अद्भुत रहस्यमय राजराजेश्वर मंदिर, जिसे बृहदेश्वर मंदिर भी कहा जाता है भारत को मंदिरों का देश कहा जाता है जहाँ कई प्राचीन, चमत्कारी मंदिर, सदियों से विश्व भर में चर्चा का विषय रहा है। उन्हीं में से दक्षिण भारत में एक प्राचीनतम हिन्दु मंदिर, बृहदेश्वर मंदिर है जो तमिलनाडु तंजौर में स्थित है और पूरे विश्व में अपनी अद्भुत निर्माण और वास्तुकला के लिए मशहूर है। By Lotpot 21 Nov 2022 | Updated On 21 Nov 2022 09:58 IST in Stories Interesting Facts New Update भारत को मंदिरों का देश कहा जाता है जहाँ कई प्राचीन, चमत्कारी मंदिर, सदियों से विश्व भर में चर्चा का विषय रहा है। उन्हीं में से दक्षिण भारत में एक प्राचीनतम हिन्दु मंदिर, बृहदेश्वर मंदिर है जो तमिलनाडु तंजौर में स्थित है और पूरे विश्व में अपनी अद्भुत निर्माण और वास्तुकला के लिए मशहूर है। यह मंदिर ग्यारहवीं सदी के प्रारंभ में निर्मित हुआ था। इस मंदिर की सबसे अनोखी बात यह है कि यह विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है जो पूरी तरह से ग्रेनाइट का बना हुआ है। प्रति वर्ष, दूर देश से पर्यटक इस मंदिर की बेहद सुन्दर वास्तुकला और विशालकाय गुम्बद देखने आते हैं। बृहदेश्वर मंदिर हिन्दु धर्म के देवता, भगवान शिव का विशालकाय मंदिर है जिसका निर्माण 1003 से 1010 ईस्वी के मध्य, चोल शासक प्रथम , राजराजा चोल ने करवाया था जिसके कारण इस विशालकाय मंदिर का भी नाम राज राजेश्वर मंदिर पड़ा। यह मंदिर द्रविड़ कलाकृति के अनुसार बनाया गया एक उत्तम वास्तुकला है जो उस काल में विश्व की सबसे बड़ी संरचनाओं में से एक था। इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 66 मीटर है और इसका दुर्ग तेरह मंजिले है तथा गोपुर के छत की ऊँचाई 66 मीटर है। इस मंदिर की सबसे आश्चर्यजनक और रहस्यमयी बात ये है कि यह 130,000 टन ग्रेनाइट के पत्थरों से निर्मित है जो कि गिज़ा के पिरामिड से भी ज्यादा है जबकि तंजौर के इलाके में दूर दूर तक, ना कोई पहाड़ है ना कोई पथरीला चट्टान, ऐसे में प्रश्न उठता है कि फिर कहाँ से एक लाख तीस हजार टन के भारी भरकम पत्थर आए और उन्हें वहाँ तक कैसे पंहुचाया गया? उससे भी ज्यादा रहस्य और अचरज की बात ये है कि इतने विशाल और ऊँचे मंदिर के निर्माण में ना कोई ईंट का इस्तमाल किया गया, ना सरिया, ना रेती सीमेंट, ना गिट्टी ना गारा और ना ही कोई गोंद। फिर भला यह विशाल मंदिर सदियों बाद भी सख्त पुख्त और सीधा कैसे खड़ा है? दरअसल इसे खड़ा करने में पज़ल तकनीक का इस्तेमाल किया गया है, जिसके चलते इन ग्रेनाईट पत्थरों को एक दूसरे के साथ फंसा कर जोड़ा गया है। मंदिर की नींव भी ना जाने किस तकनीक से इतना मजबूती के साथ रखा गया कि आज हज़ार वर्ष बाद भी यह बिना टूटे, बिना झुके एकदम सीधा खड़ा है। मंदिर के छत्र पर जो 89 टन भारी, सुन्दर विशालकाय गोलाकार शीला, शिखर पर विराजमान है, जिसपर एक स्वर्ण कलश भी टिका हुआ है, वो भी किसी आश्चर्य से कम नहीं, क्योंकि उस ज़माने में ना तो कोई लिफ्ट होती थी ना कोई क्रेन या सीढ़ी। तब भला इतना वज़नी और विशाल पत्थर को इतनी ऊंचाई पर कैसे पंहुचाया गया। कहा जाता है कि वजन ढोने के लिए शायद हाथी का इस्तेमाल किया गया होगा लेकिन 216 फिट की ऊँचाई तक पत्थर को कैसे पंहुचाया गया, ये एक राज है। यह मंदिर काम्प्लेक्स इतना विशाल है कि इसमें दो सौ ताजमहल समा सकते है। आश्चर्यों से भरा यह विशाल मंदिर भारत के हजारों गौरवों में से एक है ★सुलेना मजुमदार अरोरा★ #Lotpot Facts You May Also like Read the Next Article