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अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारना कहानी | मूर्खता का परिणाम

जानिए कैसे एक लोमड़ी ने अपने स्वार्थ और लालच के कारण अपना ही नुकसान कर लिया। यह कहानी सिखाती है कि बिना सोचे-समझे काम करने का क्या नतीजा होता है। बच्चों के लिए तार्किक Moral Story पढ़ें।

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बिना सोचे-समझे काम का नतीजा

प्यारे बच्चों, आपने यह मुहावरा ज़रूर सुना होगा: "अपने पाँव पर आप कुल्हाड़ी मारना।" इसका मतलब है—जानते-बूझते हुए अपना ही नुकसान कर लेना, या मूर्खतापूर्ण फैसला लेना जिसका परिणाम हमें ही भुगतना पड़े। यह ठीक वैसा ही है जैसे कोई खुद ही उस डाली को काटने लगे जिस पर वह बैठा है!

आज हम एक चालाक, लेकिन लालची लोमड़ी की कहानी पढ़ेंगे, जिसका नाम था 'चतुरिका'। चतुरिका ने अपनी ही मूर्खता और लालच के कारण कैसे अपना नुकसान कर लिया। यह कहानी आपको सिखाएगी कि जीवन में कोई भी बड़ा कदम उठाने से पहले, उसके परिणामों के बारे में सोचना क्यों ज़रूरी है।


चतुरिका का लालच और आरामदायक जीवन

एक विशाल और हरे-भरे जंगल में, चतुरिका नाम की एक लोमड़ी रहती थी। चतुरिका वैसे तो बहुत चालाक थी, लेकिन उसे थोड़ा आलस्य और बहुत सारा लालच था। शिकार करने के लिए दूर जाने के बजाय, वह हमेशा आसान तरीके ढूंढती थी।

चतुरिका एक बहुत आरामदायक गुफा में रहती थी। इस गुफा के ठीक ऊपर एक बड़ा आम का पेड़ था। बरसात के बाद, आम के पेड़ की जड़ें गुफा के मुहाने तक फैल गई थीं, जिससे गुफा की छत बहुत मज़बूत थी और अंदर ठंडक रहती थी।

जंगल के जानवर अक्सर चतुरिका से कहते थे: "चतुरिका, तुम्हारी गुफा कितनी मज़बूत है! इस पेड़ की जड़ों ने इसे पूरा सहारा दिया हुआ है।" चतुरिका सुनकर मुस्कुरा देती थी।

सुविधा का मोह और विनाशकारी योजना

एक दिन, गर्मी बहुत बढ़ गई। तब चतुरिका ने देखा कि आम के पेड़ की जड़ें, जो गुफा को मज़बूती दे रही थीं, गुफा के मुहाने पर थोड़ी धूप रोक रही हैं।

चतुरिका ने सोचा: 'अगर ये मोटी जड़ें यहाँ से हट जाएँ, तो गुफा में और ज़्यादा रोशनी आएगी और धूप भी अच्छी लगेगी।'

चतुरिका का यह विचार सिर्फ़ सुविधा के मोह में उपजा था, क्योंकि उसे गुफा में थोड़ा अंधेरा महसूस हो रहा था। उसने यह नहीं सोचा कि वही जड़ें उसकी गुफा की छत को संभाले हुए हैं।

इसलिए, चतुरिका ने मूर्खतापूर्ण योजना बनाई। उसने अपने नुकीले दाँतों से गुफा के मुहाने पर दिखने वाली उन सभी मोटी जड़ों को काटना शुरू कर दिया।

  • चतुरिका: "हाँ, बस ये जड़ें हट जाएँ, फिर देखना मेरी गुफा कितनी शानदार हो जाएगी!"

पास ही, एक गिलहरी यह सब देख रही थी।

  • गिलहरी: "चतुरिका बहन! तुम क्या कर रही हो? यह पेड़ की जड़ें तुम्हारी गुफा को गिरने से बचाती हैं। इन्हें मत काटो, वरना यह गुफा टूट जाएगी।"

चतुरिका ने गिलहरी को झिड़क दिया: "तुम छोटी गिलहरी, मुझे मत सिखाओ। मुझे पता है मैं क्या कर रही हूँ। मुझे ज़्यादा रोशनी चाहिए!"

मूर्खता का परिणाम

चतुरिका ने गिलहरी की बात अनसुनी कर दी और ज़ोर लगाकर सारी मोटी जड़ें काट डालीं। ठीक है, अब गुफा में रोशनी ज़्यादा थी, लेकिन गुफा की छत का सहारा खत्म हो गया था।

कुछ ही देर बाद, ज़मीन थोड़ी हिली। चूँकि छत को सहारा देने वाली जड़ें कट चुकी थीं, गुफा की छत का बड़ा हिस्सा धड़ाम से ज़मीन पर गिर गया। चतुरिका बड़ी मुश्किल से कूदकर बाहर भागी, लेकिन उसकी आरामदायक गुफा अब मलबे का ढेर बन चुकी थी।

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अब चतुरिका के पास न तो आरामदायक गुफा बची, और न ही धूप का आनंद लेने का मौका। उसे अपनी मूर्खता पर बहुत पछतावा हुआ। उसने सिर्फ़ थोड़ी सी रोशनी और सुविधा के लिए अपनी ही सुरक्षा को दाँव पर लगा दिया था।

वह दूर खड़ी गिलहरी को देखकर समझ गई कि उसने अपने पाँव पर आप कुल्हाड़ी मार ली है। अब उसे जंगल में ठंड में रात बितानी पड़ी, जबकि उसकी मूर्खता की चर्चा पूरे जंगल में हो रही थी।


सीख (Moral of the Story)

यह कहानी हमें सिखाती है कि क्षणिक लालच या छोटी सी सुविधा के लिए, हमें दूरगामी और महत्वपूर्ण सुरक्षा को कभी दाँव पर नहीं लगाना चाहिए। बिना सोचे-समझे और घमंड में आकर कोई भी कदम उठाना, ठीक वैसे ही है जैसे अपने पाँव पर आप कुल्हाड़ी मारना। हमेशा हर काम के परिणामों पर ध्यान दें।

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