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हिंदू धर्म में मंदिरों में भगवान का दर्शन करने से पहले या पूजा करते समय घंटे या घंटियां बजाने की परंपरा है जिसे शुभ माना जाता है।
घंटा एक संस्कृत शब्द है। प्रत्येक हिन्दू मंदिर में, प्रवेश द्वार के सामने घंटा या घंटी जरूर लगे होते है जिसे बजा कर भक्त मंदिर में प्रवेश करते हैं। मंदिर के पुजारी भी पूजा के दौरान और पूजा के विभिन्न अनुष्ठानों के दौरान घंटी बजाते हैं। प्राचीन समय से ही मंदिर या देवालयों में घंटी लगे होने के प्रमाण है। घंटियाँ चार प्रकार की होती है।
गरुड़ घंटी, द्वार घंटी, हाथ घंटी और घंटा।
गरुड़ घंटी छोटी सी होती है, जिसे पूजा करते समय एक हाथ से बजाया जाता है।
द्वार घंटी मंदिर के प्रवेश द्वार पर लगी होती है और यह छोटे और बड़े, दोनों प्रकार के लगे होते हैं। भक्तगण इसे हाथों से बजा कर ही मंदिर में प्रवेश करते हैं।
हाथ घंटी, पीतल की एक मजबूत गोल प्लेट की तरह होती है जिसे लकड़ी के गत्ते से बजाया जाता है और जो घंटा होता है वो कम से कम पाँच फुट लंबा चौड़ा और बहुत भारी भरकम होता है।
यह सारी घंटियाँ कई तरह की धातुओं से बनाई जाती है जैसे तांबा, पीतल, कैडमियम, निकेल, सीसा, जस्ता, कांसा, क्रोमियम, और मैग्नीज़। इन धातुओं को मिलाते समय प्रत्येक की अलग अलग, तय मात्रा का होना जरूरी होता है वर्ना घंटे की ध्वनि अच्छी और सही नहीं होती।
उत्तर प्रदेश के एटा डिस्ट्रिक्ट, जलेसार में, मंदिर और पूजा की घंटियों तथा घन्टों का निर्माण होता है। वहां कम से कम तीन सौ फैक्ट्रियां हैं जिन्हें देश विदेश से घंटी बनाने के ऑर्डर मिलते है। इन फैक्ट्रियों में बेहतरीन कलाकार हैं जो बेहद सुन्दर और शानदार ध्वनि के घंटे और घंटियाँ बनाते हैं। अयोध्या राम मंदिर के लिए भी, इक्कीस लाख रुपयों की लागत से, 2100 किलोग्राम वजनी, छः फीट ऊँचा, पांच फीट चौड़ा घंटा निर्मित हो रहा है। यह भारत का सबसे बड़ा घंटा है जिसे बजाने पर 1-2 किलोमीटर रेडीएस तक ध्वनि सुनाई देने वाली है। घंटे और घंटियां कैसे बनाई जाती है? आइए जानते हैं। पहले जिस आकार के घंटों का ऑर्डर मिलता है उसी आकार के मिट्टी के साँचे बनाए जाते है। फिर तांबे और जस्ता को मिलाकर कांसा बनाया जाता है। फिर कांसे को 900 डिग्री सेल्सियस पर गर्म किया जाता है जिससे वो पिघल जाता है। यह पिघला हुआ कांसा साँचे में डाला जाता है। जब कांसा साँचे में सेट हो जाता है तब इसे साँचे से निकाल कर पॉलिश किया जाता है और उसपर आवश्यकता अनुसार नक्काशी भी उकेरी जाती है। मंदिर में घंटी बजाने या पूजा के समय घंटी बजाने के धार्मिक मान्यताओं के अलावा वैज्ञानिक तथ्य भी है जैसे घंटी की ध्वनि मन, मस्तिष्क, और शरीर को ऊर्जा, शांति और चेतना से भर देता है। जब घंटी बजायी जाती है तो उसके कम्पन से उस क्षेत्र में रहने वाले सभी विषाणु, जीवाणु और सूक्ष्म जीव, जो वातावरण को अशुद्ध करते हैं, वो नष्ट हो जाते हैं और वातावरण शुद्ध हो जाता है।
★सुलेना मजुमदार अरोरा★