/lotpot/media/post_banners/J2mRzRSzqYny4jSR7LZt.jpg)
मजेदार जंगल कहानी - तोंदूमल हाथी की बात ऐसे बनी : तोंदूमल हाथी को एक बुरी आदत पड़ गई थी वह हर वक्त अपनी तोंद में कुछ न कुछ भरता ही रहता था। वह जो कुछ खाता, उधार लेकर खाता और किसी के पैसे न देता।
पैसे देता भी कहाँ से ? वह करता धरता तो कुछ भी न था। बस, आवारागर्दी करता और छोटे जानवरों को डरा धमका कर उनकी दुकानों पर उधार माँगता रहता।
वह लंगूर चंद हलवाई से रोज मिठाईयाँ लेता और उसे कहता, ‘‘तुम मुझे उधार देने में कभी आनाकानी नहीं करते, मैं सबसे पहले तुम्हारा पैसा चुकाऊँगा।’’
कई दुकानदारों को वह यह कहकर डराता, ‘‘अगर किसी ने मुझे उधार देने में आनाकानी की तो मैं उसके पिछले पैसे नहीं चुकाऊँगा।’’
एक दिन सबने सुना कि तोंदमल के पेट में जोरों का दर्द उठा है और वह इस समय अस्पताल में पड़ा हुआ है।
‘और मिठाई खिलाओ उसे।’’ कुछ दुकानदारों ने लंगूर चंद से कहा, ‘‘अगर वह मर गया तो न तुम्हें रुपये मिलेंगे न हमें।’’
केले बेचने वाले बंदर कुमार ने कहा, ‘‘जहाँ हमने इतना सहा, वहाँ इतना और करते हैं कि उसके हालचाल पूछ आएं।’’
सभी हस्पताल पहँुचे, डाॅक्टर जिराफ ने बताया, ‘‘तोंदमल के इलाज के लिए बाहर से दवा मंगानी है। मगर उसके लिए मुझे पाँच सौ रुपये चाहिए।’’
सबने सलाह मशवरा करके पाँच सौ रुपये इकट्ठे किए और डाॅक्टर को दे दिए।
जब वे चले गए तो तोंदूमल एक झटके से उठ बैठा, ‘‘अच्छा मूर्ख बनाया सबको।’’ कहकर उसने जिराफ से आधे रुपये ले लिए।
‘‘देखना, कोई न जान पाए कि हमने सबको मूर्ख बनाया है।’’ जिराफ ने कहा।
तोंदूमल ने ढाई सौ रुपये लिए और एक दूसरे वन जाकर तरह तरह की चीजों में रुपये उड़ा दिए। लेकिन अब की बार उसे लेने के देने पड़ गए। उसके पेट में सचमुच भयानक दर्द शुरू हो गया।
जब वह अपने दोस्त डाॅक्टर जिराफ को ढुढ़ने पहुँचा तो पता चला कि वह नकली दवाईयाँ बेचते हुए पकड़ा गया है और जेल में है। तोंदूमल का इलाज नया डाक्टर भालूराम करने लगा। भालूराम तोंदूमल की आदतों को अच्छी तरह
जानता था।
‘‘तुम ज्यादा से ज्यादा एक सप्ताह जी सकोगे।‘‘ भालूराम ने उससे कहा, ’’हाँ. ज्यादा जीना चाहते हो तो एक उपाय है, तुम सिर्फ खाते हो, मेहनत नहीं करते, आज से कोई मेहनत का काम शुरू कर दो।
दवा तुम खा चुके हो। तुम्हारे पेट में जो खराबी है, अब सिर्फ किसी मेहनत वाले काम से ही ठीक होगी।’’
उसी दिन से तोंदमल जंगल के एक ठेकेदार सूंड सिंह के पास नौकरी करने लगा। वह रोज सैकड़ों लकड़ी के शहतीर ढोता और काफी मजदूरी कमाता।
एक दिन वह सभी दुकानदारों के रूपये देने पहँुचा, ‘‘अब मुझे पता चला कि मेहनत की कमाई क्या होती है।’’ उसने कहा, ‘‘अब न तो मैं बेईमानी करूँगा न बीमार पडूँगा।’’
उसने उन सभी दुकानदारों के रुपये भी लौटाए, जिनमें डाॅक्टर भालूराम भी था। जब तोंदमल ने उसके लिए मिठाई परोसी तो भालूराम ने मुस्कुरा कर कहा, ‘‘अब तुम भी मिठाई खा सकते हो। मेहनती बने रहोगे तो सब कुछ खा सकोगे।’’
और पढ़ें :