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परोपकारी बंदर कहानी: निस्वार्थ सेवा का महत्व | सच्ची दयालुता

बच्चों के लिए एक प्रेरणादायक जंगल कहानी। जानिए कैसे एक छोटे बंदर ने अपनी चतुराई और निस्वार्थ सेवा से पूरे जंगल को मुसीबत से बचाया। परोपकार के मूल्य को समझें।

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प्यारे बच्चों, जंगल में रहने वाले जानवरों के लिए सबसे ज़रूरी चीज़ क्या होती है? वह है पानी! जब जीवन पर संकट आता है, तो असली परीक्षा होती है कि कौन सिर्फ़ अपना पेट भरता है और कौन दूसरों के बारे में सोचता है।

आज हम घने 'सुख-वन' में रहने वाले एक बूढ़े और बहुत ही दयालु बंदर की कहानी पढ़ेंगे, जिसका नाम था 'दयाल'। दयाल शारीरिक रूप से कमज़ोर था, पर उसका दिल सोने जैसा था। उसकी यह कहानी हमें सिखाएगी कि सच्चा परोपकार (दूसरों की भलाई) क्या होता है, और यह कि निस्वार्थ सेवा ही जीवन की सबसे बड़ी दौलत है।


सूखा का संकट और स्वार्थ

सुख-वन में कई दिनों से भयंकर सूखा पड़ा हुआ था। वर्षा न होने के कारण जंगल का इकलौता बड़ा तालाब सूख चुका था। अब बस एक छोटा सा गड्ढा बचा था, जिसमें बहुत कम पानी बचा था।

जानवर प्यास से बेहाल थे। शक्तिशाली जानवर, जैसे हाथी और बाघ, अपनी ताकत का इस्तेमाल करते थे। वे आते, सारा पानी पीते और कमज़ोर जानवरों को दूर भगा देते।

  • बलराम हाथी: (चिल्लाकर) "पीने का अधिकार सिर्फ़ ताक़तवर का है! जो दौड़ नहीं सकता, वह प्यासा ही रहेगा।"

दयालु बंदर यह सब देखकर बहुत दुखी होता था। वह खुद भी प्यासा रहता था, लेकिन जब वह छोटे खरगोशों और हिरणों के बच्चों को मुरझाया हुआ देखता, तो उसका मन रो पड़ता था।

दयाल का निस्वार्थ प्रयास

दयालु ने सोचा कि अगर यही चलता रहा, तो छोटे और बूढ़े जानवर मर जाएँगे। उसने बिना किसी को बताए, अपनी छोटी सी जान को खतरे में डालने का फैसला किया।

सबसे पहले, उसने ज़मीन पर उस जगह को ढूँढा जहाँ पानी की सबसे ज़्यादा नमी थी। घंटों की मेहनत के बाद, उसने तालाब के पास एक चट्टान के नीचे एक छोटी सी दरार खोजी।

वह समझ गया कि इस दरार के नीचे शायद कहीं पानी का स्रोत हो सकता है।

  • दयाल: "मुझे इस दरार को चौड़ा करना ही होगा।"

अगले कई दिन तक, उसने अपनी छोटी-सी ताकत का इस्तेमाल करके चट्टान के नीचे की मिट्टी और छोटे पत्थर हटाए। वह चुपचाप, बिना किसी शोर के काम करता रहा। उसे पता था कि अगर शक्तिशाली जानवरों को यह पता चला, तो वे सारा पानी खुद ही पी जाएँगे।

धीरे-धीरे, उसने दरार को इतना चौड़ा कर दिया कि उसमें से स्वच्छ, ठंडा पानी बूंद-बूंद करके बाहर रिसने लगा। यह एक चमत्कार था!

त्याग का फल और सम्मान

जब पहली बार थोड़ा पानी जमा हुआ, तो दयालु बुरी तरह प्यासा था। उसका गला सूख रहा था। लेकिन, उसने एक घूंट भी पानी नहीं पिया।

इसके बजाय, उसने दौड़कर छोटे खरगोशों और हिरण के बच्चों को बुलाया।

  • दयाल: (खुशी से) "यहाँ आओ! यहाँ पानी है! तुम सब पहले पी लो।"

पहले तो छोटे जानवरों को यकीन नहीं हुआ। जब उन्होंने पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई, तो उन्होंने शोर मचाना शुरू कर दिया।

जब बलराम हाथी और बाघ वहाँ पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि एक छोटे से बंदर ने अपनी निस्वार्थ मेहनत से पूरे जंगल के लिए पानी का स्रोत खोज निकाला है।

बलराम हाथी शर्म से अपना मुँह नीचे कर लिया। उसने देखा कि दयालु, जो अभी भी प्यासा था, सबसे बाद में पानी पीने के लिए खड़ा है।

  • बलराम हाथी: "दयाल, तुम ही सच्चे परोपकारी हो। हमने अपनी ताकत का इस्तेमाल सिर्फ़ अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए किया, जबकि तुमने अपनी मेहनत से पूरे जंगल का भला किया। हम शर्मिंदा हैं।"

उस दिन के बाद से, जंगल के सभी जानवरों ने सीखा कि निस्वार्थ सेवा सबसे बड़ा गुण है। दयालु को कभी भी अपनी प्यास बुझाने की चिंता नहीं करनी पड़ी, क्योंकि हर जानवर अब उसके लिए सबसे पहले पानी लेकर आता था।


सीख (Moral of the Story)

यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची परोपकारिता तब होती है जब हम अपने सुख या आराम को छोड़कर, ज़रूरतमंदों की मदद करने के लिए निस्वार्थ भाव से काम करते हैं। जीवन में शक्तिशाली होना ज़रूरी नहीं है, ज़रूरी है दयालु होना, क्योंकि निस्वार्थ सेवा से मिलने वाला सम्मान और संतोष, किसी भी ताकत या धन से कहीं ज़्यादा बड़ा और स्थायी होता है।

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