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मज़ेदार कहानी : एक नगर में एक राजा राज्य करता था। उसे नये नये फलों के बाग लगाने का बड़ा शौक था। वह जहाँ भी जाता उसी ताक में रहता कि उसे कोई दुर्लभ फलों के पौधे मिल जाए।
एक दिन राजा देवेन्द्र किसी दूर प्रदेश की यात्रा पर गये। इलाका पहाड़ी था। बर्फ पड़ती थी। सर्दी भी थी। उसे दूर एक बाग दिखाई दिया। उसका मन इस बात का पता लगाने के लिए लालायित हो उठा कि यह किसका बाग हैं। वह अपना घोड़ा बढ़ाता हुआ उस बाग के पास पहुँचा। बाग बहुत सुन्दर था उसमें सेबों के पेड़ लगे हुए थे और पेड़ों पर बड़े बड़े सेब लटक रहे थें राजा ने जीवन में इतने बड़े आकार के सेब नहीं देखे थे। खाने का तो प्रश्न ही नहीं आता था। वह देखकर दंग रह गये फिर बाग में घुसा तो वहाँ दो चौकीदार मौजूद थे। उन्होंने देखा कि यह देखने में कोई राजा जैसा ही लगता है। कुछ सेब तोड़ कर भेंट किये।
राजा ने सेब खाए तो उसकी हैरानी का ठिकाना न रहा। मिठास से तन मन मीठा हो चुका था। सुगंध से हाथ महक रहे थे। उसके मुँह से एकदम निकल गया ‘वाह’ यह किस का बाग है? राजा ने पूछ लिया। हजूर यह नवाब साहब का बाग है। तब राजा को पता चला कि यह बाग नवाब सरदार अली खान का है। राजा देवेन्द्र महान खोजता खोजता नवाब की नगरी में जा पहुँचा और नवाब से जाकर मिला। नवाब को पता चला कि राजा देवेन्द्र महान उसके घर पधारे हैं तो उसने बड़ा स्वागत किया। खाना हुआ उसमें और भोजनों के अतिरिक्त फल भी थे और उनमें वे सेब भी थे। राजा ने सेबों की बड़ी प्रशंसा की। और आते हुए उसके बाग में जाने की कहानी भी कह सुनाई। नवाब भी अपनी प्रशंसा सुन सुन कर फूला न समा रहा था। राजा के साथ उन्हें सेबों के काफी सारे पौधे भेज दिये और उन्हें लगाने के लिए कुशल माली भी भेज दिये।
राजा अपनी नगरी में आया उसने एक पहाड़ी चुनकर वहाँ बाग लगाने की आज्ञा दी। माली कुशल तो थे ही। उन्होंने ऐसे सुन्दर ढंग से पौधे लगाए कि कुछ ही दिनों में वहाँ एक सुन्दर बाग बन गया। दो साल के अन्दर अन्दर पौधे बड़े हो गये और उनकी डालियों पर वैसे ही लाल लाल सेब लटकने लगे जिन्हें देखकर राजा की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। राजा ने उन सेबों की रक्षा के लिये चैकीदार नियुक्त किये पर वे ईमानदार न थे और सेब चोरी से खा लेते या दूर कहीं ले जाकर बेच देते। राजा को इस बात का पता चला तो वह बड़ा नाराज हुआ। उसने उन चैकीदारों पर निगरानी रखने के लिए एक सैनिक रख दिया पर सेबों की चोरी बन्द न हुई।
राजा ने उस पर एक सैनिक अधिकारी को निगरानी पर लगा दिया। पर चोरी फिर भी चलती रही। अन्त में राजा ने सेनापति पर यह जिम्मेदारी डाली कि वह सेबों के बाग की रक्षा करे। सेनापति की निगरानी में भी सेब चोरी होते ही रहे। राजा हैरान था कि अब वह क्या करे। वह एक दिन स्वंय बाग देखने गया तो उसे गाँव के लड़कों की टोली दिखाई दी। वह उन लड़कों के पास जाकर पूछने लगा तो लड़के कहने लगे महाराज ये सैनिक आपके बाग की रक्षा नहीं कर सकते। उनका काम हम आपको करके दिखाएंगे।
उधर सेनापति जब पहरा देता देता थक गया तो उसने अपनी वर्दी उतारी और बाग में बने नकली चौकीदार को रखने को दे दी और स्वंय लुंगी पहनकर सो गया। लड़के तो देख रहे थे। उन्होंने सेनापति की वर्दी उठाई और राजा के सामने पेश कर दी। राजा ने बच्चों की दृष्टि देखी तो हँस उठा। उसने सेनापति को बुलवाया सेनापति जब वर्दी लेने गया वहाँ खाली नकली चौकीदार ही था। लड़के अधिक तो थे ही लुंगी पहने सेनापति जी को पकड़ कर ले आए। राजा ने उसे सब लड़कों को चौकीदार नियुक्त किया और बाग की रखवाली पर लगा दिया। फिर सेब चोरी नहीं हुए।