Public Figure भारत के राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी:- भारत के राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी (महात्मा गांधी) के बारे में तो पूरी दुनिया जानती है, स्कूल कॉलेज में भी गांधी जी के बारे में बहुत कुछ पढ़ाया गया है। गांधीजी को अहिंसा का पुजारी माना जाता है। उन्होंने अपने अहिंसा आंदोलन से देश को अंग्रेज़ो से आज़ाद किया था। दरअसल जब गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में थोड़े समय के लिए रहे थे तब उन्होंने 1899 के एंग्लो बोइर युद्व की भयानक त्रासदी देखी थी, उसका उनपर इतना असर पड़ा कि उन्होंने अहिंसा के रास्ते पर खुद चलने और सबको अहिंसा का रास्ता दिखाने का निश्चय कर लिया था। (Lotpot Personality)
गाँधी जी समय के बड़े पाबंद थे। वे अपने अगले दिन के कार्यक्रमों का टाइम टेबल पहले ही...
गाँधी जी समय के बड़े पाबंद थे। वे अपने अगले दिन के कार्यक्रमों का टाइम टेबल पहले ही बना लेते और उसी के अनुसार चलते थे। अगर किसी की घड़ी पाँच मिनट भी फास्ट या स्लो होती, वे उसे तुरंत घड़ी ठीक करने की सलाह देते। एक बार बापू जी किसी काम से महाराष्ट्र आए। वहां काम खत्म करके वे कहीं और जाना चाहते थे, लेकिन वहाँ के स्थानीय लोग चाहते थे कि वे कुछ दिन और उस गांव मे रहें। इसलिए बहाना बनाया की गाड़ी खराब हो गई इसलिए उन्हें दो दिन और रुकना पड़ेगा। लेकिन गांधी जी नहीं माने और पैदल ही निकल पड़े। तब आखिर लोगों को उनके लिए गाड़ी लानी ही पड़ी। गांधीजी अपना सब सामान सही जगह पर बहुत सहेज कर रखते थे। लेकिन एक दिन उन्हें अपनी पेंसिल सही जगह नहीं मिली। उनकी चिंता और बेचैनी देख घरवालों ने कहा कि यह तो छोटी सी बात है, एक पेंसिल खरीद लाते हैं, लेकिन गांधीजी ने कहा कि बात पेंसिल की नहीं है, लापरवाही और व्यवस्था की कमी की है। जीवन व्यवस्थित होना ही चाहिए। (Lotpot Personality)
बापूजी को बेवजह खर्च करना बिल्कुल पसंद नहीं था, तन ढकने के लिए घुटने तक धोती, एक खद्दर का गमछा, और दो वक्त का सादा थोड़ा सा भोजन के सिवाय वे अपने ऊपर एक पैसा भी ज्यादा खर्च नहीं करते थे। वे साफ़ सफाई पर बहुत ध्यान देते थे और अपने कपड़ों से लेकर घर और बाहर की सफाई भी खुद करना पसंद करते थे। गांघी जी ने भारत की स्वतंत्रता के लिए सत्रह बार अनशन किया, उनका सबसे लंबा अनशन 21 दिन का था। (Lotpot Personality)
गांधीजी ने जो सिविल राइट्स का आंदोलन शुरू किया था वो चार महाद्वीपों के साथ साथ अन्य बारह देशों में भी पाला गया था। गांधीजी को स्पोर्ट्स में गहरी रुचि थी, उन्होंने प्रिटोरिया, जोहानसबर्ग और डरबन में भी तीन फुटबॉल क्लब शुरू किया था। गांधी जी को दुनिया के सभी देशों ने महान संत और शांति के पुजारी के रूप में स्वीकर किया। यहां तक कि गाँधी जी ने भारत को जिस ब्रिटेन से आज़ाद कराने के लिए अंग्रेजों के दांत खट्टे किए, उसी ब्रिटेन ने गांधीजी के सम्मान में, उनके निधन के इक्कीस वर्ष बाद, उनके नाम से डाक टिकट जारी किया और सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि गांधीजी जीवन भर अहिंसा के पुजारी रहे और उन्होंने सबको अहिंसा का रास्ता दिखाया, लेकिन उन्हें कभी शांति का नोबेल पुरस्कार नहीं मिला हालांकि पाँच बार वे इस नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट जरूर हुए। (Lotpot Personality)
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