दिल्ली के बीचो-बीच छुपा है सदियों पुराना खजाना: Agrasen ki Baoli नई दिल्ली के आधुनिक शहर के बीचों-बीच स्थित, अग्रसेन की बावली एक प्राचीन और ऐतिहासिक धरोहर है। यह जलकुंड या स्टेपवेल लगभग 10वीं सदी का माना जाता है और इसे राजा अग्रसेन के नाम पर बनाया गया है। By Lotpot 22 Nov 2024 in Travel New Update Listen to this article 0.75x 1x 1.5x 00:00 / 00:00 Agrasen ki Baoli: दिल्ली के दिल में छिपा एक अद्भुत इतिहास नई दिल्ली के आधुनिक शहर के बीचों-बीच स्थित, अग्रसेन की बावली एक प्राचीन और ऐतिहासिक धरोहर है। यह जलकुंड या स्टेपवेल लगभग 10वीं सदी का माना जाता है और इसे राजा अग्रसेन के नाम पर बनाया गया है। हालांकि इसे 14वीं सदी में अग्रवाल समुदाय द्वारा पुनर्निर्मित किया गया। आज यह संरचना भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में है। इतिहास और संरचना का महत्व अग्रसेन की बावली का निर्माण प्राचीन काल में पानी की उपलब्धता को आसान बनाने के लिए किया गया था। 108 सीढ़ियों वाला यह स्टेपवेल विभिन्न गहराइयों पर जल तक पहुंचने के लिए डिजाइन किया गया था। इसके तीन प्रमुख स्तर हैं, जिनमें मेहराब और कक्ष बनाए गए हैं। ये कक्ष कभी-कभी धार्मिक अनुष्ठानों या गर्मी से राहत पाने के लिए इस्तेमाल होते थे। इस बावली की सबसे खास बात है इसकी वास्तुकला। सीढ़ियों के दोनों तरफ स्थित मेहराबें और कक्ष न केवल इसके सौंदर्य को बढ़ाते हैं, बल्कि इसकी उपयोगिता को भी दिखाते हैं। बावली के निचले स्तर पर खड़े होकर जब आप ऊपर देखते हैं, तो इसकी सटीकता और सुंदरता आश्चर्यचकित कर देती है। रहस्य और कहानियां अग्रसेन की बावली न केवल अपने वास्तुशिल्प के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इससे जुड़ी रहस्यमयी कहानियों के लिए भी जानी जाती है। कई आगंतुकों ने यहां अजीब अहसास होने की बात कही है, जैसे कोई उनका पीछा कर रहा हो। हालांकि, वैज्ञानिक तौर पर यह मात्र गूंज और संरचना की विशेषताओं के कारण होता है। पुराने समय में यहां धार्मिक अनुष्ठान और पूजा होती थी। इस वजह से लोग इसे भूत-प्रेत से जोड़ने लगे। लेकिन असल में, यह संरचना इतिहास और वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना है। मस्जिद के खंडहर अग्रसेन की बावली के दक्षिण-पश्चिम हिस्से में एक प्राचीन मस्जिद के अवशेष भी हैं। मस्जिद के चार खंभों पर बौद्ध चैत्य की नक्काशी की गई है, जो इसे और भी खास बनाती है। हालांकि मस्जिद की छत ध्वस्त हो चुकी है, लेकिन खंभे आज भी खड़े हैं और इस जगह की विविधता और समृद्ध इतिहास को दर्शाते हैं। कैसे पहुंचे और क्या करें? यह धरोहर सालभर सुबह 9 बजे से शाम 5:30 बजे तक खुली रहती है। प्रवेश बिल्कुल मुफ्त है, और यहां पर्यटक सीढ़ियों और कक्षों में घूम सकते हैं। अगर आप अद्भुत पत्थर की नक्काशी और संरचना का आनंद लेना चाहते हैं, तो दिन के उजाले में यहां जाएं। यहां पहुंचने के लिए आप दिल्ली मेट्रो का इस्तेमाल कर सकते हैं। नजदीकी मेट्रो स्टेशन मंडी हाउस (ब्लू लाइन) या जनपथ (येलो लाइन) हैं। आप टैक्सी या दिल्ली के पर्यटन बसों के जरिए भी यहां पहुंच सकते हैं। क्या देखें और महसूस करें? मेहराबों और पत्थरों की नक्काशी। प्राचीन मस्जिद के खंभे। गहराई तक जाती 108 सीढ़ियां। संरचना के शांत और ठंडे वातावरण का आनंद। अग्रसेन की बावली, दिल्ली की ऐतिहासिक धरोहरों में से एक है, जो हमें भारत के गौरवशाली इतिहास और वास्तुशिल्प के प्रति गर्वित महसूस कराती है। अगर आप दिल्ली जा रहे हैं, तो इसे अपनी यात्रा सूची में जरूर शामिल करें। और पढ़ें : Munnar Travel : चाय बागानों की जादुई दुनिया में खो जाने का सफर Kalimpong Travel : एक अद्भुत यात्रा का अनुभव Bibi Ka Maqbara: छोटा ताजमहल औरंगाबाद की सुंदरता Bharatpur Travel: राजस्थान का पक्षी स्वर्ग और ऐतिहासिक धरोहर #best indian travel vlogs #Best Travel Place #Best Travel Idea #Best Travelling Place You May Also like Read the Next Article