Holi Story : भैया की पिचकारी

Holi Story : अमु एक बार फिर मां का पल्लू पकड़कर खींचने लगा ।‘मां, सुनो ना, रेलगाड़ी तो आ गई है ना ।मेरे भैया कब आयेंगे?’ बस आते ही होंगे कहकर मां ने अमु को प्यार से समझाया। अमु अब चैथी कक्षा में आ गया था और मां ने उसे अनुमति दे दी थी कि भैया अपने छात्रावास से आ रहे है ।वो इस बार उनके साथ होली खेलने कालोनी मे भी जा सकता है साथ ही भैया के दोस्तो के साथ भी खेल सकता है । तभी बाहर आटो रिक्शा रूकने की आवाज सुनाई दी। अमु उछल पडा।

By Ghanshyam
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Holi Story Brother's Pichkari

Holi Story : अमु एक बार फिर मां का पल्लू पकड़कर खींचने लगा ।‘मां, सुनो ना, रेलगाड़ी तो आ गई है ना ।मेरे भैया कब आयेंगे?’ बस आते ही होंगे कहकर मां ने अमु को प्यार से समझाया। अमु अब चैथी कक्षा में आ गया था और मां ने उसे अनुमति दे दी थी कि भैया अपने छात्रावास से आ रहे है ।वो इस बार उनके साथ होली खेलने कालोनी मे भी जा सकता है साथ ही भैया के दोस्तो के साथ भी खेल सकता है । तभी बाहर आटो रिक्शा रूकने की आवाज सुनाई दी। अमु उछल पडा।

‘भैया आ गये ,आ गये।’ कहकर अमु ने दरवाजा खोला और भैया से लिपट गया। मां और अमु ने भैया का स्वागत किया । भैया हम लोग मजे से होली खेलेंगे अमु ने नाश्ता करते हुए भैया से कहा। अरे,, हां हां अमु, इस बार तो वाद- विवाद प्रतियोगिता में मुझे पाँच सौ रूपये का नगद पुरस्कार मिला है । आज शाम को पिचकारी और रंग लेने चलेंगे ।सच भैया ।अरे हाँ हाँ बिलकुल। नाश्ता खत्म करके भैया अपना बैग टटोलने लगे ।अमु अपने कमरे मे होमवर्क कर रहा था ।पर उसने मां और भैया को आपस में बात करते हुए सुना ।भैया बहुत ही उदास आवाज मे कह रहे थे ,'माँ , न जाने मेरा बटुआ कहाँ गिर गया है।‘अरे,, अरे, ओह।’ मां भी परेशान हो कर कह रही थी ।अमु को चिंता हुई कि यह क्या हुआ।

वो,अपने कमरे से बाहर आया और भैया के पास जाकर बोला, ‘अब आप क्या करोगे भैया ?’, वही सोच रहा हूँ अमु। अब क्या होगा ।मैंने तो दोस्तो को होली खेलने के लिए आमंत्रित भी कर लिया है।’, ‘ओह, पर चिंता करने की कोई जरूरत नही है।मैं तुमको रूपये देती हूँ।’ माँ ने कहा तो भैया बोले कि नहीं नहीं मां, आप कैसे मुश्किल से महीने का खर्च पूरा करती हो ।मै जानता हूँ। ऐसा करता हूँ कबाडी वाले भैया के पास से सस्ती पिचकारी ले आता हूँ। और पलाश तथा हल्दी के प्राकृतिक रंग तो हो ही जायेंगे। अमु ने यह सब सुना तो दौड़कर अपने कमरे में गया और अपना गुल्लक ले आया ।‘भैया इसे दो साल से नही खोला है ।आप इसे ले लो भैया ।’ अमु एक सांस में बोल गया ।अमु अपने भाई से बेहद प्यार करता था। ‘पर अमु तुमको तो इस गुल्लक की बचत से गर्मियों में स्वीमिंग पूल की फीस देनी थी और तैराकी सीखनी थी है ना ?’

‘तो क्या हुआ भैया अभी तो तीन महीने है मै फिर से जमा कर लूंगा। आप रख लो ना भैया ।

अमु ने जिद ही पकड़ ली, ‘भैया ,होली तो साल मे एक बार ही आती है ना भैया ।हमको कितना इंतजार रहता है रंग खेलने का।’ अमु बोलते रहा, ‘अच्छा अमु चलो इसे फोडकर देखते हैं।’ भैया ऐसा कहकर गुल्लक तोडने जा ही रहे थे कि बाहर से आवाज सुनाई दी। ‘ये बटुआ गिर गया था।आपका ही है।’, ‘है...बटुआ’, बटुआ नाम सुनकर तीनो बाहर आ गये।, ‘देखिये,ये आपका बटुआ है ना।’ कहकर, कबाडी वाले भैया ने बटुआ आगे किया ।‘अरे,हाँ, न जाने कैसे और कहाँ गिर गया था ?’ भैया बोले तो जवाब आया, ‘मैंने इसे रेलवे स्टेशन पर गिरा हुआ देखा था।जब खोला तो इसमे आप सबकी तस्वीर देखी। मैं सब समझ गया कि यह तो आपका है।’ धन्यवाद, कहकर, मां ने उनका आभार प्रगट किया।, ‘अरे..धन्यवाद तो आपका।

Holi Story Brother's Pichkari

आपने मेरी बेटी को भोजन पकाना सिखाया आज वो कितना अच्छा भोजन पका लेती है ।’ कहकर कबाडी वाले ने नमस्कार किया और वापस लौट गया ।,‘अरे.. मां, ये खाना बनाने का राज क्या है।’ भैया ने हैरत से  पूछा तो अमु ने उछलकर कहा कि ,‘इस जनवरी  से पहले ये कबाडी वाले भैया अपनी बेटी के साथ आये थे और रद्दी अखबार ले गये थे। तब उनकी बेटी ने कहा था कि उसे कुकिंग क्लास में जाना है ।और मां ने तो एक सप्ताह मे ही उसे सब सिखा दिया । ‘अरे..वाह मां। शुक्रिया बेटा कहकर मां हंसने लगी, और, कहने लगी।‘बेटा वो खुद ही होशियार है। बस एक सप्ताह सीखकर वो अपने नये नये प्रयोग करने लगी है ।’ अब तो रंग खेलेंगे अमु ताली बजाने लगा ।बटुआ वापस आया और पांच सौ का नोट भी उसमे लौटकर खिलखिला रहा था ।

-हरीश चंद्र पांडे

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