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Detective Child's Story - वायलिन वाला लँगड़ा : प्रेमा और पिंटू दोनों समझदार भाई-बहन थे। दोनों एक-दूसरे के मददगार तो थे ही, आपस में एक-दूसरे को प्यार भी खूब करते थे।
दोनों को ही शाम को घूमने का शौंक था। रेलवे स्टेशन के समीप मकान होने से ये शाम को स्टेशन की ओर घूमने निकल जाते। वहां यात्रियों की वेशभूषा, बातचीत आदि को ध्यान से देखते सुनते थे।
रेलगाड़ी के आने पर शोरशरबा होता। गाड़ी पकड़ने के लिए यात्री अधीर होकर दौड़ते और कुली उनका सामान लिए उन के आगे-आगे होते। तांगे और रिक्शे वाले भी ग्राहक पटाने में लग जाते। सारा दृश्य बड़ा मनोंरजक होता। जब रेल चली जाती तो अपने पीछे एक शून्यता बिखेर जाती।
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एक दिन एक लंगड़ा वायलिन वाला न जाने कहां से आकर वहां रूक गया। वह पीपल के पेड़ के नीचे बैठ कर वायलिन बजाता। लोग मुग्ध हो कर उस का वायलिन सुनते।
प्रेमा और पिंटू भी वायलिन सुनते और अन्य लोगों की तरह कुछ सिक्के उस की ओर उछाल देते।
एक दिन प्रेमा ने कहा। देखों पिंटू, वायलिनवादक की दाढ़ी नीचे खिसक रही है। यह अवश्य ही दोहरी जिंदगी जीने वाला प्रतीत होता हैं।
बिल्कुल ठीक कहा तुमने। यह अवश्य ही कोई छुपारूस्तम है। इस पर हमें नजर रखनी होगी। फिलहाल तो चलो, कहीं हमारी बातचीत सुन कर वह सावधान न हो जाए।
एक दिन जब वह लंगड़ा वायलिन बजा रहा था तो श्रोताओं में से 2-3 लोगों की जेबें कट गई।
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कुछ न कुछ गड़बड अवश्य है पिंटू, प्रेमा ने कहा तो पिंटू ने भी सहमति में सिर हिलाया, पर गड़बड़ क्या है, बस यही उन की समझ के परे था।
एक दिन दोनों स्टेशन मास्टर के कमरे से प्लेटफार्म पर आती हुई गाड़ी का नज़ारा देख रहे थे।
गाड़ी जैसे ही प्लेटफार्म पर लगी, लंगड़ा वायलिनवादक वायलिन लेकर गाड़ी के साथ-साथ भागता दिखाई दिया।
पकड़ा गया... पकड़ा गया? पिंटू चिल्लाया तो प्रेमा हंस कर बोली। कौन पकड़ा गया।
पिंटू फौरन बाहर की ओर दौड़ पड़ा। दौड़ी तो प्रेमा भी, लेकिन पिंटू भीड़ में न जाने कहां गुम हो गया। जब वह लौटा तो खुशी से उसका चेहरा चमक रहा था।
हूँ, तो जेम्स बांड-0007... क्या किया आप ने इस तरह बेतहाशा दौड़ कर? प्रेमा ने मुस्कुराते हुए पूछा।
क्या किया और क्या नहीं, अभी बताने की जरूरत नहीं है। कल इसी समय यहीं पीपल के नीचे एक मोटा मुर्गा पकड़ कर दिखाऊंगा। प्रेमा की मसखरी का जवाब देता हुआ पिंटू भी मुस्कुराया, फिर बोला, सुनो, तुम अभी मां को कुछ नहीं कहोगी।
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दूसरे दिन शाम के समय जैसे ही गाड़ी प्लेटफार्म पर लगी, प्रेमा ने लंगड़े को बदहवास-सा गाड़ी की ओर भागते देखा।
गाड़ी जाने के बाद वायलिनवादक लंगड़ाता हुआ धीरे-धीरे पीपल के पेड़ की ओर चला आ रहा था। अचानक इंस्पैक्टर खान और कुछ सिपाहियों के साथ पिंटू प्रकट हो गया।
खान साहब ने वायलिनवादक कोे धमकाया तो वह उठ कर भागने लगा। लेकिन पहले से ही सावधान खड़े सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया? उन लोगों ने उस की जेबों की तलाशी ली तो 20-25 पुड़ियां बाहर आ गिरीं।
उन सब में ‘ब्राउन शूगर’ भरी थी। पिंटू और प्रेमा का शक पक्का निकला। यही वही खतरनाक नशीली दवा थी। जिसे लंगड़ा कुलियों, इक्के व रिक्शेवालों व अन्य यात्रियों को बेचता था।
इंस्पैक्टर खान ने लंगड़े हो हवालात भेज दिया। वह तस्करी करने वाले एक गिरोह का सदस्य था, जो भेष बदलकर नशीली दवाएं बेचता था।
सचमुच, पिंटू बधाई का पात्र था। वैसे तो प्रेमा ने भी बहुत प्रशंसनीय कार्य किया था। लंगड़े आदमी की खिसकती हुई दाढ़ी पर पहले पहल उस की ही नजर तो पड़ी थी। अब वह अलग बात है कि सफलता का सेहरा पिंटू के सिर बंध गया था।