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एक बार भारत के एक महान संत अपनी यात्रा के दौरान, एक दिन गंगा नदी के तट पर बसे एक छोटे से गाँव में पहुँचे। नदी में नहाकर वो तट पर बने एक जीर्ण शीर्ण से मंदिर में ध्यान लगाकर बैठ गए। कुछ ही दिनों में पूरे गाँव में यह खबर फैल गई कि एक संत गाँव में पधारे है, तब वहां के बुजुर्ग गाँव वाले, स्वामी जी का स्वागत करने के लिए उनके पास पंहुच गए।
संत से मिलकर उन्हें पता चला कि स्वामी जी ने दो तीन दिनों से कुछ खाया नहीं है और लगातार कठोर उपवास कर रहे हैं । उनके स्वास्थ्य को लेकर सबको चिंता होने लगी। सबने उनसे विनती की कि वे भोजन ग्रहण कर लें। लेकिन स्वामी जी ने गांव वालों का निमंत्रण अस्वीकार करते हुए सबको यह बताया कि वह केवल उन घरों से भोजन स्वीकार कर सकते हैं
जहां कोई भी, किसी भी तरह का नशा ना करता हो, चाहे वह तंबाकू, मदिरा, हुक्का, बीड़ी का नशा हो या मांसाहारी भोजन का नशा। यह सुनकर गांव का मुखिया, घर घर जाकर यह ढूंढने लगे कि कौन स्वामी जी के उपयुक्त भोजन बना सकता है। लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि गांव भर में एक भी घर ऐसा नहीं मिला जहाँ कोई भी किसी तरह का नशा ना करता हो या मांस मदिरा का सेवन ना करता हो। गाँव का मुखिया और बुजुर्ग गण यह जानकार बहुत शर्मिंदा और दुखी हुए कि उनका पूरा गांव कोई न कोई गलत आदत का शिकार है और इस कारण उनके गाँव में आकर एक ज्ञानी- गुणी संत को भूखा रहना पड़ रहा है । अब सब मिलकर गांव में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए दृढ़ संकल्पित हो गए और एक दिन ग्राम प्रधान ने उत्साहपूर्वक सभा को संबोधित करते हुए सभी से अपनी गलत आदतों को छोड़ कर एक अच्छे, स्वस्थ और सात्विक जीवन अपनाने का आग्रह किया। धीरे धीरे, एक-एक करके गांव के सभी लोगों ने अपनी
अपनी कमजोरियों को स्वीकार करते हुए तंबाकू, हुक्का, बीड़ी और मांस, मदिरा त्यागने की शपथ ली।
ग्रामीणों के एकजुट प्रयासों की बदौलत न केवल एक गांव, बल्कि आसपास के कई गांवों में अनगिनत परिवार नशे की जंजीरों से मुक्त हो गए। स्वामी की भूख हड़ताल आखिर समाप्त हो गई।
★सुलेना मजुमदार अरोरा ★