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मनमौजी भालू को सबक: जब बर्गर और चिप्स ने भोलू की दौड़ हरा दी

मनमौजी भालू को सबक कैसे मिला? पढ़िए भोलू की कहानी जो जंगल का खाना छोड़कर इंसानों के 'जंक फूड' का दीवाना हो गया था। बच्चों के लिए सेहत और मेहनत की एक नई सीख।

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बच्चों, आज के समय में हम सबको "इंस्टेंट" (Instant) चीजें पसंद हैं। 2 मिनट में मैगी, 10 मिनट में पिज्जा डिलीवरी और बिना मेहनत के सब कुछ मिल जाना। लेकिन क्या आपको पता है कि यह "शॉर्टकट" वाली आदत हमें कितना कमजोर बना सकती है? आज की कहानी मनमौजी भालू की है, जिसे लगता था कि स्मार्ट वर्क का मतलब 'कामचोरी' होता है, लेकिन एक दिन उसे ऐसा सबक मिला कि उसकी सारी गलतफहमी दूर हो गई।


कहानी: भोलू भालू और 'पिकनिक वाला खाना'

चंपकवन जंगल के किनारे एक मशहूर 'पिकनिक स्पॉट' था। वहां अक्सर शहर से लोग घूमने आते थे। उसी जंगल में एक Wikipedia: भालू (Bear) रहता था, जिसका नाम था भोलू। भोलू बहुत मनमौजी और थोड़ा आलसी था।

जंगल के बाकी भालू सुबह-सुबह उठकर नदी में मछली पकड़ने जाते या पेड़ों पर चढ़कर शहद ढूंढते। लेकिन भोलू कहता, "अरे यार! तुम लोग भी कितने पुराने जमाने के हो। इतनी मेहनत क्यों करते हो?"

भोलू का 'स्मार्ट' तरीका

भोलू चुपके से पिकनिक स्पॉट के पास जाता और इंसानों द्वारा छोड़े गए चिप्स के पैकेट, बचा हुआ पिज्जा, केक और कोल्ड ड्रिंक की बोतलें उठा लाता। उसे यह चटपटा और मीठा खाना बहुत पसंद था। उसने अपने दोस्त चीकू खरगोश से कहा, "देख चीकू! इसे कहते हैं 'स्मार्ट लाइफ'। न शिकार करने की टेंशन, न पेड़ पर चढ़ने की मेहनत। बैठे-बिठाए टेस्टी खाना मिल जाता है।"

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चीकू ने उसे समझाया, "भोलू भाई, यह इंसानों का 'जंक फूड' है। इससे पेट तो भरता है, लेकिन ताकत नहीं मिलती। हमारा प्राकृतिक खाना (Natural Food) ही हमें मजबूत बनाता है।" भोलू हंसा और बोला, "तू जा गाजर खा, मुझे मजे करने दे।"

जंगल मैराथन का ऐलान

कुछ महीनों बाद, जंगल के राजा शेर सिंह ने "द ग्रेट जंगल मैराथन" (दौड़ प्रतियोगिता) का ऐलान किया। इनाम में 'रसीले फलों का एक बड़ा टोकरा' और 'जंगल का सबसे फिट जानवर' का खिताब मिलना था।

भोलू को लगा कि वह तो बहुत ताकतवर है, क्योंकि उसका वजन काफी बढ़ गया था (जो असल में मोटापा था)। उसने सोचा, "यह दौड़ तो मैं ही जीतूंगा।" दूसरी तरफ, जंगल के बाकी जानवर—हिरण, खरगोश और अन्य भालू—रोज सुबह दौड़ने की प्रैक्टिस करते और पौष्टिक खाना खाते।

दौड़ का दिन और भोलू की हालत

रविवार की सुबह रेस शुरू हुई। "रेडी... सेट... गो!"

सभी जानवर तेजी से भागे। भोलू ने भी जोश में दौड़ना शुरू किया। शुरू के 100 मीटर तो वह ठीक दौड़ा, लेकिन उसके बाद... उसकी सांस फूलने लगी। उसके पैरों में दर्द होने लगा। उसका भारी शरीर, जो सिर्फ चिप्स और मीठा खाकर फूला था, अब उसका साथ नहीं दे रहा था।

जो भोलू पहले पेड़ों पर सरपट चढ़ जाता था, आज वह समतल जमीन पर भी नहीं दौड़ पा रहा था। उसे चक्कर आने लगे और वह एक पेड़ के नीचे धड़ाम से बैठ गया। उधर, उसका दोस्त, जो रोज मेहनत करता था और प्राकृतिक भोजन करता था, उसने रेस पूरी की और जीत गया।

डॉक्टर हाथी की सलाह

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रेस खत्म होने के बाद डॉक्टर हाथी ने भोलू की जांच की। उन्होंने कहा, "भोलू, तुम्हारे शरीर में ताकत नहीं, सिर्फ सूजन और चर्बी है। वह 'पैकेट वाला खाना' तुम्हें बीमार बना रहा है। अगर तुम्हें असली ताकत चाहिए, तो वापस जंगल के तौर-तरीकों पर लौटना होगा।"

भोलू का सिर शर्म से झुक गया। उसे समझ आ गया कि आसानी से मिलने वाली चीजें हमेशा अच्छी नहीं होतीं।

उस दिन के बाद भोलू ने कसम खाई। उसने पिकनिक स्पॉट जाना छोड़ दिया। अब वह खुद मेहनत करता, नदी से मछली पकड़ता और ताजे फल खाता। कुछ ही महीनों में वह फिर से चुस्त और तंदुरुस्त हो गया।


कहानी से सीख (Moral of the Story)

बच्चों, इस कहानी से हमें आज के युग के लिए तीन बहुत जरूरी बातें सीखने को मिलती हैं:

  1. सेहत ही असली खजाना है: जंक फूड (चिप्स, बर्गर) खाने में अच्छे लग सकते हैं, लेकिन वे हमारे शरीर को अंदर से कमजोर कर देते हैं।

  2. मेहनत का कोई शॉर्टकट नहीं होता: बिना मेहनत के मिली सफलता या सुविधा ज्यादा दिन नहीं टिकती।

  3. प्रकृति से जुड़ें: जो पोषण हमें घर के सादे खाने या प्राकृतिक चीजों में मिलता है, वह बाजार की रंग-बिरंगी पैकेटों में नहीं होता।

निष्कर्ष: तो बच्चों, क्या आप भोलू जैसी गलती करेंगे? नहीं ना! आज ही वादा करो कि पैकेट वाला खाना कम और घर का बना हेल्दी खाना ज्यादा खाओगे।

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