Jungle kahani : जंगल का सबसे चतुर खरगोश

जंगल की यह मौलिक कहानी आपको सिखाएगी कि ताक़त से ज़्यादा बुद्धि क्यों मायने रखती है। मिलिए 'बुद्धू' नाम के एक छोटे, लेकिन बहुत चतुर खरगोश से, जिसने अपनी तेज़ दिमाग से पूरे जंगल को एक विशाल ख़तरे से बचाया।

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जंगल का सबसे चतुर खरगोश: 'बुद्धिमान' ने कैसे एक विशाल शेर को हराया?

रंगटीला जंगल (Rangatila Jungle) एक समय अपनी हरियाली, शांत नदियों और ख़ुशहाल जानवरों के लिए मशहूर था। लेकिन अब उस जंगल पर एक घना साया पड़ चुका था। यह साया था, एक नए, विशाल और अहंकारी शेर का, जिसका नाम था 'गर्जन'। गर्जन अपनी ताक़त के नशे में चूर था और उसने पूरे जंगल में आतंक फैला रखा था। हर दिन कोई न कोई जानवर ग़ायब हो जाता, जिससे सभी जानवर डर के मारे सहमे रहते थे।

इन्हीं डरे हुए जानवरों के बीच, एक छोटा-सा खरगोश रहता था, जिसका नाम था 'बुद्धू'। उसे बुद्धू इसलिए कहते थे क्योंकि वह कद में सबसे छोटा था और चुपचाप रहता था। ज़्यादातर जानवर उसे नादान और कमज़ोर समझते थे। लेकिन किसी को नहीं पता था कि बुद्धू के छोटे से सिर में बुद्धि का खजाना छिपा था, जिसकी चमक जंगल के सबसे तेज़ शिकारी की आँखों को भी चौंधिया सकती थी।

भीषण संकट और जंगल की सभा

गर्मी का मौसम था, और जंगल में पानी के स्रोत धीरे-धीरे सूख रहे थे। इस सूखे ने जानवरों को अपने बिलों और घरों से बाहर निकलने पर मजबूर कर दिया, जिससे वे शेर 'गर्जन' का आसान शिकार बन जाते थे।

एक शाम, वटवृक्ष के नीचे जंगल की सबसे ज़रूरी सभा बुलाई गई। हिरण राजा, जो भय से थरथरा रहे थे, ने कहा, "हे मेरे साथियों! 'गर्जन' ने हमारा जीना मुश्किल कर दिया है। हमारी ताक़त, हमारी तेज़ी, सब उसके आगे बेकार है। हमें कोई रास्ता निकालना होगा, वरना यह जंगल जल्द ही ख़ाली हो जाएगा।"

भालू ने अपनी मोटी आवाज़ में कहा, "हम सब मिलकर लड़ेंगे, राजा!"

लेकिन सियार ने निराशा से सिर हिलाया, "नहीं, भालू भाई। हमने कोशिश की थी। उसकी दहाड़ से तो हमारे कान के पर्दे फट जाते हैं, और उसकी ताक़त दस हाथियों के बराबर है। हमें कोई ऐसा उपाय चाहिए जहाँ हमें ताक़त नहीं, बल्कि अक्ल का इस्तेमाल करना पड़े।"

सभा में चारों ओर सन्नाटा छा गया। किसी के पास कोई हल नहीं था।

अचानक, भीड़ के पीछे से एक दबी हुई आवाज़ आई, "मैं 'गर्जन' से मिलूँगा।"

सबने देखा। यह कोई और नहीं, छोटा खरगोश बुद्धू था।

हिरण राजा मुस्कुराए, "बुद्धू, बैठ जाओ बच्चे। यह शेरों से लड़ने की बात है, कोई गाजर तोड़ने की नहीं।"

बुद्धू बिना डरे, बीच में आया और आत्मविश्वास से बोला, "महाराज! मैं जानता हूँ कि ताक़त में मैं उसके सामने कुछ नहीं हूँ, लेकिन मैंने 'गर्जन' को क़रीब से देखा है। उसकी ताक़त उसका घमंड है। अगर हम उसके घमंड को निशाना बनाएँ, तो वह बिना लड़े ही हार जाएगा।"

सभी जानवर आश्चर्य से एक-दूसरे को देखने लगे। खरगोश की आँखों में चमक थी, जो पहले कभी नहीं दिखी थी। हिरण राजा ने सोचा कि डूबते को तिनके का सहारा, और उन्होंने बुद्धू को एक मौक़ा देने का फ़ैसला किया।

खरगोश का निमंत्रण और शेर का घमंड

अगले दिन, सुबह होते ही, बुद्धू बिना किसी को बताए, 'गर्जन' की गुफा की ओर निकल पड़ा। उसने रास्ते में अपनी बुद्धिमानी से एक बहुत ही रोचक और काल्पनिक जाल बुना।

गुफा के पास पहुँचकर, बुद्धू ने अपनी आवाज़ को जितना हो सके, तेज़ किया और चिल्लाया, "जंगल के राजा! क्या आप अंदर हैं, या मेरी चुनौती से डर गए?"

गुफा से एक गहरी, ज़मीन कंपा देने वाली दहाड़ आई। गर्जन बाहर निकला। उसकी आँखें लाल थीं, और वह खरगोश को देखकर हँसा।

"ओह! आज नाश्ता खुद चलकर आया है! तुम कौन हो, छोटे दाने, और किस चुनौती की बात कर रहे हो?"

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बुद्धू ने ज़रा भी न डरते हुए कहा, "महाराज, मैं खरगोश बुद्धू। मैं आपसे कोई लड़ाई नहीं, बल्कि 'बुद्धि की चुनौती' लेकर आया हूँ।"

गर्जन और तेज़ हँसा। "बुद्धि? तुम और बुद्धि? मेरी एक दहाड़ तुम्हारे पूरे ख़ानदान की अक्ल ठिकाने लगा सकती है।"

"हो सकता है," बुद्धू ने शांत लहज़े में कहा, "लेकिन अगर आपकी बुद्धि मेरी बुद्धि से तेज़ निकली, तो मैं ख़ुद को आपको सौंप दूँगा। और अगर आप हार गए, तो आपको एक हफ़्ते के लिए इस जंगल का इलाक़ा छोड़कर जाना होगा। चुनौती यह है कि, क्या आप उस 'रहस्यमय नदी' को जानते हैं, जो इस जंगल के सबसे गहरे राज़ को अपने साथ बहाकर लाती है?"

गर्जन का घमंड ललकारा गया। उसे लगा कि यह खरगोश समय बर्बाद कर रहा है। "ज़रूर जानता हूँ! इस जंगल का हर पत्ता मेरी मर्ज़ी से हिलता है। मुझे दिखाओ कहाँ है तुम्हारी 'रहस्यमय नदी'?"

गुफा का रहस्य और परछाई का भ्रम

बुद्धू, आगे-आगे चलता गया। वह शेर को जंगल के सबसे पुराने हिस्से, जहाँ एक सूखी खाई थी, वहाँ ले गया। यह जगह ऐसी थी, जहाँ पत्थरों पर काई जमी थी और बीच में एक छोटा-सा, बहुत गहरा कुआँ था जो आजकल सूख चुका था, लेकिन उसके अंदर हल्का-सा पानी दिख रहा था।

"देखिए महाराज," बुद्धू ने कुएँ की ओर इशारा करते हुए कहा, "यह है वह 'अदृश्य नदी'। यह सिर्फ़ उसी को पानी देती है, जो सबसे बुद्धिमान हो। यह पानी नहीं, बल्कि बुद्धि का अमृत है।"

गर्जन ने ध्यान से कुएँ के अंदर देखा। उसे अंदर कुछ हलचल दिखी। यह हल्का-सा पानी, कुएँ के गोलाकार किनारों पर टकराकर शांत हो रहा था।

बुद्धू ने अपनी योजना का दूसरा हिस्सा शुरू किया, "लेकिन महाराज! इस अमृत की रक्षा 'दूसरा राजा' करता है।"

गर्जन चौंक गया। "दूसरा राजा? इस जंगल में मेरे अलावा कौन है?"

"वह बहुत शक्तिशाली है," बुद्धू ने फुसफुसाते हुए कहा, "वह ख़ुद को अमृत के अंदर छिपाकर रखता है। आप अपनी ताक़त और बुद्धिमानी साबित करने के लिए उसे ललकारिए, ताकि वह आपको अमृत पीने की इज़ाज़त दे दे।"

गर्जन का घमंड अब आसमान छू रहा था। "यह कौन है जो मेरे सामने ख़ुद को राजा कहता है?"

शेर ने ख़ुद को तैयार किया और ज़ोर से दहाड़ मारी! "गर्जन!"

जैसे ही उसने दहाड़ मारी, कुएँ के शांत पानी में हलचल हुई और कुएँ की गोलाकार दीवार ने आवाज़ को लौटा दिया। अंदर पानी में उसकी अपनी परछाईं हिलती हुई दिखाई दी, जो दहाड़ मारने से और भी डरावनी लग रही थी, और गूंज की आवाज़ वापस आई, "गर्जन!"

खरगोश ने तुरंत कहा, "महाराज! देखिए! उसने आपकी दहाड़ का जवाब दिया। उसने आपका नाम लिया, यानी उसने आपको पहचान लिया है। लेकिन उसने आपको अमृत पीने की इज़ाज़त नहीं दी। उसने आपको ललकारा है!"

शेर अपनी ही परछाईं को दूसरा राजा समझ बैठा। उसका अहंकार चोट खा चुका था। वह सोचने लगा कि यह कितना मूर्ख है जो एक खरगोश के सामने मुझे नीचा दिखा रहा है।

"मैं इस पाखंडी को दिखाता हूँ!" गर्जन गुस्से से चिल्लाया, "ताक़त का असली मतलब क्या होता है!"

गर्जन ने बिना सोचे-समझे, अपनी पूरी ताक़त से छलांग लगा दी, ताकि वह पानी में दिख रहे 'दूसरे राजा' को सबक सिखा सके।

बुद्धि की विजय और नई पहचान

लेकिन जैसे ही वह कूदा, गर्जन को एहसास हुआ कि कुआँ बहुत गहरा है और उसके किनारे इतने चिकने हैं कि वह वापस नहीं चढ़ सकता। कुएँ में पानी कम था, लेकिन वह इतना गहरा था कि शेर न तो अंदर से बाहर निकल सकता था और न ही वापस छलांग लगा सकता था। वह अंदर बुरी तरह फँस गया।

वह ज़ोर-ज़ोर से दहाड़ने लगा, "बुद्धू! तूने मुझे धोखा दिया! मैं तुझे छोड़ूँगा नहीं!"

बुद्धू ने कुएँ के मुहाने पर आकर मुस्कुराया, "महाराज! न मैंने आपको धोखा दिया और न ही मैंने आपसे लड़ाई की। मैंने तो बस आपको आपकी परछाईं से मिलवाया। आपने अपनी ताक़त पर इतना भरोसा किया कि आपने बुद्धि का अमृत पीना ज़रूरी नहीं समझा।"

बुद्धू तुरंत वहाँ से भागा और सीधे वटवृक्ष की ओर गया। उसने हिरण राजा और बाकी जानवरों को पूरी घटना विस्तार से बताई।

पहले तो किसी को यक़ीन नहीं आया, लेकिन जब सबने जाकर देखा, तो सचमुच 'गर्जन' कुएँ में फँसा हुआ था।

जानवरों ने मिलकर बुद्धू की जय-जयकार की। उन्होंने तुरंत एक सुरक्षित और गहरा गड्ढा खोदा और 'गर्जन' को बिना किसी चोट के उस नए और स्थायी गड्ढे में डाल दिया, जिसके ऊपर मज़बूत लकड़ी का घेरा लगा दिया गया। जंगल अब सुरक्षित था।

हिरण राजा ने उस दिन ख़रगोश बुद्धू को एक नया नाम दिया: 'बुद्धिमान' (Buddhiman)

पूरा जंगल खुशी से झूम उठा। उन्हें समझ आ गया था कि जंगल की सबसे बड़ी ताक़त दहाड़ या पंजे नहीं, बल्कि समझदारी और एकजुटता है।


इस कहानी से सीख (Moral of the Story)

"बुद्धि ताक़त से कहीं ज़्यादा बड़ी होती है।"

यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में बड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें सिर्फ़ शारीरिक शक्ति पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। सोचने की शक्ति, धैर्य और सही योजना बनाना, किसी भी विशाल ख़तरे या समस्या को हरा सकता है। घमंड हमेशा हार का कारण बनता है, चाहे वह एक विशाल शेर का हो या किसी बड़ी समस्या का।

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