क्यों हवन/यज्ञ में 'स्वाहा' का उच्चारण किया जाता है? सनातन धर्म में धार्मिक अनुष्ठानों के साथ हवन और यज्ञ का विशेष महत्व होता है। हमारे देश में हवन का आयोजन बहुत पुरानी परंपरा है। जब भी कोई नया मकान या कोई जायदाद खरीदा जाता है या यूँ ही गृह शांति के लिए भी या कोई नया काम शुरू किया जाता है By Lotpot 10 Oct 2023 | Updated On 12 Oct 2023 16:23 IST in Interesting Facts New Update सनातन धर्म में धार्मिक अनुष्ठानों के साथ हवन और यज्ञ का विशेष महत्व होता है। हमारे देश में हवन का आयोजन बहुत पुरानी परंपरा है। जब भी कोई नया मकान या कोई जायदाद खरीदा जाता है या यूँ ही गृह शांति के लिए भी या कोई नया काम शुरू किया जाता है अथवा कोई शुभ कार्य किया जाता है तो हवन, यज्ञ जरूर आयोजित किया जाता है। हवन के दौरान अगर आपने कभी ध्यान दिया होगा कि मंत्र के बाद 'स्वाहा' शब्द जरूर बोला जाता है। इसके बाद आहुति दी जाती है। लेकिन क्या आपको पता है कि प्रत्येक आहुति पर स्वाहा शब्द क्यों बोला जाता है और इसे बोलना क्यों जरूरी माना जाता है? अगर नहीं, तो आइए हम बताते हैं कि हर आहुति पर स्वाहा शब्द क्यों बोला जाता है। हवन से सम्बंधित विभिन्न कथाओं में एक कथा यह है कि प्रजापति दक्ष की एक बहुत सुंदर पुत्री थी, जिसका नाम था स्वाहा। कालांतर में स्वाहा का विवाह अग्नि देव के साथ संपन्न हुआ। इसलिए जब भी कोई मानव, धार्मिक अनुष्ठान के दौरान हवन में आहुति देता है तो अग्नि देव की पत्नी का नाम भी अग्नि देवता की पूजा के साथ स्मरण किया जाता है। कहा जाता है कि अग्नि में उत्पन्न उष्णता को संतुलित करने के लिए सौम्य शीतल गुण और स्वभाव की स्वाहा का उच्चारण किया जाता है। हवन के दौरान स्वाहा बोलने को लेकर कई अन्य कथाएं भी हैं। एक कथा के अनुसार स्वाहा प्रकृति की एक कला के रूप में इस धरती पर जन्मी थी। भगवान कृष्ण ने स्वाहा को वरदान दिया था कि उनके नाम से ही देवता हविष्य (आहूति देने की सामग्री) ग्रहण करेंगे। इसलिए हवन यज्ञ के दौरान स्वाहा का नाम बोला जाता है। एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार देवताओं के लोक में अकाल पड़ गया था। इस वजह से वहां भोजन की चीजों की कमी हो गई थी, लेकिन तब ब्रह्मा जी ने उपाय निकालते हुए अग्निदेव को चुना। जैसे की मान्यता है कि अग्नि के सुपुर्द कर देने से हर चीज पवित्र हो जाती है। लेकिन अग्निदेव के पास उस समय भस्म करने की क्षमता नहीं हुआ करती थी, इसीलिए स्वाहा की उत्पत्ति हुई। कहा जाता है कि उस समय अग्नि में वो क्षमता नहीं थी कि वह किसी चीज़ को जला कर पवित्र कर सके , इसलिए स्वाहा की उत्पत्ति की गई थी। इसके बाद जब भी कोई चीज अग्निदेव को समर्पित की जाती थी तो स्वाहा उसे भस्म कर देवताओं तक पहुंचा देती थीं। स्वाहा का अर्थ है अर्पित। जब कोई धार्मिक कार्य होता है तो स्वाहा बोलने से अर्पित की गई चीज को स्वाहा देवताओं तक पहुंचाती हैं। इस तरह हम देख सकते हैं कि स्वाहा शब्द का उच्चारण, हवन में आहुति देते समय कई महत्वपूर्ण धार्मिक अर्थ हैं जिन्हें हम अपने समझ के अनुसार अपनाते हैं। यह संस्कृति से जुड़ा है और हमारे संस्कृति के मूल भाग हैं। हवन में स्वाहा बोलना अपने जीवन की समस्याओं से बचने के लिए एक महत्वपूर्ण उपाय माना जाता है। ये कथाएं स्वाहा के महत्व को बताती हैं। स्वाहा का उच्चारण हमें ईश्वरीय समर्पण की भावना की ओर ले जाता है और हमें अपने जीवन को आध्यात्मिकता और समृद्धि की ओर अग्रसर करता है। ★सुलेना मजुमदार अरोरा ★ #facts You May Also like Read the Next Article