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एक प्यारी सी कहानी : तोते की कैद से मुक्ति एक नगर में एक महात्मा जी कथा सुनाने हेतु पधारे। लोग रोज रात्रि को उनका प्रवचन सुनते और रोज कोई न कोई उन्हें अपने घर भोजन के लिये आमंत्रित करता महात्मा जी जिन्दगी में बहुत सादे और बुद्धिमान तथा ज्ञान में बहुत ही महान थे। लोग उनके प्रवचन सुनकर इतने प्रभावित होते कि वह उनके प्रवचनों को अपनी जिन्दगी में अमल लाने की कोशिश करते। हर कोई चाहता था कि उसके घर में उनके पावन चरण पड़े। और शायद उनका जीवन सुधर जाये।
महात्मा जी भी लोगों की अपने प्रति श्रद्धा देखकर उनका निमंत्रण स्वीकार कर लेते और फिर वहाँ भोजन ग्रहण करने जाते।
एक दिन एक सेठ ने महात्मा जी को अपने घर आमंत्रित किया। महात्मा जी दोपहर का भोजन करने सेठ के घर पहुँचे। जब महात्मा जी उस सेठ के आंगन में पहुँचे तो वहाँ उन्हें एक बहुत संुदर तोता पिंजरे में बंद नजर आया अभी वह उस तोते को अच्छी तरह देख भी नहीं पाये थे कि सेठ उन्हें कमरे के भीतर ले गया।
कमरे में महात्मा जी के बैठने के लिये पहले से ही सिंहासन लगा हुआ था। सेठ ने महात्मा जी को आसन पर बैठाया और स्वंय उनके लिये तैयार किया गया भोजन परोसने के लिये रसोईघर में अपनी पत्नी को कहने चले गए। सेठ अपनी पत्नी को आदेश देकर वापिस आ गया और महात्मा जी के पास आकर पंखा झलने लगा।
कुछ ही देर में सेठानी अपने नौकरों सहित महात्मा जी के लिये सुंदर सुंदर बर्तनों में पकवान लाकर परोसने लगी और सेठ ने महात्मा जी को भोजन ग्रहण करने के लिये आग्रह किया।
महात्मा जी ने पानी की चुल्ली भरी और फिर भगवान का स्मरण करते हुए थाली के आस पास छिड़क दी और पद्पश्चात उन्होंने भोजन खाना शुरू किया। महात्मा जी भोजन करते रहे और सेठ सेठानी श्रद्धापूर्वक उन्हें भोजन करते देखते रहे तथा बारी बारी से पंखा झुलाते हुये उन्हें हवा करते रहे।
भोजन करने के पश्चात महात्मा जी ने सेठ-सेठानी को आर्शीवाद दिया और उन्हें भी प्रसाद (भोजन) ग्रहण करने को कहकर स्वयं आंगन में रखे पिंजरे में बंद तोते को देखने चले गए।
महात्मा जी तोते के पास पहुँचे तो वह उदास नजरों से उन्हें ताकने लगा। महात्मा जी ने कहा-‘‘क्या हाल चाल है भई तुम्हारा गंगा राम? मजे में हो न?’’
महात्मा जी की बात सुनकर तोता और उदास हो गया और फिर वह महात्मा जी से बोला ‘‘प्रभु! आप सभी लोगों का जीवन सुधारते हैं। और उन्हें मुक्ति मार्ग बताते हुये उनकी मुक्ति भी करवाते हैं। फिर क्या आप मुझे इस कैद से मुक्ति नहीं दिला सकते? क्या मुझे आप इस काबिल नहीं समझेंगे?’’
महात्मा जी ने प्यार तथा दया दृष्टि से उस परिन्दे की तरफ देखा और फिर बोले-‘‘भई जब तुमने अपने आप को इस काबिल समझ लिया है कि मैं तुम्हारी मुक्ति करवा सकता हूँ तो मैं तुम्हें मुक्ति दिलाने के काबिल क्यों न समझूँ। और फिर हमारा तो काम ही दुनिया के हर जीव को मुक्ति दिलाने का है इस बार तोता व्यग्रता से बोला-‘‘ तो प्रभु! जल्दी कीजिये न! इस समय तो आप मेरे पास अकेले हैं। लेकिन अगर देर हो गई तो कोई आ जायेगा और फिर मैं आजीवन इस कैद में ही छटपटाता रहूँगा।’’
इस पर महात्मा जी बोले ‘‘ देखो भाई गंगा राम! मैं तो तुम्हें मुक्ति मंत्र दे सकता हूँ यानि की मुक्ति का रास्ता ही बता सकता हूँ लेकिन आगे मुक्ति पाना तुम्हारा काम है। मुक्ति हमेशा साधना से ही प्राप्त होती है। प्रभु का ध्यान और उसकी साधना में इतने लीन हो जाओ कि तुम्हें अपने तन मन का सुध न रहे। ऐसा करने से तुम्हारी मुक्ति पक्की है।’’
इतना कहने के पश्चात् महात्मा जी ने उसे प्रभु के ध्यान लगाने का उपाय बताया और अंत में बोले ‘‘शुभ कार्य में कभी देरी नहीं करनी चाहिये इस लिये तुम कल सुबह ही भगवान का ध्यान लगाकर प्रभु में खो जाना। अगर प्रभु ने चाहा तो तुम्हें शीघ्र ही मुक्ति मिल जायेगी।’’
‘‘अच्छा प्रभु! मैं ऐसा ही करूँगा।’’ तोते ने महात्मा जी के प्रति कृतज्ञता भरे स्वर में कहा।
तब तक सेठ और सेठानी भी भोजन करके कमरे से बाहर आ गये थे। दोनों ने बाहर आकर महात्मा जी के चरण छुये। महात्मा जी ने उन्हें पुनः आर्शीवाद दिया और सेठ उनके साथ हो लिया उन्हें उनके रहने के स्थान तक छोड़कर आने के लिये।
अगले दिन प्रातः ही तोते ने महात्मा जी द्वारा बताये हुये ढंग से प्रभु का ध्यान लगाने के लिये अपनी आँखे बंद कर ली और शरीर की सुध बुध खोकर प्रभु स्मरण में लीन हो गया।
सेठ के नौकर रोज सुबह तोते को दूध और चूरी देकर जाते थे। जब एक नौकर रोज की तरह चूरी और दूध लेकर आया तो पिंजरे में तोते को निश्चत पड़ा देखकर उसके तोते उड़ गये। उसने दूध वाला कप तथा चूरी वाली प्लेट नीचे जमीन पर रखी और पिंजरा खोलकर तोते के शरीर को इधर उधर करके देखा मगर तोते के शरीर ने न तो कोई हरकत की और ना ही उसकी आँखें खुलीं।
खुलती भी कैसे? महात्मा जी के उपदेश के मुताबिक उसने भगवान के ध्यान में इस कद्र ध्यान लगा लिया था कि उसे दीन दुनिया की अथवा उपने तन मन की बिल्कुल सुध न रही। नौकर ने भागकर दूसरे नौकर को बताया तो दुसरे नौकर ने देखा और बोला ‘‘यह तो मर गया है। सेठ जी को खबर कर दो।’’
सेठ जी को अपने तोते के बारे में पता चला तो वह भागे भागे आये। अपने प्रिय तोते को निर्जीव सा पड़ा देखकर उन्होंने भी सोचा जरूर बेचारा रात को मर गया होगा। रात को अवश्य किसी बिल्ली ने पिंजरे पर झपट्टा मारा होगा। बेचारे का डर से ही हार्ट फेल हो गया होगा।
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फिर उसने एक नौकर को आदेश देकर कहाँ ‘‘देखो, इस मृत देह को जंगल में छोड़ आओ। यहाँ पर फैकोगे तो हो सकता है कोई बिल्ली कुत्ता ही खा जाये।’’
नौकर तोते को पिंजरे सहित उठाकर जंगल में ले गया। जंगल में जाकर उसने तोते को पिंजरे से निकाला और फैंककर वापिस हो लिया। नौकर ने जब तोते को फेंका तो प्रभु स्मरण में लीन तोते का ध्यान टूट गया उसका शरीर पूर्व हालत में आ गया। उसने आँखे खोलकर देखा तो वह प्रसन्न मिश्रित आश्चर्य में डूब गया। अपने आप को जंगल में मुक्त पाकर उसे सचमुच प्रभु पर पूर्ण विश्वास हो गया और वह मुक्त उड़ान भरता हुआ अपने मुक्ति दाता महात्मा जी का धन्यवाद करने उड़ चला।
