/lotpot/media/media_files/sant-kripalu-maharaj-journey-of-the-guide-of-bhakti-and-jagadguru.jpg)
संत कृपालु महाराज (Kripalu Maharaj) एक महान संत और आध्यात्मिक गुरु थे, जिन्हें दुनिया भर में उनके भक्ति योग और भगवान के प्रेम मार्ग को फैलाने के लिए जाना जाता है। वे "जगद्गुरु" के सम्मान से विभूषित किए गए, जो उन्हें आधुनिक युग में भक्तिमार्ग के प्रमुख गुरु के रूप में स्थापित करता है। कृपालु महाराज ने अपने जीवनकाल में करोड़ों लोगों को भक्ति, प्रेम, और आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
कृपालु महाराज का जन्म 5 अक्टूबर 1922 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के मंगरौली गाँव में हुआ था। और उनका निधन 15 नवंबर 2013 को, 91 वर्ष की आयु में गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में हुआ। उनके पाँच बच्चे थे: विषाखा त्रिपाठी, कृष्णा त्रिपाठी, बालकृष्ण त्रिपाठी, श्यामा त्रिपाठी, और घनश्याम त्रिपाठी। उनकी पत्नी का नाम पद्मा देवी था, जिनसे उनका विवाह 1933 में हुआ था और उनका निधन 2009 में हुआ।
कृपालु महाराज ने "प्रार्थना और आरती" जैसी पुस्तकों की रचना की, जो भक्ति और आराधना का मार्ग दिखाती हैं। उनके माता-पिता का नाम ललिता प्रसाद त्रिपाठी और भगवती देवी था। कृपालु महाराज का संबंध भक्ति योग परंपरा से था, जिसमें उन्होंने जीवनभर साधना और शिक्षा दी।
भक्ति योग और जगद्गुरु का पद
कृपालु महाराज (Kripalu Maharaj) को 1957 में काशी विद्वत परिषद द्वारा "जगद्गुरु" की उपाधि से सम्मानित किया गया। वे पाँचवें जगद्गुरु थे, और उनके शिक्षण का केंद्र बिंदु भक्ति योग था। उन्होंने भगवान कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम और समर्पण की शिक्षा दी। उनके अनुसार, भक्ति योग सभी प्रकार की आध्यात्मिक साधनाओं में सर्वोच्च है, और यह भगवान की प्राप्ति का सरलतम मार्ग है।
कृपालु महाराज ने विश्व भर में प्रवचन दिए और अनगिनत लोगों को जीवन के सच्चे उद्देश्य की ओर अग्रसर किया। उनकी शिक्षाएं वेदांत, भगवद गीता, और भागवत पुराण पर आधारित थीं, और उनका उद्देश्य सभी जीवों को भक्ति और प्रेम के मार्ग पर चलाना था।
परिवार और निजी जीवन
कृपालु महाराज (Kripalu Maharaj) ने अपना अधिकांश जीवन समाज सेवा और भक्ति के प्रचार-प्रसार में समर्पित किया। उनका परिवार भले ही उनके जन्म से जुड़ा था, लेकिन उन्होंने सांसारिक मोह-माया से दूर रहते हुए अपना पूरा जीवन मानवता की सेवा और भगवान की भक्ति में समर्पित किया। उन्होंने तीन बेटों और दो बेटियों के पिता थे, और उनके परिवार के सदस्य आज भी उनके द्वारा स्थापित संस्थाओं में कार्यरत हैं।
संस्थान और योगदान
कृपालु महाराज ने कई संस्थानों की स्थापना की, जिनमें प्रमुख हैं:
- जगद्गुरु कृपालु परिषद (JKP): यह संगठन भक्ति योग और भारतीय आध्यात्मिकता के प्रसार के लिए काम करता है।
- प्रेम मंदिर, वृंदावन: कृपालु महाराज द्वारा स्थापित यह भव्य मंदिर भगवान कृष्ण और राधा के प्रेम को समर्पित है।
- श्री वृंदावन धाम, बरसाना: यह एक अन्य प्रमुख स्थल है, जो भक्तों को आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान करता है।
उनकी शिक्षाओं का सार भगवान के प्रति पूर्ण प्रेम और समर्पण था, जिसे उन्होंने जीवन भर फैलाया।
FAQs
1. कृपालु महाराज कौन थे?
कृपालु महाराज एक संत, आध्यात्मिक गुरु, और भक्ति योग के प्रणेता थे, जिन्हें "जगद्गुरु" की उपाधि से सम्मानित किया गया था।
2. कृपालु महाराज का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
कृपालु महाराज का जन्म 5 अक्टूबर 1922 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में हुआ था।
3. कृपालु महाराज को "जगद्गुरु" की उपाधि कब मिली?
कृपालु महाराज को 1957 में काशी विद्वत परिषद द्वारा "जगद्गुरु" की उपाधि दी गई थी।
4. कृपालु महाराज ने कौन से प्रमुख मंदिर बनाए?
कृपालु महाराज ने प्रेम मंदिर (वृंदावन) और श्री वृंदावन धाम (बरसाना) की स्थापना की थी।
5. कृपालु महाराज की शिक्षाएं किस पर आधारित थीं?
उनकी शिक्षाएं मुख्य रूप से भक्ति योग, भगवद गीता, और वेदांत पर आधारित थीं।
कृपालु महाराज एक ऐसे संत थे, जिन्होंने भक्ति और प्रेम के माध्यम से लाखों लोगों के जीवन को परिवर्तित किया। उनके द्वारा स्थापित संस्थान आज भी उनके उपदेशों का प्रसार कर रहे हैं, और उनके भक्त उनकी शिक्षाओं का पालन करते हुए आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ रहे हैं। उनका जीवन हमें प्रेम, समर्पण, और सेवा का सच्चा महत्व सिखाता है।