बारिश का मौसम जून से सितंबर तक माना जाता है। आखिर ये बारिश और बादल कैसे बनते है? दरअसल धरती के तापमान के साथ साथ बर्फीले क्षेत्रों के तापमान और सूर्य की गर्मी से तपे समुंद्र के पानी के तापमान के मिले जुले असर के कारण जलवायु में बदलाव आता है। जब नमी वाली गर्म हवा किसी उच्च और ठंडे दवाब वाले वातावरण से टकराते हैं तब बारिश होती है। होता यह है कि सूरज की तपिश के कारण समुंद्र या नदी में बनने वाले भाप में पानी होता है। ये भाप ऊपर उठकर जब कहीं किसी ठंडे जलवायु से मिल जाता है तो पानी से भरा बादल बन जाता।
लेकिन सवाल यह उठता है कि हवा अपने साथ आसमान तक पानी को कैसे ले जाती है। दरअसल साल भर सूरज की तेज किरणे जब धरती पर पड़ती है तो समुंद्र और नदियों का पानी भी गर्म होकर भाप बनने लगता है, यह भाप बहुत हल्का होता है इसलिए ऊपर उठकर बहने लगता है। प्रत्येक हजार फिट ऊंचाई पर तापमान पांच डिग्री कम होता जाता है जिससे ऊपर उठने वाला भाप ठंडा होकर फिर से पानी बन जाता है। जब यह पानी के छोटे छोटे कण, एक दूसरे से जुड़ने लगते है तो वो बादल का रूप ले लेते है। यह जल कण इतने हल्के होते है कि हवा के साथ उड़ने लगते है।
पानी के यह छोटे छोटे कण लाखों की तादात में एक साथ मिलकर एक क्रिस्टल का रूप धारण करती है जो बर्फ होती है। लेकिन क्रिस्टल बनने के लिए भी इन जल कणों को किसी ठोस चीज की जरूरत पड़ती है, तो धरती से उड़ने वाले धूल, धुंए, रेत के कण, सूक्ष्म जीव, अंतरिक्ष से आने वाले मीटराइट्स, इसमें मदद करती है। यह सब हवा में उड़ते उड़ते पानी की बूंदों से मिलती है और पानी इन कणों के आसपास क्रिस्टल आइस के रूप में जम जाती है। यह छोटे छोटे क्रिस्टल जब आपस में जुड़ती है तो बर्फ हो जाता है।
जब इन बर्फों का वजन बढ़ने लगता है तो वो धरती की ओर गिरने लगते है और नीचे के गर्म तापमान से टकराकर पिघल जाते है तथा छोटी छोटी बूंदों का आकार लेकर बरसने लगते है जिसे हम बारिश कहतें है। यदि क्रिस्टल बड़े हो और नीचे धरती का वातावरण भी बहुत ठंडा हो तो बर्फ पिघलती नहीं और ओलों के रूप में गिरती है। अगर आपको नापना हो कि आपके एरिया में कितना सेन्टीमीटर वर्षा हुई है तो एक बड़े से कंटेनर में सेन्टीमीटर स्केल बना कर बाहर बारिश में रख दीजिए और हर रोज उसमें जितना पानी जमा हो उसे नाप लीजिए।
-सुलेना मजुमदार अरोरा