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प्रेरक कहानी : अपनी अपनी समझ का फंडा - (Apni Apni Samajh ka fanda) मृदुला, ए मृदुला, अब बस भी कर। दिन भर गुड्डे गुड़ियों का खेल खेलना पढ़ना नहीं है क्या? ‘‘मम्मी की आवाज सुनकर मृदुला ने अपनी सहेलियों से कहा-अंजू, मीना, अब तुम लोग जाओ, मम्मी नाराज हो रही हैं’ फिर वह कमरे में आ गई जहाँ पर उसकी मम्मी बैठी हुई थी। माँ के चेहरे पर नाराजगी की झलक देखकर मृदुला डर गई-’मम्मी जी, देखिये न, अपनी ड्रेस धोकर डाल दी, गेहूँ धूप में सूखने डाल दिये, स्कूल का सारा काम कर लिया,अब भी कुछ न खेलूँ..।’ कहकर मृदुला ने माँ की नाराजगी दूर करनी चाही।
पर माँ शायद उससे कुछ ज्यादा ही नाराज थी कहने लगी-‘दसवीं कक्षा में पढ़ती हो और गुड्डे-गुडियों का खेल खेलती हो,? शर्म नहीं आती? ‘‘मैं क्या करूँ माँ ? ताश खेलने को पापा मना करते हैं, लूडो साँप सीढ़ी, रवि भैया नहीं खेलते। पड़ोस की छोटी लड़कियों को तो यही खेल भाता है सो मैं भी खेलती हूँ’’ मृदुला ने मायूसी से कहा।
‘मृदुला, रवि के छमाही परीक्षा में कम नम्बर आये, तो कितनी पढ़ाई करता है कहीं भी खेलने नहीं जाता। माँ गंभीरता से बोली। मुदृला का मन हँसने का हो आया -रवि भैया की खूब कही। सुनील, महेन्द्र, अनिल बुलाते हैं मुझे पढ़ना है, मैं नहीं खेलूँगा। फिर खिड़की से देखते हैं कि किसने कितने चैके मारे कितने छक्के.... भला ऐसे कहीं पढ़ाई होती है? मम्मी तो समझती ही नहीं है? हमेशा मुझे ही डाँटती रहती है। हर वक्त पुस्तक लिये रहो और मन न लगाओ तो क्या फायदा?
दूसरे दिन मृदुला के पापा जी सुभाणा, सिनेमा के टिकट लाये, पर रवि ने यह घोषणा कर अपने पढ़ाकू होने का सबूत दिया-’नहीं, मैं फिल्म नहीं जाऊँगा। मुझे बहुत पढ़ना है। यह सुनकर माँ पुलकित हो गई और मृदुला से बोली-’’रवि और तुम एक ही कक्षा में पढ़ते हो, तुम भी नहीं चलो पिक्चर।’ मृदुला ने यह सुनकर कहा-’पढ़ाई के वक्त मनोरंजन। मैं तो जरूर चलँूगी।’’
इस प्रकार दोनों भाई-बहन अपनी अपनी समझ के अनुसार पढ़ाई करते रहे। रवि ने पढ़ाई का अर्थ सिर्फ पुस्तकों में सिर झुकाये रखने को समझा जबकि मृदुला का विचार था। कम पढ़ो पर मन लगाकर।
नियत समय पर परीक्षायें हुई । रवि कहता-’माँ, तीन बजे का अलार्म लगा देना, पापा जी, आज मैं बारह बजे तक पढ़ूँगा।’’
मृदुला हमेशा सुबह पाँच से सात बजे तक और रात्रि आठ से दस बजे तक पढ़ती थी। उसने अपने कार्यक्रम में कोई परिवर्तन नहीं किया।
एक दिन शाम तीन बजे दोनों पेपर देकर आये। मृदुला ने कपड़ें बदले, हाथ मुँह धोये, टोकरी में से टमाटर निकाला और नमक लगाकर खाया तथा रेडियो खोल दिया। उसे गाने सुनने का बहुत शौक था।
रवि ने न कपड़े बदले, न खाना खाया, सीधा अलमारी में से इतिहास की पुस्तक निकाल लाया। ‘‘इल्तुत मिश दास वंश का वास्तविक शासक था।’’
जोर जोर से पढ़ने लगा। माँ मृदुला पर बरस पड़ी। ‘‘रेडियो खोल दिया? रवि को देखो, अभी परीक्षा देकर आया है और फिर पढ़ने बैठ गया। ऐसे होते हैं। पढ़ने वाले।’’ मृदुला खिलखिलाकर हँस पड़ी। बोली ‘‘मम्मी जी, आप बेकार ही में नाराज हो रही हैं? कल पेपर है तो इसका मतलब यह तो नहीं कि आते ही फिर जुट जाऊँ?
जरा दिमाग ताजा तो हो जाये।’’
परन्तु मम्मी रवि की प्रशंसा ही करती रही। पापा ने मृदुला से कुछ ना कहा, पर उन्हें भी लग रहा था कि मृदुला इस बार लुढ़क न जाये?
रात आठ बजे ही रवि नींद की गोद में सोे गया। क्योंकि शाम के समय भी वह पुस्तक हाथ में लिये इल्तुत मिश और अकबर बड़बड़ा रहा था।
मृदुला का मस्तिष्क पूरे तौर पर स्वस्थ हो चुका था। और पहले से याद किये हुये प्रश्न उसने मस्तिष्क में बैठा लिये। हालांकि पेपर बारह बजे से था फिर भी मृदुला सुबह पांच बजे उठी। उसने माँ के साथ रसोई का काम भी करवाया और रवि और मृदुला दोनों परीक्षा देने गये।
इस तरह दोनों ने संपूर्ण परीक्षा दी मृदुला निश्चित थी और रवि चिंतित। एक दिन उसके पापा के दोस्त प्रकाश शर्मा घर आये। वे जबलपुर में अध्यापक थे। रवि ने उनसे कहा। ‘‘अंकल, मेरी काॅपियाँ जाँच के लिये शायद जबलपुर गई हैं, मेरा रोल न. 55 है, आप कुछ कीजियेगा।’’ उसकी यह बात सुनकर प्रकाश जी अजीब सी नजरों से रवि को घुरते रहे।
लौटते वक्त उन्होंने मृदुला से कहा। ‘‘तुम्हारी काॅपियाँ जाँच के लिये जबलपुर गई हैं, तुम्हारा रोल न. क्या है?’’ मृदुला चैंक पड़ी फिर हँसते हुये बोली। ‘‘अंकल, मुझे अपने ऊपर पूर्ण विश्वास है, मैंने जो भी लिखा है अपनी मेहनत से लिखा है, और मैं अपनी मेहनत के बल पर ही पास करूँगी।
प्रकाश जी प्रशंसात्मक दृष्टि से देखते हुए बाहर चले गये।
जब परीक्षा का परिणाम निकला तो मृदुला को छोड़कर सब आश्चर्यचकित हो गये। मृदुला प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कैसे हो गई। अपनी-अपनी समझ है न?
लेकिन अब रवि ने भी मृदुला के ढंग से पढ़ने का प्रण कर लिया है।
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