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नकल का फल: दोस्तों, हम सब जानते हैं कि मेहनत ही सफलता की असली चाबी है, लेकिन कुछ लोग सोचते हैं कि अगर हम किसी सफल व्यक्ति की नक़ल कर लें, तो हमें भी कामयाबी आसानी से मिल जाएगी। क्या नक़ल करना हमेशा सही होता है? क्या मेहनत का कोई विकल्प है?
आज हम आपको सुंदरवन जंगल के एक आलसी सियार और एक मेहनती कठफोड़वे (Woodpecker) की मज़ेदार और प्रेरणादायक कहानी (Motivational Story) सुनाने जा रहे हैं। यह जंगल की कहानी बच्चों को सिखाएगी कि हर किसी का काम करने का तरीका अलग होता है, और बिना मेहनत के सिर्फ़ नक़ल करने से कैसा नकल का फल मिलता है। यह एक ऐसी best hindi story hindi है, जो आपको सिखाएगी कि अपने हुनर पर विश्वास करना और उसे निखारना क्यों ज़रूरी है।
कठफोड़वा टुकटुक और सियार छोटू: विपरीत स्वभाव
सुंदरवन जंगल अपनी हरियाली और शांति के लिए मशहूर था। इस जंगल में टुकटुक नाम का एक कठफोड़वा रहता था। टुकटुक अपने नाम की तरह ही दिनभर 'टुक-टुक' की आवाज़ करता रहता था। वह बहुत मेहनती और हुनरमंद था। उसकी ख़ासियत यह थी कि वह अपनी नुकीली चोंच से पेड़ के तने पर ध्यान से वार करके, उसके भीतर छिपे सबसे मीठे और मोटे कीड़ों को ढूँढ़ निकालता था। जंगल के सभी पक्षी जानते थे कि जहाँ टुकटुक काम करता है, वहाँ उसे हमेशा सबसे अच्छी खुराक मिलती है।
उसी जंगल में छोटू नाम का एक सियार रहता था। छोटू बहुत चालाक था, लेकिन साथ ही बेहद आलसी भी। वह मेहनत करने से कतराता था और हमेशा इस फ़िराक में रहता था कि कोई shortcut (आसान तरीका) मिल जाए, जिससे वह बाक़ी जानवरों से ज़्यादा हासिल कर सके। वह अक्सर टुकटुक को बड़े आराम से सबसे अच्छा खाना खाते देखता था और मन ही मन जलता रहता था।
छोटू (खुद से बड़बड़ाते हुए): "देखो उस कठफोड़वे को! दिनभर बस टुक-टुक करता रहता है और शाम को पेट भरकर सोता है। हम इतनी भाग-दौड़ करते हैं, फिर भी खाने के लिए तरस जाते हैं। ज़रूर इसके पास कोई ख़ुफ़िया ट्रिक (Secret Trick) है।"
छोटू को यह एहसास नहीं था कि टुकटुक की सफ़लता उसके वर्षों के अभ्यास और समर्पण का परिणाम थी।
नकल का विचार: बिना मेहनत के सफलता की चाह
एक दिन, टुकटुक एक बड़े बरगद के पेड़ पर बहुत ध्यान से काम कर रहा था। वह पेड़ की छाल को बहुत करीने से काट रहा था। छोटू छिपकर उसे देख रहा था। टुकटुक ने छाल का एक छोटा-सा टुकड़ा हटाया और उसमें से शहद से भरा हुआ एक छोटा कीटों का छत्ता बाहर निकाला।
टुकटुक ने ख़ुशी से छत्ता खा लिया। यह देखकर छोटू की आँखों में चमक आ गई।
छोटू (मन में): "अरे वाह! यह तो बहुत आसान है! इसे भागना नहीं पड़ता, शिकार नहीं करना पड़ता, बस पेड़ को टुक-टुक करो, और 'कीड़ों का खज़ाना' मिल जाता है! मैं भी अब यही करूँगा। टुकटुक की नक़ल करके मैं भी अमीर बन जाऊँगा!"
अगले ही दिन, छोटू ने अपने नक़ल करने के अभियान की शुरुआत की।
पहली नकल का हास्यास्पद प्रयास
छोटू सुबह-सुबह उठकर उसी बरगद के पेड़ के नीचे गया। उसने आसमान की ओर देखा और टुकटुक की तरह अपनी गर्दन को झुकाकर, पेड़ की छाल पर जोर-जोर से वार करना शुरू कर दिया।
लेकिन छोटू की चोंच तो थी नहीं! उसकी जगह उसके पास नुकीले दाँत थे। उसने अपने दाँतों से पेड़ को काटने की कोशिश की।
छोटू: "टुक-टुक! टुक-टुक! (दाँत पीसते हुए)। आआह! यह तो बहुत मुश्किल है! टुकटुक इतना आसान कैसे कर लेता है?"
उसने पूरी ताक़त से पेड़ पर वार किया, जिससे उसके दाँतों में दर्द शुरू हो गया। पेड़ की छाल पर एक खरोंच भी नहीं आई। आवाज़ सुनकर टुकटुक पास के पेड़ से उड़कर आया।
टुकटुक (हँसते हुए): "अरे छोटू भाई! तुम यह क्या कर रहे हो? क्या तुम 'लकड़ी का डॉक्टर' बन रहे हो?" छोटू (शर्मिंदा होते हुए): "टुकटुक, मैं... मैं भी तुम्हारे जैसा खाना ढूँढ़ रहा था। यह पेड़ तो बहुत कठोर है! तुम इतनी जल्दी कैसे अंदर घुस जाते हो?"
टुकटुक ने मुस्कुराते हुए कहा, "छोटू, मेरा यह हुनर रातोंरात नहीं आया। मेरी चोंच की बनावट, मेरी गर्दन की ताक़त और मेरा निशाना, यह सब मेरे कई सालों के अभ्यास का फल है। तुम सियार हो, तुम्हारा हुनर भागने और शिकार करने में है, न कि लकड़ी काटने में। अपनी नक़ल करना छोड़ो।"
लेकिन छोटू को यह बात समझ नहीं आई। उसे लगा कि कठफोड़वा उससे अपनी ख़ुफ़िया तरकीब छिपा रहा है।
बड़ी नकल का बड़ा लालच
कुछ दिनों बाद, जंगल में भयंकर गर्मी पड़ने लगी और साथ ही बारिश और तूफ़ान की चेतावनी भी आई। टुकटुक ने अपने लिए एक मज़बूत और ऊँचा घोंसला बनाने का फैसला किया। उसने एक मज़बूत, पुराने देवदार के पेड़ को चुना और महीनों की मेहनत से उसके सबसे ऊपरी हिस्से में, तूफ़ान से सुरक्षित, एक गहरा और आरामदायक घर बनाया।
छोटू ने फिर यह नज़ारा देखा। उसने सोचा, 'बरसात आने वाली है! मेरा गुफ़ा वाला घर सुरक्षित नहीं है। अगर मैं भी कठफोड़वे जैसा ऊँचा घर बना लूँ, तो मैं जंगल में सबसे सुरक्षित हो जाऊँगा! मुझे टुकटुक से बेहतर घर बनाना होगा।'
इस बार, छोटू ने जानवरों की नक़ल करने का फैसला किया। उसने सोचा कि कठफोड़वे का काम तो बहुत मुश्किल है, क्यों न किसी दूसरे जानवर की नक़ल की जाए। उसने देखा कि चतुर लंगूर घास-फूस और सूखी लकड़ियों को तेज़ी से इकट्ठा करके पेड़ की डालियों पर अपना घर बनाते हैं।
छोटू में सब्र बिलकुल नहीं था। उसने सिर्फ़ एक रात में लंगूरों के घोंसले की नक़ल करके अपने लिए एक घर बनाने का फ़ैसला किया। उसने जल्दी-जल्दी टूटी-फूटी डालियाँ, सूखी पत्तियाँ और कीचड़ इकट्ठा किया। उसने टुकटुक के घर से थोड़ी ही दूरी पर, एक पतली सी डाल पर, बिना किसी मज़बूत आधार के, एक ऊँचा-सा, भद्दा घर खड़ा कर दिया।
अगली सुबह छोटू अपने नए 'ऊँचे घर' पर बैठकर इतरा रहा था।
छोटू (टुकटुक को चिढ़ाते हुए): "अरे कठफोड़वा! तुमने तो इतना समय लगाया, और देखो! मैंने तो सिर्फ़ एक रात में तुमसे भी ऊँचा महल बना लिया! तुम सिर्फ़ टुक-टुक करते रह गए, और मैं आगे निकल गया!"
टुकटुक ने सिर्फ़ मुस्कुराया और सिर हिलाया। उसने कोई बहस नहीं की।
नकल का भयंकर अंजाम
शाम होते-होते आसमान में घने काले बादल छा गए। जंगल में तूफ़ान आ गया। हवाएँ तेज़ चलने लगीं और मूसलाधार बारिश होने लगी।
टुकटुक अपने मज़बूत, गहरी नींव वाले घर के अंदर सुरक्षित था। उसे बारिश की आवाज़ भी मुश्किल से सुनाई दे रही थी।
लेकिन छोटू के साथ क्या हुआ?
तेज़ हवा के पहले ही झोंके ने छोटू के जल्दीबाजी में बनाए गए घर की नींव हिला दी। 'सड़ाक!' की आवाज़ हुई और उसके कीचड़ और पत्तों से बना अस्थिर घर धड़ाम से टूटकर नीचे गिर गया!
छोटू चीख़ता हुआ ज़मीन पर कीचड़ में जा गिरा। वह ठंड और डर से काँप रहा था। उसका सारा लालच और अहंकार धुल गया था।
टुकटुक ने तुरंत अपने सुरक्षित घोंसले से झाँका। उसने छोटू को कीचड़ में पड़ा देखा।
टुकटुक (परेशान होकर): "छोटू! तुम ठीक तो हो? जल्दी मेरे घोंसले की तरफ आओ!"
टुकटुक ने नीचे लटकती एक बेल की मदद से छोटू को ऊपर अपने घर के पास खींचा। छोटू का सारा शरीर भीग चुका था और उसे बहुत ठंड लग रही थी।
सच्ची सीख और पश्चाताप
टुकटुक ने छोटू को आराम दिया और उसे साफ़ किया। छोटू अब पूरी तरह से शर्मिंदा था।
छोटू (रोते हुए): "टुकटुक, मैं कितना मूर्ख था। मैंने तुम्हारी मेहनत का मज़ाक उड़ाया और सोचा कि मैं रातोंरात अमीर बन जाऊँगा। मैंने न सिर्फ़ तुम्हारा हुनर चुराना चाहा, बल्कि लंगूरों के काम की भी बिना सोचे-समझे नक़ल की। इस नकल का फल बहुत बुरा मिला!"
टुकटुक (गंभीरता से): "छोटू, देखो। मैंने जो घर बनाया, वह मेहनत और सही ज्ञान से बना है। लंगूर भी जल्दी घर बनाते हैं, पर वे मज़बूत गांठे लगाना जानते हैं। तुम न तो लंगूर हो, न ही कठफोड़वा। तुम एक चतुर सियार हो। तुम्हारा असली हुनर यह नक़ल करना नहीं, बल्कि अपनी तेज़ बुद्धि का उपयोग करना है। किसी की नक़ल मत करो, बल्कि अपने स्वयं के हुनर को पहचानो और उसे निखारो।"
छोटू ने टुकटुक को गले लगा लिया और वादा किया कि अब वह अपनी आलस्य (Laziness) छोड़ेगा और अपने सियार वाले हुनर को पूरी ईमानदारी और लगन से विकसित करेगा।
उस दिन से छोटू ने कभी नक़ल नहीं की। उसने अपनी तेज़ सूँघने की शक्ति और चालाकी का इस्तेमाल करके शिकार के नए और कुशल तरीके ढूँढ़े। कुछ ही समय में वह अपने हुनर में इतना माहिर हो गया कि उसे किसी की नक़ल करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी।
कहानी का सार (Summary)
यह कहानी आलसी सियार छोटू की है, जो मेहनती कठफोड़वा टुकटुक की सफलता देखकर ईर्ष्या करता है और उसकी नक़ल करने की कोशिश करता है। पहले वह टुकटुक की तरह पेड़ काटकर भोजन ढूँढ़ने की नक़ल करता है, और फिर लंगूरों की तरह जल्दीबाज़ी में ऊँचा घर बनाता है। टुकटुक अपनी मेहनत और ज्ञान से तूफ़ान में सुरक्षित रहता है, जबकि छोटू का नक़ल किया हुआ घर ढह जाता है। इस घटना से छोटू को एहसास होता है कि बिना लगन और अभ्यास के सिर्फ़ नक़ल का फल हमेशा बुरा होता है, और उसे अपने हुनर पर ही भरोसा करना चाहिए।
सीख (Moral)
नक़ल में अक्ल नहीं:नकल का फल हमेशा मीठा नहीं होता। दूसरों की सफलता की नक़ल करने के बजाय, हमें अपने हुनर (Talent) पर ध्यान देना चाहिए और उसे निखारने के लिए सच्ची मेहनत करनी चाहिए।
हर किसी का रास्ता अलग: हर व्यक्ति अपने काम में माहिर होता है। जो काम आपके लिए नहीं बना है, उसकी नक़ल करके आप सिर्फ़ अपना समय और ऊर्जा बर्बाद करेंगे।
सफलता का कोई Shortcut नहीं:सफलता सिर्फ़ एक रातोंरात का काम नहीं, बल्कि धैर्य, अभ्यास और लगन का फल है।
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