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गुरु नानक देव जी के संगत में हजारों श्रद्धालु रोज बैठते थे। उनके बनाए नियमानुसार जो भी व्यक्ति गुरुदेव के संगत में शामिल होते, वे सबके साथ पूरी श्रद्धा और भक्ति से शबद को पढ़ते और भजन कीर्तन गाते थे। इस नियम को दरबार के नियमों के अनुसार हर दिन जारी रखा जाता था। कुछ समय से संगत में एक छोटा सा बच्चा रोज आने लगा और चुपचाप गुरुनानक देव जी के पीछे आकर खड़ा हो जाता था। यह क्रम जब काफी दिनों तक चलता रहा तो एक दिन गुरु नानक साहिब ने उस बच्चे से पूछा, "बेटा, तू हर रोज इतनी सुबह सुबह यहां क्यों आता हो, तेरे जैसे इतने छोटे बच्चों का तो यह समय सोने या खेलने कूदने का है। तुझे इस शबद कथा के पाठ से कौन सा आनंद मिलता है? क्या तुझे खेलने या और कुछ और करने का मन नहीं करता?"
बच्चा सिर झुकाए हुए आदरपूर्वक हाथ जोड़कर बोला, " गुरुदेव, मुझे आपकी संगत में आकर बहुत कुछ सीखने का अवसर मिलता है। एक बार मेरी मां ने मुझसे अपनी रसोई के चूल्हे को जलाने के लिए लकड़ी लाने को कहा था। मैं जंगल से ढेर सारी लकड़ियां चुन लाया। जब मेरी माँ चूल्हे में लकड़ियां डालने लगी तो मैंने देखा कि मां पहले आग में छोटी छोटी , पतली पतली लकड़ी डाल रही थी, बाद में उन्होने मोटी लकड़ियाँ डाली। मैंने जब माँ से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि छोटी लकड़ियां ज्यादा जल्दी और अच्छी तरह से आग पकड़ लेती है और बड़ी तथा मोटी लकड़ी को आग पकड़ने में बहुत समय लगता है। तब से मेरे मन में यह बात बैठ गई है कि अगर हम छोटी उम्र से ही ज्ञान की बातें सीखने लगे तो हम बहुत शीघ्रता से इसे ग्रहण कर सकते है। इसलिए मैं आपके संगत में रोज आता हूँ और मुझे यहां आकर बहुत कुछ सीखने को मिलता है।"
गुरु साहिब, बच्चे की सोच और समझदारी से बहुत खुश हुए और उन्होंने बच्चे के सर पर हाथ रखते हुए कहा, "इस छोटी सी उम्र में तू तो बहुत समझदारी की बात करता है। उम्र में भले ही तू अभी बच्चा है लेकिन अकल से बहुत बुड्ढा है।" उस दिन से उस बच्चे का नाम बुड्ढा सिंह पड़ गया। गुरु नानक देव के वे प्यारे शिष्य बन गए और उनके पूरे परिवार में भी बुड्ढा सिंह का बहुत आदर और मान सम्मान होने लगा। आगे चलकर बाबा बुड्ढा सिंह ने गुरु अंगद देव, गुरु अमर दास, गुरु रामदास, गुरु अर्जुन देव और गुरु हरगोविंद को तिलक लगाने का कार्य किया था। बाबा बुड्ढा सिंह, छठे पतशाही गुरु हरगोविंद जी के समय तक जीवित रहे।
गुरु नानक जी और बाबा बुड्ढा सिंह ने दुनिया को यही सीख दी कि यह कोई जरूरी नहीं है कि बुद्धि सिर्फ उम्र बढ़ने के बाद ही खुलती है। कई बार छोटे बच्चे भी ज्ञान की बातें करते हैं और हमें बच्चों की बातों पर भी ध्यान देना चाहिए।
★सुलेना मजुमदार अरोरा★