लोटपोट जंगल कहानी : अपनेपन की छाँव

Jungle Story- (लोटपोट जंगल कहानी) अपनेपन की छाँव : उस जंगल में प्रति रविवार को एक स्पेशल बाजार लगा करता था जिसमें दास की तरह कई नौकर चाकर बिकने आया करते थे।

By Lotpot
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Lotpot Jungle Story: The Shadow of Affinity

Jungle Story- (लोटपोट जंगल कहानी) अपनेपन की छाँव : उस जंगल में प्रति रविवार को एक स्पेशल बाजार लगा करता था जिसमें दास की तरह कई नौकर चाकर बिकने आया करते थे।

एक दिन जंगल सम्राट ‘चंकी शेर’ अपने पुराने दास कालू भालू के साथ बाजार में पहुंचा। वहां कई किस्म के दास जानवर बिकने आये हुए थे...

भालू बड़ा ही स्वामीभक्त था। अपने इस गुण के कारण वह अपने स्वामी का विश्वासपात्र बन गया था। वह अपने स्वामी से जो भी बात करता उस पर अमल अवश्य होता था।
चंकी शेर बाजार में बिकने आये, सभी दास जानवरों को बारी-बारी से देख रहा था लेकिन उसकी समझ में कोई भी दास जानवर योग्य नहीं लग रहा था। अन्त में उसने अपने विश्वासपात्र भालू से पूछा- ‘कालू! तुम्हारी नजर में कोई दास हो तो पसंद करो, उसे ही हम अपने महल में ले चलेंगे।...’

भालू बोला- ‘महाराज! मैं अभी सभी दास जानवरों का सर्वे करके आता हूं, यदि मुझे कोई योग्य लगा तो आपके समक्ष हाजिर कर दूंगा...’

थोड़ी देर बाद भालू लौटा। उसके साथी दीन हीन और बूढ़े गधे को देख कर शेर ने पूछा- ‘क्या यही बूढ़ा दास तुम्हें पसंद आया?’

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‘हां, महाराज!’ भालू बोला- ‘इसे खरीद लीजिएगा, शेर ने मन में सोचा- ‘कालू ने इस बूढ़े गधे में जरुर कोई विशेषता देखी होगी- जब ही तो खरीदने की बोल रहा है, चलो खरीद लेते हैं...’
फिर शेर ने उस बूढ़े गधे को खरीद लिया। फिर वे सभी महल में लौट आये... महल में पहुंच कर शेर ने भालू को अपने पास बुलाकर पूछा- ‘इस बूढ़े और कमजोर गधे का क्या करोगे?’

भालू ने कहा- ‘महाराज! मैं इससे ज्यादा से ज्यादा काम लूंगा...’

दरअसल बात यह थी कि भालू बूढ़े गधे के प्रति बहुत दयालु रहता था। जब वह बीमार होता तो वह उसकी सेवा सुश्रूषा करता...

एक दिन बूढ़े गधे के प्रति उसका इतना अपनत्व देखकर शेर ने पूछा-

‘कालू! शायद यह बूढ़ा गधा तुम्हारा कोई मित्र है?’

‘नहीं, यह मेरा पुराना शत्रु है’, भालू का उत्तर था, ‘इसने ही मुझे मेरे गांव से चुराकर दास के रुप में बेचा था। बाद में वह स्वयं पकड़ा गया और उस दिन बाजार में बिकने के लिए आया था। मैंने इसे पहचानकर ही आपसे खरीदने का आग्रह किया था...’

सुनकर शेर बोला- ‘मतलब मैं कुछ समझा नहीं... लोग तो अपने शत्रु से बदला लेते हैं... लेकिन तुम तो उल्टे शत्रु के दास बन बैठे...?’
भालू बोला- ‘महाराज! मुझे शत्रुता कभी पसंद नहीं। मैं तो अपने शत्रु को भी दोस्त बनाकर जीना चाहता हूं... हां अगर शत्रु भूखा हो तो उसे भोजन तो देना ही चाहिए.... इसलिए मैं इसकी इतनी चिंता करता हूं। मेरा शत्रु होते हुए भी यह दया का पात्र है...

भालू के मुख से ऐसी बात सुनकर शेर बड़ा प्रभावित हुआ। उसने भालू को अपने राज्य का ‘रक्षा मंत्री’ बना दिया और कहा- आज से तुम तमाम बूढ़े जानवरों की रक्षा करना... राज कोष से चाहे जितने की मदद ले सकते हो... तो... लो...
अब जंगल के तमाम बूढ़े जानवर बेहद खुश थे क्योंकि उन्हें अपनत्व की छाँव मिल चुकी थी।

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