95 वर्षीया भारतीय प्रोफेसर, वैज्ञानिक Chilukuri Santhamma, बनी कर्मठता की मिसाल Chilukuri Santhamma : मन में अगर हिम्मत, अनुशासन, समर्पण, दृढ़ संकल्प और मेहनत करने की भावना हो तो इंसान किसी भी उम्र में कामयाबी पा सकता है। By Lotpot 14 Feb 2023 | Updated On 14 Feb 2023 06:25 IST in Stories Lotpot Personality New Update Chilukuri Santhamma : मन में अगर हिम्मत, अनुशासन, समर्पण, दृढ़ संकल्प और मेहनत करने की भावना हो तो इंसान किसी भी उम्र में कामयाबी पा सकता है। विशाखापट्टनम की एक 95 वर्षीया बुजुर्ग महिला, प्रोफेसर चिलुकुरी संथम्मा, आंध्र प्रदेश के विजय नगरम स्थित सेंचुरियन यूनिवर्सिटी में मेडिकल फिजिक्स, रेडियोलॉजी और अनिस्थिशिया पढ़ाने के लिए रोज बस द्वारा 60 किलोमीटर की यात्रा करती हैं। जिस उम्र में अक्सर इंसान तरह तरह की व्याधियों से ग्रस्त होकर, बिस्तर पकड़ चुके होते हैं या दुनिया छोड़ चुके होते हैं उस उम्र में यह बुजुर्ग दादी जी गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड के मानदण्डों पर खरी उतर रही है। आठ मार्च 1929 को मछलीपट्टनम् में जन्मी संथम्मा जब सिर्फ पाँच महीने की थी तभी उनके पिता का निधन हो गया था । उनके मामा ने ही उनका पालन पोषण किया। संथम्मा बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थी। उन्होंने बहुत अच्छे नंबरों से स्कूल पास करने के बाद एविएन कॉलेज से इंटरमीडिएट की और फिर बीएससी और एमएससी (ऑनर्स) आंध्र यूनिवर्सिटी से पूरी की। संथम्मा ने आंध्र विश्वविद्यालय से माइक्रोवेव स्पेक्ट्रोस्कोपी में डीएससी (पीएचडी के समकक्ष) भी की है । 1945 में जब वे इंटरमीडिएट की छात्रा थी तब महाराजा विक्रम देव वर्मा ने उन्हें फिजिक्स में अव्वल होने के कारण स्वर्ण पदक भी दिया था। संथम्मा, ब्रिटिश रॉयल सोसाइटी के मार्गदर्शन में, डॉक्टर ऑफ साइंस पूरा करने वाली पहली महिला बनी। उन्होंने डॉक्टर रंग धामा राव के निर्देश पर शोध की पढ़ाई की थी । 1947 में पीएचडी करने के बाद संथम्मा एक व्याख्याता के रूप में कॉलेज ऑफ साइंस आंध्र विश्वविद्यालय में शामिल हुई। पिछले सत्तर सालों से वे छात्र छात्राओं को फिजिक्स पढ़ा रहीं हैं। वे लेक्चरर भी रही, आविष्कारक भी और प्रोफेसर भी। उन्होंने वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान पारिषद (सीएसआईआर), विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) जैसे केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में जाँच प्रभारी का काम भी किया था । हालांकि वे 1989 में रिटायर हो गई थी लेकिन सतत काम करते रहने के जुनून के कारण वे ऑनररी लेक्चरर के रूप में फिर से आंध्र विश्वविद्यालय में शामिल हो गई। वे रोज़ सुबह चार बजे उठ जाती हैं और दिन भर जो भी उन्हें पढ़ाना हो, उसके नोट्स बनाती है। वे एक दिन में छह क्लासेस लेती है। घुटनों के रिप्लेसमेंट सर्जरी के बावजूद संथम्मा दो छड़ियों के सहारे यूनिवर्सिटी में पढ़ाने जाती हैं। उनके स्टूडेंट्स उनका बहुत सम्मान करते हैं और कभी उनका क्लास मिस नहीं करते। संथम्मा भी रोज़ समय पर युनिवर्सिटी पहुंच जाती है। वे कहती हैं हर इंसान को अपना दिल और दिमाग स्वस्थ रखना चाहिए और हर उम्र और हर परिस्थिति में अपने सामर्थ्य अनुसार काम करते रहना चाहिए और कभी खाली नहीं बैठना चाहिए। चिलुकुरी संथम्मा ने भागवत गीता को अँग्रेजी और तेलुगु भाषा में अनुवाद भी किया। आज वे पूरी दुनिया में कर्मठता की एक मिसाल बन गई है। ** ★सुलेना मजुमदार अरोरा★ You May Also like Read the Next Article