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बाल कहानी- गहरी दोस्ती और अचानक आया घमंड
जंगल के किनारे एक बहुत बड़े बरगद के पेड़ पर नटखट बंदर, चीकू, रहता था। ठीक उसी पेड़ के नीचे, पास की नदी में विशालकाय, लेकिन शांत स्वभाव का हाथी, गप्पू, दिनभर मस्ती करता। चीकू और गप्पू की दोस्ती पूरे जंगल में मशहूर थी। चीकू अपनी फुर्ती से गप्पू की पीठ पर चढ़कर सवारी करता और गप्पू अपनी सूंड से ऊँचे पेड़ की पत्तियाँ तोड़कर चीकू को खिलाता।
एक दिन, चीकू ने जंगल की एक प्रतियोगिता में पेड़ पर सबसे तेज़ी से चढ़ने का इनाम जीता। इनाम पाकर चीकू का मन थोड़ा बदल गया। उसे लगने लगा कि फुर्ती और चाल में उससे बेहतर कोई नहीं है।
अगली सुबह, जब गप्पू नदी से पानी पीकर लौट रहा था, चीकू पेड़ की डाल पर झूल रहा था।
"अरे गप्पू, कहाँ जा रहे हो? ज़रा ठहरो," चीकू ने ज़ोर से आवाज़ दी।
गप्पू प्यार से बोला, "बस मित्र! थोड़ी थकान हो गई है। नदी से पानी पिया और अब आराम करने जा रहा हूँ। तुम क्या कर रहे हो?"
"मैं? मैं तो दुनिया का सबसे फुर्तीला प्राणी हूँ। तुम्हें पता है, मेरा संतुलन, मेरी पकड़! तुम तो बस एक बड़े, धीमे ट्रक जैसे हो।" चीकू ने जानबूझकर हँसते हुए कहा।
गप्पू को यह बात अच्छी नहीं लगी। उसने थोड़ा सहमकर कहा, "ऐसी बात क्यों कर रहे हो चीकू? क्या हुआ?"
चीकू ने तुरंत अपनी आवाज़ बदली और चिढ़ाने वाले अंदाज़ में बोला, “लंबी सूंड, सूपा जैसे कान, मोटे-मोटे पैर! चलते हो तो धरती काँपती है! तुम किस काम के?"
बोलचाल में कड़वाहट और रिश्ते का टूटना
चीकू के शब्द गप्पू के दिल में तीर की तरह चुभ गए। गप्पू ने कभी नहीं सोचा था कि उसका सबसे अच्छा दोस्त इस तरह उसका मज़ाक उड़ाएगा। अपमानित महसूस करके, गप्पू को भी गुस्सा आ गया।
गप्पू ज़ोर से गरजा, "अगर मैं धीमा हूँ, तो तुम क्या हो? तुम तो उछल-कूद करने वाले, काली-सी शक्ल के छोटे से प्राणी हो!" गुस्से में वह भी चीकू को चिढ़ाने लगा। उसने कहा, "इतनी लंबी पूँछ, काला मुँह का बंदर! दिनभर कूदते रहते हो, किसी काम नहीं आते!"
चीकू का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। "क्या कहा? काला मुँह? मोटी चमड़ी वाले, तुम्हें तो मेरी फुर्ती से जलन हो रही है!"
गप्पू ने सूंड उठाकर कहा, "मुझे तुमसे दोस्ती रखनी ही नहीं है! तुम बहुत घमंडी हो गए हो! आज से हमारा रिश्ता ख़त्म!"
चीकू भी चिल्लाया, "तो ठीक है! मुझे भी तुमसे दोस्ती नहीं रखनी! तुम जाओ अपने कीचड़ में!"
और इस तरह, एक छोटी-सी जीत के घमंड और तीखे बोलों ने उनकी बरसों पुरानी दोस्ती तोड़ दी। चीकू पेड़ पर ही बैठा रहा और गप्पू भारी कदमों से नदी की ओर चला गया।
बदमाशी और खतरे का सामना
अगले कुछ दिन दोनों ने एक-दूसरे से बात नहीं की। लेकिन चीकू का घमंड अभी शांत नहीं हुआ था। उसे गप्पू को सबक सिखाना था।
एक दिन, जब गप्पू नदी में नहा रहा था, चीकू चुपके से पेड़ से नीचे उतरा और तेज़ी से गप्पू के पास पहुँचा। गप्पू पानी में मस्त था। चीकू ने शरारत में आकर अपने नुकीले नाखून ज़ोर से गप्पू की मोटी चमड़ी पर गड़ा दिए।
"आउच!" दर्द से गप्पू चौंक गया। "यह क्या किया चीकू!"
चीकू डाल पर चढ़कर हँसने लगा, "बस! मज़ा आ रहा था! क्या कर लोगे तुम? मोटे!"
गप्पू का गुस्सा अब काबू से बाहर था। वह अपने शरीर की ताकत को भूल गया था, लेकिन चीकू की बदमाशी ने उसे उसकी हद दिखा दी थी। गप्पू ने फुर्ती से अपनी सूंड चीकू के चारों ओर लपेटी। चीकू कुछ समझ पाता, इससे पहले ही गप्पू ने उसे हवा में गोल-गोल घुमाया और ज़ोर से नदी के बीच में फेंक दिया!
"धड़ाम!"
चीकू पानी में गिरा। बंदरों को तैरना आता है, लेकिन नदी बहुत गहरी थी और चीकू घबरा गया। घमंड और शरारत अब डर में बदल गई थी।
वह डूबने लगा और चिल्लाया, "गप्पू! गप्पू! बचाओ! मुझे बचाओ! मैं डूब रहा हूँ!"
दयालुता और पश्चाताप
गप्पू ने चीकू की आवाज़ सुनी। भले ही चीकू ने उसे कितना भी अपमानित किया हो, कितनी भी चोट पहुँचाई हो, लेकिन चीकू उसका दोस्त था! और उसका जीवन ख़तरे में था।
गप्पू ने एक पल भी नहीं सोचा। उसने तेज़ी से अपने विशाल शरीर को पानी में उतारा और बड़ी-सी सूंड फैलाकर चीकू को पकड़ लिया। उसने चीकू को धीरे से उठाकर नदी के किनारे सुरक्षित ज़मीन पर रखा।
पानी से बाहर आकर चीकू हाँफ रहा था, वह काँप रहा था। उसके शरीर से ज़्यादा, उसका मन शर्मिंदा था। उसने देखा कि गप्पू की चमड़ी पर उसके नाखूनों के निशान अभी भी दिख रहे थे, लेकिन गप्पू ने अपने दर्द को नज़रअंदाज़ करके उसकी जान बचाई थी।
चीकू रोते हुए गप्पू के पैरों में गिर पड़ा। "गप्पू! मुझे माफ कर दो। मैं... मैं अंधा हो गया था अपने घमंड में। मैंने तुम्हें बहुत बुरा-भला कहा। तुमने मेरी जान बचाई। तुम सच में महान हो!"
गप्पू ने प्यार से अपनी सूंड उठाई और चीकू के सिर पर फेर दी। "उठो, चीकू। दोस्ती में माफ़ी बड़ी चीज़ है। हाँ, मुझे तुम्हारा मज़ाक उड़ाना अच्छा नहीं लगा था, और शायद मैंने भी तुम्हें ग़लत बातें कह दीं। लेकिन तुम मेरे दोस्त हो, और मैं तुम्हें कभी डूबने नहीं दे सकता।"
चीकू ने कसम खाई कि वह फिर कभी किसी को चिढ़ाएगा नहीं और न ही अपने गुणों पर घमंड करेगा। गप्पू ने भी समझा कि गुस्सा आने पर तुरंत प्रतिक्रिया देना सही नहीं होता।
और उस दिन से, चीकू और गप्पू की दोस्ती पहले से भी ज़्यादा गहरी हो गई। वे दोनों खुशी-खुशी रहने लगे और पूरे जंगल को सच्ची मित्रता का मूल्य सिखाते रहे।
कहानी का सारांश (Summary of the Story)
यह कहानी चीकू (बंदर) और गप्पू (हाथी) की गहरी दोस्ती पर आधारित है, जो चीकू के घमंड के कारण टूट जाती है। एक प्रतियोगिता जीतने के बाद, चीकू अपनी फुर्ती पर घमंड करता है और गप्पू को उसकी धीमी गति और बड़े शरीर के लिए चिढ़ाता है। बदले में, गप्पू भी गुस्से में चीकू को चिढ़ाता है और दोनों की दोस्ती ख़त्म हो जाती है। जब चीकू शरारत में गप्पू को चोट पहुँचाता है, तो गप्पू उसे उठाकर नदी में फेंक देता है। डूबते हुए चीकू की मदद के लिए गप्पू दौड़ता है, उसे बचाता है और माफ़ी माँगने पर माफ कर देता है। अंत में, दोनों समझते हैं कि घमंड और गुस्सा कितना हानिकारक है, और उनकी मित्रता पहले से भी मज़बूत हो जाती है।
कहानी से मिली सीख (Moral of the Story / Shiksha)
"घमंड हमेशा अपमान की ओर ले जाता है, लेकिन विनम्रता और क्षमा सच्ची मित्रता की नींव हैं।"
हमें कभी भी अपने गुणों पर घमंड नहीं करना चाहिए और न ही दूसरों को उनके शारीरिक बनावट या कमियों के लिए चिढ़ाना चाहिए।
गुस्सा आने पर भी हमें अपने दोस्तों और प्रियजनों की मदद करनी चाहिए।
सच्ची दोस्ती में माफ़ी का स्थान बहुत बड़ा होता है। माफ़ करना और माफ़ी मांगना, दोनों ही रिश्ते को मज़बूत बनाते हैं।
