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Puri Jagannath Rath Yatra : पुरी जगन्नाथ रथ यात्रा भारत में मनाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण और भव्य वार्षिक त्योहारों में से एक है। यह भगवान विष्णु के अवतार भगवान जगन्नाथ को समर्पित है। पूरी स्थित जगन्नाथ मंदिर भारत के चार पवित्र धामों में से एक है।
यह त्यौहार बहुत उत्साह और भक्ति के साथ हर साल मनाया जाता है। दुनिया भर से लाखों भक्त, श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र (बलराम, बलदेव) और बहन सुभद्रा की भव्य शोभा यात्रा देखने आते हैं। रथ यात्रा में सबसे आगे बलभद्र जी का रथ, उसके बाद बीच में देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है।
पुरी जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास प्राचीन काल से है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन भगवान जगन्नाथ, अपने भाई-बहन, बलभद्र और सुभद्रा के साथ, जगन्नाथ मंदिर से लगभग 3 किमी दूर स्थित गुंडिचा मंदिर में अपनी मौसी के घर जाते हैं।
यह त्यौहार एक हजार वर्षों से अधिक समय से मनाया जा रहा है और इसका उल्लेख विभिन्न प्राचीन ग्रंथों और शास्त्रों में किया गया है। इस त्योहार का पहला उल्लेख स्कंद पुराण में है, जो 11वीं शताब्दी का है। इस त्यौहार को 12वीं शताब्दी में राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव के शासनकाल के दौरान लोकप्रियता मिली, जिन्हें पुरी में जगन्नाथ मंदिर के निर्माण का श्रेय दिया जाता है।
पुरी जगन्नाथ रथ यात्रा का उत्सव हिंदू महीने के आषाढ़, शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को शुरू होता है, जो जून या जुलाई में पड़ता है। यह त्यौहार नौ दिनों तक चलता है और नौवें दिन मुख्य रथयात्रा निकलता है, जिसे 'बाहुड़ा यात्रा' के नाम से भी जाना जाता है। जुलूस जगन्नाथ मंदिर से शुरू होता है और गुंडिचा मंदिर पर समाप्त होता है।
तीन देवी देवताओं, भगवान जगन्नाथ, बालभद्र और सुभद्रा को तीन भव्य रथों में मंदिर से बाहर ले जाया जाता है, जिन्हें लाखों भक्त एक साथ, एक लय में पूरे अनुशासन के साथ खींचते हैं। रथों को रंगीन कपड़ों, फूलों और चित्रों से सजाया जाता है। जुलूस लगभग 3 किमी की दूरी तय करता है लेकिन फिर भी गुंडिचा मंदिर तक पहुंचने में कई घंटे लगते हैं।
जुलूस में उपयोग किए जाने वाले तीन रथ लकड़ी के बने होते हैं और हर साल नए बनाए जाते हैं। भगवान जगन्नाथ का रथ, जिसे नंदीघोष या गरुड़ध्वज के नाम से जाना जाता है, सबसे बड़ा और लगभग 45. 6 फीट ऊंचा होता है। यह नीम की लकड़ी से बना है और इसमें 16 पहिये है और यह लाल तथा पीले रंग का होता है । बलभद्र का रथ, जिसे तालध्वज के नाम से जाना जाता है, लगभग 45,फीट ऊंचा, लाल रंग का होता है और सागौन की लकड़ी से बना होता है। इसमें 14 पहिये ( सुभद्रा का रथ, जिसे दर्पदलन या पद्मरथ के नाम से जाना जाता है, यह काले, नीले, लाल रंग का लगभग 43 फीट ऊंचा होता है और फास्सी लकड़ी से बना है। इसमें 12 पहिये हैं। कुछ लोगो का मानना है कि सभी रथ नीम के काष्ठ से बने होते हैं। इन रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार के कील कांटे या कोई धातु का इस्तेमाल नहीं होता है।
यह त्योहार न केवल पुरी में बल्कि भारत और दुनिया के अन्य हिस्सों में भी मनाया जाता है, यह त्यौहार अहमदाबाद, कोलकाता और दिल्ली जैसे शहरों में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। कहते हैं कि जिसे यह रथ खींचने का अवसर मिल जाता है वो महाभाग्यवान माना जाता हैयह त्यौहार भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और हर साल बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है।
★ सुलेना मजुमदार अरोरा★