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एकता का महामंत्र कहानी: टूटी दोस्ती और ताकत का सबक
परिचय: जंगल की टूटती डोर और बिखरे रिश्ते
प्यारे बच्चों, क्या आपने कभी किसी रस्सी को देखा है? जब उसमें एक धागा टूट जाता है, तो पूरी रस्सी कमज़ोर हो जाती है। ठीक इसी तरह, जब किसी समूह में लोग आपस में लड़ते हैं, तो उनकी शक्ति ख़त्म हो जाती है। इस दुनिया में सबसे बड़ा बल एकता है। एकता का अर्थ है—मिलकर रहना और एक-दूसरे का सहयोग करना।
आज हम एक ऐसे जंगल की कहानी पढ़ेंगे, जिसका नाम था 'खुशहाली वन'। इस वन में सब जानवर बहुत खुश रहते थे, लेकिन धीरे-धीरे उनके बीच छोटी-छोटी बातों पर झगड़े होने लगे। उन्होंने एकता का महामंत्र भुला दिया, जिसका नतीजा यह हुआ कि पूरे जंगल पर एक भयानक संकट आ गया।
खुशहाली वन की बिखरी दोस्ती
खुशहाली वन में कई जानवर रहते थे, जिनमें तीन दोस्त सबसे खास थे:
चंटू गिलहरी: जो सबसे फुर्तीली थी, पर थोड़ी घमंडी थी।
परेश कबूतर: जो बहुत ऊँचा उड़ सकता था, पर हमेशा अपनी ही धुन में रहता था।
बलराम हाथी: जो सबसे बलवान था, पर बहुत ही अकेलापन महसूस करता था।
पहले तो वे सब मिल-जुलकर रहते थे। चंटू गिलहरी पेड़ों के नीचे से बीज लाती थी, परेश कबूतर ऊपर से देखता था कि रास्ता साफ़ है या नहीं, और बलराम हाथी बड़े-बड़े पत्थरों को हटाता था।
छोटी बातें और बड़ा झगड़ा
लेकिन एक दिन, एक बड़ा स्वादिष्ट
चंटू गिलहरी: "मैंने पहले देखा था!"
परेश कबूतर: "पर मैं पहले वहाँ पहुँचा था!"
बलराम हाथी: "शांत हो जाओ! मैं सबसे बड़ा हूँ, इसलिए यह मुझे मिलेगा!"
यह एक छोटी सी बात थी, मगर इस झगड़े ने उनकी दोस्ती तोड़ दी। तीनों ने तय किया कि वे अब अलग-अलग रहेंगे।
चंटू गिलहरी: "मुझे किसी की ज़रूरत नहीं। मैं अकेली ही अपने लिए सब कुछ कर सकती हूँ।"
परेश कबूतर: "मैं उड़कर दूर चला जाऊँगा, जहाँ कोई झगड़ा न हो।"
इस तरह, जंगल में सब जानवर अब अकेले-अकेले रहने लगे। हर कोई सोचता था कि वह अपने दम पर सबसे मज़बूत है।
संकट की दस्तक: शिकारियों का खतरा
खुशहाली वन की यह बिखरी हुई स्थिति दूर से एक शिकारी समूह ने देख ली। वे जानते थे कि जब जानवर अकेले होते हैं, तो उन्हें पकड़ना आसान होता है।
शिकारियों ने चुपके से जंगल के चारों ओर गहरे गड्ढे खोद दिए और उन पर घास-पत्ते डालकर ढक दिया—जिसे
शिकारियों ने जानवरों को डराने के लिए ढोल बजाना और शोर मचाना शुरू कर दिया। जानवर डरकर इधर-उधर भागने लगे।
जब शक्ति अकेली पड़ गई
सबसे पहले, बलवान बलराम हाथी डरकर भागा, लेकिन वह तेज़ी से भागते हुए ज़मीन पर रखे एक जाल (छिपे हुए गड्ढे) में जा फँसा। उसका विशाल बल भी उसे उस गहरे गड्ढे से नहीं निकाल सका।
चंटू गिलहरी जो फुर्ती से पेड़ों पर दौड़ रही थी, उसे नीचे का खतरा नहीं दिखा। वह भी हड़बड़ी में एक गड्ढे के किनारे पहुँची और कूदने की कोशिश में उसी में गिर गई।
परेश कबूतर ने उड़कर दूर जाने की कोशिश की। पर, वह इतनी ऊँचाई पर था कि उसे यह पता नहीं चल पा रहा था कि गड्ढे कहाँ हैं और सुरक्षित रास्ता कहाँ है। वह वापस आया और देखा कि उसके दोस्त फँस चुके हैं।
एकता का महामंत्र: साथ मिलकर काम
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जब परेश कबूतर ने देखा कि उसके दोनों दोस्त खतरे में हैं, तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने तुरंत समझ लिया कि अब लड़ने का नहीं, मिलकर काम करने का समय है।
अतः, वह तुरंत गिलहरी के पास गया और चिल्लाया:
परेश कबूतर: "चंटू, सुनो! तुम सबसे फुर्तीली हो। तुम गड्ढे के अंदर से मिट्टी खोदकर बाहर फेंको और बलराम हाथी को यह बताओ कि गड्ढे कहाँ-कहाँ हैं, क्योंकि तुम नीचे से देख सकती हो!"
चंटू गिलहरी: (शर्मिंदा होकर) "ठीक है! मैं करती हूँ!"
चंटू ने तुरंत मिट्टी खोदना शुरू किया। उधर , परेश कबूतर ने उड़कर दूसरे जानवरों को इकट्ठा किया और उन्हें बताया कि बलराम फँस गया है।
सब जानवरों ने मिलकर एक लंबी रस्सी बनाई।
कार्य विभाजन:परेश कबूतर ऊपर से रास्ता बताता रहा। चंटू गिलहरी ने मिट्टी हटाकर गड्ढे को चौड़ा किया। और फिर, सभी जानवरों ने मिलकर रस्सी से बलराम हाथी को धीरे-धीरे गड्ढे से बाहर निकाला।
बलराम बाहर निकलते ही, उसने अपनी ताक़त का इस्तेमाल किया और बाकी सभी शिकारियों के जाल और गड्ढों को पूरी तरह से ढक दिया। उस दिन जंगल के सभी जानवरों ने समझ लिया कि न तो अकेला बल काम आता है, न अकेली फुर्ती, और न ही अकेला ज्ञान।
उन्होंने उस दिन से हमेशा मिलकर रहने का संकल्प लिया और वह दिन जंगल के लिए "एकता का महामंत्र दिवस" बन गया।
सीख (Moral of the Story)
यह कहानी हमें सिखाती है कि एकता में ही सच्चा बल होता है। जब हम छोटे-छोटे मतभेदों को भुलाकर एक-दूसरे का सहयोग करते हैं, तो कोई भी बड़ी से बड़ी मुसीबत हमें हरा नहीं सकती। हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि 'अकेले हम सिर्फ़ एक बूँद हैं, पर साथ में हम एक महासागर हैं।'
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