रसिध्द इंडस्ट्री, 'किर्लोस्कर ग्रुप' के बारे में विश्व में कौन नहीं जानता है। लेकिन इस इंडस्ट्री को सफलता की ऊंचाई तक पंहुचाने में किर्लोस्कर समूह के संस्थापक लक्ष्मणराव काशीनाथ किर्लोस्कर को किन किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था यह उन सभी के लिए एक सच्ची प्रेरणा हैं जो जीवन में कई चुनौतियों का सामना करने के बावजूद अपने सपनों को हासिल करना चाहते हैं।

भारत के महाराष्ट्र में गुरलाहोसुर नामक एक छोटे से गाँव में 20 जून, 1869 को जन्मे लक्ष्मणराव एक गरीब परिवार से थे। उनके पिता एक वेदांत पंडित थे। उनके परिवार वाले चाहते थे कि लक्ष्मणराव अपने पिता के काम को आगे बढ़ाए लेकिन लक्ष्मणराव को पेंटिंग और मैकेनिकल क्षेत्र में आगे बढ़ने की इच्छा थी। अपनी इस इच्छा को पूरा करने के लिए वे मुंबई आ गए और पेंटिंग तथा मेकनिकल ड्राइंग सीखने लगे परंतु उन्हे पेंटिंग की पढ़ाई आधे में ही छोड़ना पड़ा क्योंकि वे कलर ब्लाइंड डाएग्नाइज़्ड हुए।

हालांकि मेकनिकल ड्राइंग की शिक्षा उन्होने पूरी की और विक्टोरिया जुबली टेक्निकल संस्थान में सिर्फ पैंतालीस रुपये प्रति महीने में बतौर सहायक-शिक्षक उन्होने काम करना शुरू किया। कुछ ही समय में उन्होने महसूस किया कि इस नौकरी में उनका कोई भविष्य नहीं है, तब उन्होने खुद अपना कोई छोटा सा व्यवसाय खोलने का निर्णय किया और अपने बड़े भाई रामूअन्ना की मदद से 1888 को 'किर्लोस्कर ब्रदर्स नाम से अपनी एक छोटी सी साइकिल मरम्मत की दुकान खोल ली।आर्थिक बाधाओं, संसाधनों की कमी और बड़े बड़े व्यवसायियों से टक्कर, जैसी कई चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, लक्ष्मणराव डटे रहे और धीरे धीरे उन्हे बड़ी सफलता हासिल होने लगी। पुणे में औंध के राजा से सत्रह हजार रुपये उधार लेकर उन्होने 1910 में कुंडल रोड पर एक बंजर जमीन खरीद ली और किर्लोस्कर इंडस्ट्रीज के नाम से जानी जाने वाली अपनी फैक्ट्री की स्थापना की, जिसे अब किर्लोस्करवाड़ी कहा जाता।

कुछ ही समय में लक्ष्मणराव ने लोहे के औजार बनाने का व्यवसाय शुरू किया और खेती के लिए उपयुक्त लोहे का हल, चारा काटने की मशीन बनाने लगे परंतु उनके विपक्षी दुकानदारों ने अफवाह फैलाया कि उन औजारों से खेत को नुकसान पंहुचता है इसलिए कोई किसान उसे खरीदना नहीं चाहते थे। आखिर दो साल बाद उनका पहला हल बिक पाया।

उनका व्यवसाय तेजी से बढ़ा और उन्होंने किर्लोस्कर समूह की स्थापना की, जो आज भारत की चोटी की इंजीनियरिंग कंपनियों में से एक है और 2.5 बिलियन डॉलर से भी ज्यादा का विशाल समूह बन गया है। आज किर्लोस्कर कंपनी लगभग अट्ठाइस हजार कर्मचारियों को रोजगार दे रही है और दुनिया भर के कई देशों के साथ भारत में घर-घर में पहचाना जाने वाला नाम है। यह कंपनी बिजली उत्पादन उपकरण से लेकर औद्योगिक पंप, वाल्व, इंजिन, ब्रिज, फ्लाईओवर, पाइप लाइन और भी ढेरों मशीनरी बनाती है

लक्ष्मणराव किर्लोस्कर एक उद्योगपति होने के साथ-साथ एक समाज सुधारक भी थे। वे अस्पृश्यता को दूर करने में विश्वास करते थे और उन्होंने किर्लोस्करवाड़ी में छुआछूत की भेदभाव दूर कर दिया था। वे जेल की सजा काट चुके -अपराधियों को भी अपनी कम्पनी में काम के नियुक्त करते थे।

लक्ष्मणराव काशीनाथ किर्लोस्कर एक दूरदर्शी, पथप्रदर्शक और मानवता की अच्छाई में दृढ़ विश्वास रखने वाले व्यक्ति थे।
20 जून, 1969 को उनकी 100 वीं जयंती मनाने के लिए, भारत सरकार के डाक विभाग ने उन्हें समर्पित एक डाक टिकट जारी किया।
लक्ष्मणराव की सफलता की कहानी इस बात का प्रमाण है कि कड़ी मेहनत, दृढ़ संकल्प और दृढ़ता से कोई भी कुछ भी हासिल कर सकता है।

★सुलेना मजुमदार अरोरा ★