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झूठी शान का सबक: एक शिक्षाप्रद जंगल कहानी:- यह शिक्षाप्रद बाल कहानी एक उल्लू घूमा और हंस स्वानराज की दोस्ती की है। घूमा, जो एक साधारण उल्लू है, अपने दोस्त स्वानराज को प्रभावित करने के लिए झूठ बोलता है कि वह उल्लुओं का राजा है। वह किले की सैनिक परेड को अपनी शान का हिस्सा बताकर स्वानराज को बेवकूफ बनाता है। लेकिन जब सैनिक उल्लू की आवाज़ को अपशकुन समझकर तीर चलाते हैं, तो स्वानराज मारा जाता है, और घूमा भी एक सियार का शिकार बन जाता है। यह कहानी बच्चों को सिखाती है कि झूठी शान दिखाने से नुकसान हो सकता है और सच्चाई ही सबसे बड़ा गुण है।
कहानी: झूठी शान का सबक
एक घने जंगल के बीच, जहाँ हवा में पेड़ों की सरसराहट और पक्षियों की चहचहाहट गूँजती थी, एक ऊँचे पहाड़ पर एक पुराना किला खड़ा था। किले के पास एक विशाल बरगद का पेड़ था, जिसकी शाखाओं पर एक उल्लू रहता था, जिसका नाम था घूमा। घूमा हर रात जंगल की घाटी में उड़ान भरता और वहाँ की घासों व झाड़ियों में छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़े ढूँढकर अपना पेट भरता।
किले से कुछ दूरी पर एक चमकती झील थी, जिसमें कई खूबसूरत हंस तैरते थे। घूमा अक्सर बरगद की डाल पर बैठकर हंसों को देखा करता। उनके दूध जैसे सफेद पंख, लंबी सुंदर गर्दन और चमकती आँखें उसे मंत्रमुग्ध कर देती थीं। “काश, मैं भी इन हंसों जैसा सुंदर होता!” वह सोचता। “और काश, मेरा कोई हंस दोस्त बन जाए!”
एक दिन, घूमा ने हिम्मत जुटाई और झील के किनारे एक झाड़ी पर जा बैठा। वहाँ एक हंस, जिसका नाम था स्वान, बड़े शान से तैर रहा था। घूमा ने हल्के से खाँसा और बोला, “हंस जी, नमस्ते! क्या मैं इस झील का पानी पी सकता हूँ? बड़ी प्यास लगी है!”
स्वान ने मुस्कुराकर कहा, “अरे, भाई घूमा! पानी तो सबके लिए है। पी लो, और अगर मन हो तो थोड़ा मेरे साथ गप्पें भी मार लो!”
घूमा ने पानी पिया और फिर थोड़ा शरमाते हुए बोला, “स्वान जी, आप तो इतने सुंदर और बुद्धिमान लगते हैं। मुझे लगता है, आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।”
स्वान हँसा और बोला, “अरे, तुम भी तो कम नहीं हो! रात में जब सारा जंगल सोता है, तुम्हारी आँखें चमकती हैं। चलो, दोस्ती पक्की!”
बस, यहीं से घूमा और स्वान की दोस्ती पक्की हो गई। दोनों हर दिन झील के किनारे मिलते, बातें करते, और एक-दूसरे से जंगल की कहानियाँ साझा करते। एक दिन, स्वान ने घूमा को बताया, “दोस्त, मैं कोई साधारण हंस नहीं, मैं इस झील के हंसों का राजा हूँ। मेरा नाम स्वानराज है!”
घूमा की आँखें चमक उठीं। “वाह, स्वानराज! तुम तो सचमुच राजा हो!” उसने कहा। स्वानराज ने उसे अपने महल में बुलाया। वहाँ कमल के फूलों की मिठाइयाँ, ताज़े फल, और मोतियों की सजावट थी। घूमा तो दंग रह गया। “इतना शाही ठाठ!” वह बुदबुदाया।
हर दिन स्वानराज घूमा को अपने महल में बुलाता, और दोनों शाही दावतों का लुत्फ़ उठाते। लेकिन घूमा के मन में एक डर बैठ गया। “कहीं स्वानराज को पता चल गया कि मैं एक साधारण उल्लू हूँ, तो वो मेरी दोस्ती तोड़ न दे!” उसने सोचा।
इस डर से घूमा ने एक दिन झूठ बोल दिया। “स्वानराज, तुम्हें तो पता ही नहीं, मैं भी कोई साधारण उल्लू नहीं हूँ। मैं उल्लुओं का राजा हूँ, मेरा नाम घूमराज है!”
स्वानराज ने हैरानी से कहा, “अरे वाह, घूमराज! ये तो कमाल की बात है! फिर तो तुम्हें भी मुझे अपने महल में बुलाना चाहिए!”
घूमा थोड़ा घबराया, लेकिन उसने हिम्मत जुटाई और बोला, “बिल्कुल, दोस्त! कल ही मेरे किले में आना। मैं तुम्हारा शाही स्वागत करूँगा!”
घूमा ने किले की गतिविधियों को गौर से देखा था। वह जानता था कि हर दिन सूर्यास्त के समय सैनिक परेड करते हैं और बिगुल बजाते हैं। उसने सोचा, “बस, यही मौका है अपनी शान दिखाने का!”
अगले दिन, घूमा स्वानराज को लेकर बरगद के पेड़ पर पहुँचा। ठीक उसी समय सैनिकों की परेड शुरू हुई। बिगुल की आवाज़ गूँजी, और सैनिकों ने झंडे को सलामी दी। घूमा ने रौब से कहा, “देखो, स्वानराज! मेरे सैनिक तुम्हारे स्वागत में बिगुल बजा रहे हैं। ये परेड तुम्हारे सम्मान में है!”
स्वानराज बहुत प्रभावित हुआ। “वाह, घूमराज! तुम तो सचमुच एक महान राजा हो! इतनी शानदार सेना!” उसने तारीफ़ की।
घूमा ने और जोश में आकर कहा, “मैंने आदेश दिया है कि जब तक तुम मेरे मेहमान हो, रोज़ ऐसी परेड होगी!” उसे पता था कि ये सैनिकों का रोज़ का नियम है, और उसका कोई लेना-देना नहीं।
उस दिन घूमा ने जंगल से फल, मेवे, और फूल इकट्ठा किए और स्वानराज को खिलाए। स्वानराज ने खुशी-खुशी खाया और बोला, “घूमराज, तुम्हारी मेहमाननवाज़ी लाजवाब है!”
लेकिन अगले दिन कुछ अनहोनी हो गई। सैनिकों को किले से कूच करने का आदेश मिला था। वे अपना सामान समेटकर जाने लगे। स्वानराज ने हैरानी से कहा, “घूमराज, ये क्या? तुम्हारी सेना तो बिना तुम्हारी आज्ञा के जा रही है!”
घूमा घबराया। उसने जल्दी से कहा, “अरे, ये ज़रूर कोई गलतफहमी है! रुको, मैं अभी उन्हें रोकता हूँ!” वह ज़ोर-ज़ोर से “हूँ-हूँ” करने लगा।
सैनिकों ने उसकी आवाज़ सुनी और उसे अपशकुन समझ लिया। “ये उल्लू फिर से घुघुआ रहा है!” एक सैनिक ने चिल्लाया। “लगता है, कोई अनहोनी होने वाली है!”
सैनिकों का सरदार गुस्से में बोला, “इस मनहूस उल्लू को सबक सिखाओ!” एक सैनिक ने तीर उठाया और निशाना साधा। लेकिन तीर गलती से घूमा की बगल में बैठे स्वानराज को जा लगा। स्वानराज तड़पकर नीचे गिर पड़ा और उसकी साँसें थम गईं।
घूमा सदमे में था। वह स्वानराज की लाश के पास बैठकर विलाप करने लगा, “हाय! मेरी झूठी शान ने मेरे सबसे प्यारे दोस्त की जान ले ली! मैंने ये क्या कर दिया!”
उसी समय, एक भूखा सियार वहाँ से गुज़र रहा था। उसने घूमा को उदास और कमज़ोर देखा और मौके का फायदा उठाकर उस पर झपट पड़ा। घूमा भी मारा गया।
जंगल में ये कहानी फैल गई। जानवरों ने इसे एक सबक की तरह याद रखा कि झूठी शान कभी नहीं दिखानी चाहिए, वरना उसका अंजाम बहुत बुरा हो सकता है।
इस कहानी से सीख
सच्चाई सबसे बड़ी शान है: झूठी शान दिखाने से न सिर्फ़ रिश्ते टूट सकते हैं, बल्कि बड़ा नुकसान भी हो सकता है।
दोस्ती में ईमानदारी: दोस्ती का आधार सच्चाई और विश्वास है, न कि दिखावा।
अपने आप को स्वीकार करें: जो आप हैं, उसी में गर्व करें; दूसरों को प्रभावित करने के लिए झूठ का सहारा न लें।
छोटी गलती, बड़ा नुकसान: एक छोटा-सा झूठ भी जिंदगी में भारी कीमत चुकाने का कारण बन सकता है।