Hindi Moral Story for Kids- निर्दोष को दंड

चित्रानगरी के राजा के पास धन-दौलत के कोई कमी नहीं थी। उनके द्वार पर जो भी याचक आता। भरी झोली लेकर जाया करता। एक दिन कोई फकीर उनके द्वार आया तो राजा स्वयं उठकर उसे दक्षिणा देने पहुँचे। उन्होंने जैसे ही फकीर के पात्र में दक्षिणा भेंट की तो फकीर ने एक नजर राजा के चेहरे को देखा और बोला। महाराज आपके चेहरे पर उदासी क्यों?

By Lotpot
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Hindi Moral Story for Kids- Punishment of the Innocent

Hindi Moral Story for Kids- निर्दोष को दंड : चित्रानगरी के राजा के पास धन-दौलत के कोई कमी नहीं थी। उनके द्वार पर जो भी याचक आता। भरी झोली लेकर जाया करता। एक दिन कोई फकीर उनके द्वार आया तो राजा स्वयं उठकर उसे दक्षिणा देने पहुँचे। उन्होंने जैसे ही फकीर के पात्र में दक्षिणा भेंट की तो फकीर ने एक नजर राजा के चेहरे को देखा और बोला। महाराज आपके चेहरे पर उदासी क्यों?

राजा ने कहा। मेरे पास सब कुछ है। लेकिन एक बेटा नहीं हैं।

फकीर ने एक मंत्र जपा और कहा। महाराज आज से ठीक नौ माह बाद अपका राजमहल किलकारियों से गूंजने लगेगा। यह सुनकर राजा बड़ा प्रसन्न हुआ। फकीर दक्षिणा लेकर आगे चल पड़ा।

Hindi Moral Story for Kids- Punishment of the Innocent

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ठीक नौ माह उपरांत रानी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया। पूरी राजधानी में खूब जश्न मना। जब राजकुमार सात बरस का हुआ तो राजा ने उसे एक गुरू के आश्रम में भर्ती किया ताकि वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर सके।

आश्रम के गुरूजी प्रतिदिन राजकुमार को तरह-तरह की तालीम प्रदान करते। लगभग दस वर्षो के सफर में वह एक बुद्धिमान राजकुमार बन चुका था।

एक दिन उसने कहा। गुरूजी। आपके सानिध्य में मैंने शिक्षा तो प्राप्त कर ली है। अब मैं अपने पिताजी के पास जाना चाहता हूँ।

गुरू ने कहा ठीक हैं तुम जाने से पूर्व मुझे चरण स्पर्श करो। मैं तुम्हें आशीर्वाद प्रदान करूंगा।

राजकुमार ने प्रस्थान से पूर्व झुककर गुरू के चरण स्पर्श किए तो उन्होंने उसकी पीठ पर अपनी छड़ी से तीव्र प्रहार किया।

राजकुमार ने बेवजह प्रहार करने का कारण जानना चाहा तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया और कहा। हाँ अब तुम जा सकते हो।

अपने सीने में गुरू के प्रति नफरत भरकर राजकुमार महल में लौट आया।

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अपने पिजाश्री की मुत्यु के उपरांत जब वह राजगद्दी पर बैठा तो उसने अपने पर बेवजह प्रहार करने वाले गुरू को अपने महल में बुलाकर पूछा। क्यों गुरूजी। मुझे पहचानतेे हो?

हाँ राजन। अच्छी तरह से पहचानता हूँ कल तक तुम सिर्फ एक राजकुमार थे। लेकिन अब राजा बन चुके हो। अरे हाँ। यह तो बताओ मुझे यहाँ क्यों बुलाया?

राजा ने कहा। आपने बिना वजह मुझ पर प्रहार क्यों किया था बस यही कारण जानना चाहता हूँ।

गुरू ने कहा। हे राजन, तुम्हें बिन कारण जो दण्ड दिया, उसकी याद तुम्हें अब भी सता रही है। गलती करने वाला अपना दण्ड भूल जाता है, पर निर्दोष अपने दण्ड को कभी नहीं भूलता। अतः कभी निर्दोष को मत सताना। हाँ, तुम्हारे भविष्य के लिए मेरी यही अंतिम शिक्षा थी।

यह सुनकर राजा बड़ा प्रसन्न हुआ। गुरू को प्रणाम कर बोला। आप सचमुच महान हैं। मैं आपकी शिक्षा का ताउम्र पालन करूंगा और कभी किसी निर्दोष को दण्ड नहीं दूंगा।

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