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जब हौसलों की पंच ने दुनिया को झुका दिया
भारतीय मुक्केबाजी के लिए वर्ष 2025 उपलब्धियों से भरा रहा, और इस सफलता की सबसे चमकदार कहानियों में से एक है हरियाणा की बेटी मीनाक्षी हुड्डा की। उन्होंने लिवरपूल में आयोजित वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप 2025 में महिला 48 किग्रा भार वर्ग में स्वर्ण पदक (गोल्ड मेडल) जीतकर न केवल देश का गौरव बढ़ाया, बल्कि समाज के उन तानों को भी करारा जवाब दिया जो अक्सर लड़कियों को उनके सपने पूरे करने से रोकते हैं।
मीनाक्षी की यह जीत महज़ एक खेल उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह उनकी माँ सुनीता देवी के विश्वास और उनके पिता श्रीकृष्ण हुड्डा के त्याग की सच्ची कहानी है, जिसके चलते उनका यह सपना पूरा हो सका।
संघर्ष की मुक्केबाज़ी: ताने और गरीबी
मीनाक्षी का सफर आसान नहीं था। रोहतक जिले के रुड़की गाँव से आने वाली मीनाक्षी के पिता पिछले तीन दशकों से किराए पर ऑटो-रिक्शा चलाकर घर चलाते हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति हमेशा तंग रही, जिसके कारण शुरुआत में उनके पिता बेटी के मुक्केबाजी करियर के खिलाफ थे।
माँ का हौसला और समाज के ताने
मीनाक्षी की माँ, सुनीता देवी, बेटी के जुनून को समझती थीं। जब गाँव के लोग मीनाक्षी के मुक्केबाजी के शौक पर ताने मारते थे—जैसे, “मुक्केबाजी करके नाक तुड़वा लेगी तो कौन शादी करेगा?”—तब उनकी माँ ने ढाल बनकर बेटी को सपोर्ट किया। उन्होंने अपनी बेटी की डाइट और किट का खर्च उठाने के लिए घर में भैंस पालकर दूध बेचना शुरू किया। यह माँ का निस्वार्थ समर्थन ही था जिसने मीनाक्षी को रिंग में और भी मज़बूत बनाया। यह कहानी दर्शाती है कि जब माँ ठान लेती है, तो बेटी भी आसमान छू लेती है।
विजय का पंच: वर्ल्ड चैंपियन का ख़िताब
मीनाक्षी ने 4 से 14 सितंबर 2025 तक चली इस प्रतियोगिता में शानदार प्रदर्शन किया।
फाइनल मुकाबला: 48 किग्रा भार वर्ग के फाइनल में मीनाक्षी का सामना कज़ाकिस्तान की अनुभवी और तीन बार की वर्ल्ड चैंपियन नाजिम काइजेबे (Nazym Kyzaibay) से हुआ। काइजेबे पेरिस ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता भी थीं।
परिणाम: मीनाक्षी ने अपने बेहतरीन फुटवर्क, सटीक पंच और आक्रामक रणनीति का प्रदर्शन करते हुए नाजिम को 4-1 के अंतर से मात दी। उन्होंने न केवल गोल्ड मेडल जीता, बल्कि दो महीने पहले विश्व कप में मिली हार का बदला भी ले लिया।
इस ऐतिहासिक जीत के बाद, मीनाक्षी, जैस्मिन लैम्बोरिया के बाद, वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप 2025 में भारत के लिए गोल्ड जीतने वाली दूसरी मुक्केबाज़ बनीं।
उपलब्धियों की यात्रा और भविष्य की प्रेरणा
मीनाक्षी का बॉक्सिंग करियर 2013 में शुरू हुआ था, और तब से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा:
2017 और 2019 में जूनियर और यूथ नेशनल में गोल्ड मेडल।
2024 में ब्रिक्स और एलोर्डा कप में स्वर्ण पदक।
वर्तमान में वह आईटीबीपी (भारत-तिब्बत सीमा पुलिस) में कॉन्स्टेबल के पद पर कार्यरत हैं, जिसने उनकी आर्थिक स्थिति को सहारा दिया।
मीनाक्षी की यह जीत देश की उन सभी बेटियों के लिए प्रेरणा है, जो विपरीत आर्थिक परिस्थितियों और सामाजिक दबाव के बावजूद अपने सपनों को पूरा करने की हिम्मत रखती हैं। उनकी सफलता ने साबित कर दिया है कि
सीख (Lesson from Life)
मीनाक्षी हुड्डा की कहानी हमें सिखाती है कि सफलता केवल व्यक्तिगत क्षमता पर नहीं, बल्कि परिवार के विश्वास और निस्वार्थ समर्थन पर भी निर्भर करती है। मीनाक्षी की माँ ने समाज के तानों को नज़रअंदाज़ करके अपनी बेटी के सपने को पाला। यह हमें सिखाता है कि हमें न केवल अपने लक्ष्यों के प्रति दृढ़ रहना चाहिए, बल्कि दूसरों (विशेषकर परिवार) के समर्थन को कभी नहीं भूलना चाहिए। सच्ची जीत वह है जब हम अपने साथ-साथ अपनों का मान भी बढ़ाएँ।
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